:- सुभाष चंद्र बोस -:

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका रही है ।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने आप में एक संपूर्ण क्रांति थे।
आप का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक , उड़ीसा में हुआ।
आपने प्राथमिक शिक्षा पी .ई .मिशनरी स्कूल से, इंटरमीडिएट  रेवेनशा कॉलेजियट स्कूल  से करने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज  प्रवेश लिया ।
अंग्रेजी शिक्षक  ओटन  द्वारा भारतीयता के संबंध में विवाद होने पर आप ने उसके थप्पड़ मार दिया जिसके कारण विवाद बढ़ गया। आप ने माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया ।
प्रतिक्रिया स्वरुप आप को  कॉलेज से निकाल दिया गया।
आप कुछ दिन आध्यात्मिक गुरु की खोज  में उत्तरी भारत का भ्रमण करते रहे।
बॉस ने स्कोटिश  चर्च   कॉलेज में प्रवेश लिया व 1919 में प्रथम श्रेणी से बी.ए .ऑनर्स  पास की।

बॉस 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैंड गए वहां किट्स विलियम हाल में मानसिक एंव नैतिक विज्ञान की परीक्षा हेतु प्रवेश लिया।

इंग्लैंड जाने के पीछे आपका  उद्देश्य ICS बनना था।
आपका दिनांक 22 सितंबर 1920 को  ICS में चयन हो गया।
इस कठिन परीक्षा में आपीने   चतुर्थ स्थान प्राप्त किया।

आप लक्ष्य देश की आजादी था इसलिए आपने  22 अप्रैल 1921 को अपनी ICS सेवाओं से त्यागपत्र दे दिया।

प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर आपने विरोध किया ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया ।
बॉस को दिनांक 10 दिसंबर 1921 को 6 माह का कारावास दिया गया।
बॉस को 25 अक्टूबर 1924 को गिरफ्तार कर अलीपुर बहरामपुर जेल में भेज दिया गया।
इंग्लैंड से आकर आपने गांधी जी से मुलाकात की और कलकत्ता आकर देशबंधु चितरंजन दास बाबू के साथ असहयोग आंदोलनआप में शामिल हो गए।
दाश ने उस समय स्वराज पार्टी भी बनाली थी व अपनी पार्टी से चुनाव लड़ते  हुए कलकत्ता के महापौर बने ।
दास जी ने सुभाष बॉस को1924 में कार्यकारी अधिकारी बनाया।

मांडले जेल में रहते हुए बॉस ने विधान परिषद का चुनाव लड़ा और 10 दिसंबर 1926 को निर्वाचित हुए।
कठोर यातनाएं झेलने के बाद बोस दिनांक 16 मई 1927 को जेल से रिहा हुए।
कलकत्ता  में साइमन कमीशन का विरोध सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में किया गया।

सन 1928 में कांग्रेस के 43वें  अधिवेशन में सुभाष बोस ने 7000 खाकी वर्दी वाले सैन्य दल का नेतृत्व करते हए कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मोतीलाल नेहरू को गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया ।

जिसका  अनुशासन देखते ही बनता था।
साइमन  कमीशन को जबाब हेतु भारत के भावी संविधान के संबंध रिपोर्ट तैयार करने हेतु पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्ष में 8 सदस्यी कमेटी बनाई गई थी।
  जिसमें सुभाष बोस भी सदस्य थे।
कांग्रेस के इस कलकत्ता अधिवेशन में  पंडित मोती लाल नेहरू ने  डोमिनियन स्टेटस  पर सहमति  की रिपोर्ट दी।

सुभाष चंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डोमिनियन स्टेटस की रिपोर्ट का विरोध करते हुए पूर्ण स्वराज की मांग की।

अंततः यह तय रहा कि यदि 1 वर्ष की अवधि में अंग्रेज भारत को इस  डोमिनियन स्टेटस नहीं देते है तो कॉन्ग्रेस पूर्ण स्वराज के लिए आंदोलित होगी ।
डोमिनियन स्टेटस नहीं मिला । कांग्रेस का अगला अधिवेशन 1930  में लाहौर में  पंडित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ ।
इसमें  कांग्रेस ने  26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में के रूप में मनाने की घोषणा करदी।

अगले वर्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता में  26 जनवरी 1931 को एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व करते हए राष्ट्रध्वज फहराया।
पुलिस ने लाठीचार्ज किया व बॉस को जेल में भेज दिया गया।
गांधी इरविन समझौता के समय सुभाष चंद्र बोस जेल में थे ।
उन्होंने गांधी इरविन समझौते का विरोध करते हुए कहा था कि
ऐसा समझौता किस काम का जो ,भगतसिंह जैसे देशभक्तों की जान नहीं बचा सके ‘।


बॉस द्वारा गठित बंगाल वालंटियर्स के  एक क्रांतिकारी  गोपीनाथ साहा ने 1925 में क्रूर पुलिस अधिकारी  चार्ल्स टेगर्ट के भरोसे अर्नेस्ट डे नामक व्यक्ति को  मार दिया।
जिस पर गोपी नाथ साह को फांसी दी गई थी। जेल से गोपी मोहन का शव सुभाष चंद्र बोस ने  लिया व उनका संस्कार करवाया।
इस बात से अंग्रेज सरकार खफा हुई और बॉस को बिना मुकदमा चलाये अनिश्चित काल के लिए     बर्मा (म्यांमार) की मांडले जेल में भेज दिया गया ।
मांडले  में बॉस को तपेदिक बीमारी हो गई। स्वास्थ्य अधिक खराब होने पर इलाज हेतु डलहौजी जाने की अनुमति मिली।

कारावास से ही बॉस ने 1930 में कलकत्ता महापौर का चुनाव लड़ा और जीतकर महापौर बन गए। इसके चलते अंग्रेजों को रिहा करना पड़ा ।
1931 में बॉस ने नौजवान सभा का सभापतित्व करते हुए भाषण दिया।

सन 1932 में बॉस को फिर कारावास से दंडित किया गया और अल्मोड़ा जेल में भेज दिया गया। वहां पर भी बॉस का स्वास्थ्य खराब हो गया तो उन्हें यूरोप में इलाज करवाने हेतु छूट दी गई।
मांडले जेल से बॉस 13 फरवरी 1933 को  इलाज हेतु वियना गए।

सन 1933 से 1936 तक बॉस यूरोप में रहे व इटली के मुसोलिनी, आयरलैंड के डी वलेरा आदि से संपर्क किया।
  
यूरोप वास के समय 1934 में ऑस्ट्रेलिया में एक पुस्तक लिखते समय रखी अपनी टाइपिस्ट एमिली शेंकल  को अपना जीवन साथी बनाया।


जनवरी 1938 में हरिपुरा  कांग्रेस के 51 वें अधिवेशन में  गांधी जी ने  सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया।
बॉस का भारी स्वागत हुआ। बॉस ने  अधिवेशन में अपना अध्यक्षीय भाषण प्रभावशाली रूप से दिया।

सन 1938 में द्वितीय महायुद्ध के बादल छा रहे थे । बॉस इस मौके का फायदा उठाकर ब्रिटेन के विरुद्ध विदेशी सहायता से अंग्रेजों को भारत से भागना चाहते थे। गांधी जी व अन्य अनुयाई बॉस की इस नीति से सहमत नहीं थे।


सन1939 कांग्रेस के अध्यक्ष पद के निर्वाचन हेतु गाँधी जी ने पट्टाभि सितारे भैया को प्रत्याशी घोषित किया।  सुभाष चंद्र बोस ने पट्टाभि सितारमैय्या के सामने चुनाव लड़ा व सितरैमय्या को 203 मतों से पराजित किया।
गांधी जी ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय बनाते हुए कहा  सीताराम भैया की हार मेरी हार है ।

इस निर्वाचन के बाद कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन था । उस समय बॉस को 102 से डिग्री बुखार था। बॉस ने गांधी जी से अध्यक्षता हेतु निवेदन किया परंतु गांधी जी ने इंकार करते हुए कहा आप अध्यक्ष हैं तो आप ही अध्यक्षता करेंगे।
इस प्रकार  गांधीजी के विरोध के चलते बॉस अपने तरीके से  काम नहीं कर पाए और अंततः मजबूर होकर बॉस को 29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा ।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 3 मई 1940 को फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन कर देशव्यापी आंदोलन किया ।

फॉरवर्ड ब्लॉक के उत्साही देश भगत कार्यकर्ताओं ने कलकत्ता के हालवेट स्तंभ को भारत की गुलामी का प्रतीक मानते हुए रातों-रात इसे ध्वस्त कर इसकी नींव की ईंटे तक उखाड़ कर ले गए ।
इससे क्षुब्ध होकर सरकार ने फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी सदस्यों सहित बॉस को नजरबंद कर दिया।

विश्वयुद्ध की परिस्थितियों में बोस को जेल में रखने से आंदोलन की संभावना को देखते हुए बॉस को उनके घर पर ही नजरबंदी में रखा गया।
घर के बाहर खुफिया पुलिस का निरंतर पहरा रहता था
  शेर वो भी बंगाल का ऐसे समय कैसे नजरबंदी में रह सकता था ।
बॉस दिनांक 16 जनवरी 1941 को मौलवी जियाउद्दीन  बन कर अंग्रेजी खुफिया विभाग की आंखों में धूल झोंक कर पलायन कर गए।


‌  बॉस गोमोह से रेल से पेशावर पहुंचे। पेशावर में बॉस भगतराम तलवार से मिले व उनके साथ गूंगा बन पैदल ही  काबुल की ओर चले।
रास्ते मे पूछताछ के समय पकड़े जाने के डर से बोस को अपने पिताजी से मिली सोने की चैन वाली घड़ी भी एक पुलिसवाले को देनी पड़ी।

काबुल में उत्तम चंद जी मल्होत्रा के साथ रहे। जिन्होंने आपकी काफी सहायता की ।
बॉस 18 मार्च 1941 को सीनो ऑरलैंडो मेजोट्रा बनकर मास्को से बर्लिन गए ।


वहां मुक्ति सेना का गठन किया। बर्लिन में आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की व दिनांक 19 फरवरी 1942 को अपने भाषण में देशवासियों को संबोधित कर कहा हम बाहर से आक्रमण करेंगे आप देश के अंदर लड़ाई लड़े।

हिटलर से हुई मुलाकात के बाद बॉस को  लगा हिटलर  को भारत की आजादी में कोई दिलचस्पी नहीं है।
इसलिए बॉस 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बंदरगाह से
मातसुदा बने हुए अपने साथी आबिद हसन सफ़रानी के  जर्मन पनडु्बी में बैठकर साथ 83 दिनों तक सफर कर के  हिंद महासागर में मेडागास्कर के किनारे तक गए।

वहां से समुद्र में तैर कर जापानी पनडु्बी तक पहुंचे और इंडोनेशिया के बंदरगाह पहुंचे।
 
तोजो के आमंत्रण पर आपने 16 जून 1946 को  जापानी संसद में भाषण किया।
रासबिहारी बोस आपके इंतजार में थे। सिंगापुर एडवर्ड पार्क में रासबिहारी बोस ने इंडिपेंडेंस लीग का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को सौंपा ।
सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र ने 21 अक्टूबर 1940 को  आजाद भारत की अंतरिम सरकार स्थापित की जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया ,चीन , इटली आदि  9 देशों ने मान्यता दी।
जापान में नजरबंद भारतीय सैनिकों को आजाद हिंद फौज में मिलाया गया।
पूर्वी एशिया में बॉस ने प्रवासी भारतीयों को देश की आजादी की लड़ाई का आव्हान करते हुए
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा
नारा बुलंद किया
द्वितीय महायुद्ध के दौरान अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए आजाद हिंद फौज ने जापानी फोर्स के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत पर आक्रमण किया ।
बॉस ने ” दिल्ली चलो का नारा” बुलंद किया ।
आजाद हिंद फौज इंफाल और कोहिमा तक पहुंच गई ।
तोजो ने 1 नवंबर 1943  अंडमान और निकोबार द्वीप बॉस को सम्भलाए।
जिनका दौरा करने के बाद बॉस ने इन द्वीपों के नाम बदलकर “शहीद”“स्वराज” रखा।
बॉस ने इस दौरान 6 जुलाई 1944 कोरंगून रेडियो से महात्मा गांधी को” राष्ट्रपिता” से संबोधित करते हुए आशीर्वाद चाहा।
गांधी जी ने भी बॉस को भारत का राजकुमार बताया।

बॉस ने  बंगलोर कथा व  फारवर्ड दैनिक पत्रों का संपादन भी किया।
बॉस ने द इंडियन स्ट्रगल व इंडियन पिलग्रिम पुस्तक भी लिखी।
बॉस ने बंगाल की विभिन्न क्रांतिकारी  अनुशीलन समिति का युगांतर में  समन्वय हेतु भी प्रयत्न किया।
बंगाल वॉलिंटियर्स का गठन भी बॉस ने किया था ।
बॉस का कहना था
“मैं या तो पूर्ण आंतकवादी हूं या फिर कुछ नहीं।”
”  अपना स्वाभिमान और सम्मान खोने की अपेक्षा, मैं मर जाना पसंद करूंगा।
भिक्षावृत्ति की अपेक्षा में प्राणोत्सर्ग मुझे प्रिय है।”
“,दासत्व मनुष्य का सबसे बड़ा अभिशाप है ।
अन्याय और बुराई से समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है।
कहां जाता है कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में बोस का ध्यान तो गया परंतु इस तथ्य की पुष्टि नहीं हुई इस पर भारत सरकार द्वारा तीन बार आयोग गठित किए गए परंतु अभी तक यह तथ्य किसी भी रूप में सुनिश्चित नहीं हुआ है

हम भारतवासी भारत सरकार से यह अपेक्षा करते हैं की कम से कम यह तो सुनिश्चित कर दिया जावे की  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद युद्ध अपराधियों की सूची में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम नहीं है।
अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को छोड़कर बाहर नहीं जाना पड़ता और भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में की जाती तो हम अंग्रेजों से लड़कर आजादी भी लेते और देश का विभाजन भी नहीं होता।
जयहिन्द ।

:- मिदनापुर एक्शन :-

मिदनापुर या मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल का जिला मुख्यालय है।
मिदनापुर 1902 से ही क्रांतिवीरों का कर्म क्षेत्र रहा है।
यहां पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा गठित क्रांतिकारी दल ” बंगाल वॉलिंटियर्स ” के क्रांतिकारी सक्रिय रुप से आंदोलनरत थे ।
मिदनापुर में अंग्रेज अधिकारी को कलेक्टर लगाया जाता था जो  क्रांतिकारियों के साथ अमानवीय व्यवहार करते थे।
इससे व्यथित क्रांतिवीरों  ने यह निर्णय लिया कि मिदनापुर के अंग्रेज कलेक्टरों को तब तक मारा जाय जब तक भारतीय अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होती।
इस एक्शन का प्रथम शिकार मिस्टर जेम्स पैड्डी , कलेक्टर मिदनापुर दिनांक  7 अप्रैल  1931 को स्कूल की प्रदर्शनी में गए हुए थे।

हाई स्कूल के दो छात्रों विमल दास गुप्त व यति जीवन घोष  ने  पैडी साहब को गोलियों से उड़ा दिया। अगले दिन पैड्डी की मृत्यु हो गई।
बाल क्रांतिकारी मौका से भागने मे सफल रहे । कोई  पता नहीं चला।

इसके बाद मिदनापुर में कलेक्टर मिस्टर रॉबर्ट डग्लस की नियुक्ति की गई।

क्रांतिकारी अपने निर्णय पर अडिग थे ।
मौका देख कर उनके कार्यालय में ही दिनांक 30 अप्रेल 1932 को  गोलियों से भून दिया गया।
क्रांतिकारी प्रद्योत कुमार मौका पर पकड़े गए पर प्रभाशू शेखर भागने में सफल रहे । कभी पकड़ें भी नहीं गए।
प्रद्योत की जेब में एक पत्र मिला जिसमे  लिखा था ।

“हिजली  कैदियों पर अमानुषिकअत्याचारों का हल्का सा प्रतिरोध “
आपको बता दें कि हिजली जेल में दिनांक 16 सितंबर 1931 को जेल के सैनिकों ने रात्रि को जेल में बंद क्रांतिकारियों पर  लाठियों से हमला किया व गोलियों भी चलाई जिसमें  2 क्रांतिकारी संतोष कुमार व तारकेश्वर मित्रा शहीद हो गए थे। 

प्रद्योत कुमार को मिदनापुर केंद्रीय कारागार में दिनांक 12 जनवरी 1933 को फांसी दी गई।

तीसरा शिकार मिस्टर BEJ बर्ग जिसकी नियुक्ति डगलस के बाद मिदनापुर कलेक्टर पद पर हुई।

बर्ग को  दिनांक 2 सितंबर 1933 को फुटबॉल मैदान में मृगेंद्र कुमार दत्त व अनाथ बंधु पंजा ने गोलियों से उड़ा दिया ।
अनाथ बंधु मौका पर ही लड़ते हुए शहीद हुए तथा मृगेंद्र घायल हुए  अगले दिन वे भी शहीद हो गए

इस मामले में निर्मल जीवन घोष, बृजकिशोर चक्रवर्ती, रामकृष्ण राय पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा दी गई।
निर्मल घोष को दिनांक 26 अक्टूबर 1934 को , बृज किशोर चक्रवर्ती व रामकृष्ण राय को दिनांक 25 अक्टूबर 1934 को मिदनापुर केंद्रीय जेल में फांसी दी गई।

तीन फिरंगी कलक्टरों की बलि दिए जाने के बाद । संभवतः कोई फिरंगी मिदनापुर नियुक्ति के लिए तैयार नहीं हुआ ।
सरकार ने  घुटने टेक दिए व मिदनापुर में  भारतीय अधिकारी की नियुक्ति हुई।

शत शत नमन
शहीदों व क्रांतिवीरों को

-: चटगांव में क्रांति -:

भारतीय सशस्त्र क्रांति के इतिहास में 18 अप्रैल 1930  का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है।

इस दिन भारत के महान क्रांतिवीर  सूर्य सेन “मास्टर दा” के नेतृत्व में   चटगांव के क्रांतिकारी दल “इंडियन रिपब्लिकन आर्मी “ ने चटगांव के पुलिस और सहायक बलों के शस्त्रागार के हथियारों को अपने कब्जे में ले लिया।

चटगांव का समस्त संचार तंत्र समाप्त कर अपना प्रशासन स्थापित कर लिया।
चटगांव जिला मुख्यालय पर यूनियन जैक को उतार कर भारत का तिरंगा लहरा दिया व फ़िरंगियों को उनकी औकात बतादी। 
चार दिन तक चटगांव का प्रशासन क्रांतिकारीयों के हाथ मे रहा।


   चटगांव में एक अध्यापक मास्टर सूर्य सेन ने “साम्याश्रम ” के नाम से एक  क्रांतिकारी  दल की स्थापना की । जिसने चटगांव के युवाओं व बच्चों में क्रांति ऊर्जा भर दी ।
ये लोग गांधी जी के आव्हान पर असहयोग आंदोलन के समय कांग्रेस में शामिल हो गए।
पर चोराचोरी घटना  के बाद गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया तो   इनका अहिंसा से विश्वास उठ गया।

दिसंबर 1928 में कांग्रेस का 43वां अधिवेशन कलकत्ता में था। इस अधिवेशन में चटगांव ” साम्याश्रम” के सदस्यों की एक टीम भी शामिल हुइ।

सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में 7000 स्वयं सेवको ने सैनिक वर्दी में कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू को गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया जिसे देख चटगांव की टीम अतिप्रभवित हुई ।

टीम ने चटगांव आकर मास्टर दा व साथियों को बताया ।  विमर्श किया  गया व  साम्याश्रम का नाम “इंडियन रिपब्लिकन आर्मी” रख लिया तथा सशस्त्र क्रांति की तैयारी में लग गए।

चटगांव क्रांतिकारीयों ने चंद्रशेखर आजाद से भी संपर्क किया था। आजाद जी ने इन्हें सहायता का आश्वासन दिया तथा दो बढ़िया रिवॉल्वर भी दिए।
चटगांव  इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के अध्यक्ष मास्टर सूर्य सेन थे ।
आर्मी  के आदर्श  संगठन, साहस और बलिदान तय किये गए।

इंडियन रिपब्लिकन आर्मी ने अपने 20 लक्ष्य  निर्धारित किये ।
(1)  ऑग्ज़ीलियरी फोर्स ऑफ इंडिया के शस्त्रागार को लूटना
(2) पुलिस के शस्त्रागार को लूटना।

(3) आयूरोपियन क्लब के सदस्यों का वध कर क्लब के शोध संस्थान को नष्ट करना।
4)चटगांव के निकटवर्ती रेलवे स्टेशन की पटरियां उखाड़ देना ।

(5) टेलीफोन एक्सचेंज के तार काटकर अन्य स्थानों से उसका संबंध विच्छेद करना।
( 6)तार व्यवस्था नष्ट करना ।

(7)डाकघर को अधिकार में लेना। (8)बंदरगाह की वायरलेस व्यवस्था भंग कर देना।
(9) जेल तोड़कर कैदियों को मुक्त कर देना और राजनीतिक कैदियों को मुक्ति सेना में सम्मिलित करना।

(10)नगर की हथियारों की दुकान लूट लेना।

( 11 )इंपीरियल बैंक और  कोष लूटकर धन प्राप्त करना ।

(12)नगर के उन मार्गों को नियंत्रण  । (13)पुलिस लाइन के कार्यालय पर अधिकार करके उसे मुक्ति सेना का कार्यालय बनाना।
(14)चटगांव में स्वतंत्र सरकार की स्थापना करना।
(15)यूनियन जैक उतार कर उसके स्थान पर तिरंगा ध्वज फहराना। (16)गुरिल्ला युद्ध के योग्य स्थलों की खोज करना।
(17)फ्रांस अधिकृत प्रदेश में आश्रय स्थलों की खोज करना।

(18)अंग्रेज भक्त अवसरों का वध करना।
(19)नागरिक क्षेत्रों में सुरक्षा की भावना उत्पन्न करके उन्हें अपने पक्ष में करना।
(20)खतरे की स्थिति में बाहर की क्रांतिकारी पार्टियों से सहायता प्राप्त करना।

इस रूपरेखा के अनुरूप तैयारियां करने के बाद दिनाँक 18 अप्रैल 1930 को  इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के सभी सैनिक वर्दी पहन कर  निजाम पलटन के मैदान में एकत्रित हुए।
रात्रि के ठीक 9:45 बजे सभी टुकड़ियों के दल नायकों को आक्रमण का आदेश दिया गया ।
निश्चित  योजना अनुसार समय पर सभी टुकड़ियों ने अपने अपने कार्य में जुट गए।
  तार व्यवस्था को ठप किया ,  रेल की पटरीयों को उखाड़ा , वायरलेस व्यवस्था ठप्प की ,  शस्त्रागार पर कब्जा कर हथियार कब्जे में लिये,

गणेश घोष और अनंत सिंह पुलिस अफसरों की वर्दी पहने अपनी गाड़ी में  पुलिस शस्त्रागार के अंदर तक  जा पहुंचे। 
पहरे पर तैनात बंदूकधारी ने समझा बड़े अफसर निरीक्षण के लिए आए हैं।
सिपाही कुछ समझता इससे पहले ही गोली का शिकार हुआ। 

क्रांतिकारीयों ने माल खाने से हथियार व अपने लिए उपयोगी सामान गाड़ी में लाद लियाया तथा शेष को पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी ।

लोकनाथ बल कर  मिलिट्री की वर्दी  में हेलमेट लगाए हुए  सेना के शस्त्रागार तक पहुंचे ।
सामने एक सिपाही खड़ा था। जिसे गोली मार दी गई।
अंग्रेज अफसरों का भोजनालय पास में ही था । वहां से कुछ सैनिक आये । गोलियां चली जिसमें सार्जेंट मेजर केरल मारा गया ।
फौज के शस्त्रागार का ताला  तोड़कर सफलतापूर्वक सारे हथियार  कब्जे में लिए गए।

मास्टर दा सूर्यसेन एक्शन  मौजूद थे ।उन्होंने चटगांव जिला मुख्यालय यूनियन जैक को उतारकर भारत का तिरंगा ध्वज फहराया और संक्षिप्त भाषण भी दिया।

अर्धेन्दू एक्शन से एक दिन पूर्व बम्ब बनाते हुए घायल हो गए थे फिर भी एक्शन में भाग लिया।

अर्धेन्दू को 22 अप्रेल 1930 को घायल अवस्था मे गिरफ्तार किया गया था । अगले दिन अपने प्राणों की आहुति दी।

इस एक्शन में बच्चों सहित कुल 65 क्रांतिकारीयों ने भाग लिया।
एक्शन के बाद दिनाँक 22 अप्रैल 1930 को क्रांतिकारीयों ने जलालाबाद पहाड़ी पर डेरा लगा रखा था। पहले पुलिस ने घेरा डाला।
  क्रांतिकारीयों ने एक सार्जेंट सहित कई सिपाहियों को मार डाला।
तीन दिन बाद अंग्रेजों ने गोरखा राइफल्स  बटालियन  के 15000 जवान और भेजे ।
22 अप्रेल को शाम 5 बजे  बंगाल की भूमि पर क्रांतिकारीयों व फ़िरंगियों की फ़ौज व पुलिस के दलों में कई घंटों तक अनोखा लड़ाई हुई ।

क्रांतिकारियों ने दो मोर्चे बनाएं एक मोर्चे को मास्टर दा खुद संभाल रहे थे।
दूसरे को लेफ्टिनेंट लोकनाथ दल संभाल रहे थे ।


इस लड़ाई की शुरुआत देखने योग्य थी 13 वर्ष का एक बाल क्रांतिकारी  हरि गोपाल  राइफल लेकर मोर्चे से बाहर निकल कर फौज के  सामने खड़े होकर फायरिंग की और अकेले ने ही फौज के 6 जवानों को ढेर कर दिया और ख़ुद शहीद हो गया।
इसी प्रकार 13 वर्षीय 11 वर्षीय बालक निर्मल लाल और फिर भट्टाचार्य आदि शहीद हुए।

आधुनिक हथियारों से सज्जित गोरखा राइफल व पुलिस की सयुंक्त टीम से बाल क्रांतिकारियों के साथ अंतिम लड़ाई के परिणाम की संभावना को समझ यामास्टर दा ने  मध्य रात्रि में अपने साथियों को पहाड़ी से निकल अलग अलग गांवो में जाकर  छिपने के आदेश दे दिए ।
जलालाबाद की इस लड़ाई  में 12 क्रांतिकारी शहीद हुए व गोरख राइफल व पुलिस  के 160 जवानों को मौत के घाट उतार दिया ।
 
शहीदों में हरि गोपाल बल ,त्रिपुर सेन, निर्मल लाला , विधुभूषण भट्टाचार्य, नरेश रे,  शंशाकदत्त, मधुसूदन दत्त , पुलिन विकासघोष, जितेंद्र दास गुप्त, प्रभास बल और मोतीलाल कानून को थे।

एक्शन के बाद अमरेंद्र नंदी चटगांव चटगांव के एक विद्यालय में छिपे हुए थे जिसकी पुलिस खबर लग गई  । नंदी स्कूल से निकल भागकर एक पुलिया के नीचे छिपे पर पुलिस ने पीछा कर  पुलिया को चारों तरफ से घेर लिया और गोलियां चलाने लगी।
कुछ देर तक नंदी मुकाबला करते रहे और गोलियां खत्म हो गई तो ख़ुद को गोली मारकर  आत्म बलिदान  किया ।

चटगांव जिला का कुमीरा गांव एक चूड़ी वाला रंग बिरंगी चूड़ियां बेचते हुए घूम रहा था।
एक लड़की ने आवाज लगाई चूड़ी वाला भैया चूड़ियां दिखाना जरा और चूड़ीवाला लड़की को चूड़ियां दिखाने लगा ।
इसी बीच लड़की ने एक कागज का टुकड़ा चूड़ी वाले के हाथ में थमा दिया
चूड़ी वालों ने देखा कागज बिल्कुल सफेद है ।

चूड़ी वाले ने कागज पर डाला तो उस  पर कुछ अक्षर उभर आये
‘”‘ कच्ची पक्की रोटियां और पतली दाल खाते खाते हम लोग परेशान हैं। लड्डू जलेबियाँ भिजवाने का प्रबंध कीजिए ।”
यह चूड़ी वाला कोई और नहीं मास्टर दा सूर्य सेन थे और लड़की उनकी शिष्या कूदनी कुमुद थी ।
जो क्रांतिकारियों के पोस्ट बॉक्स के रूप में काम करती थी ।
यह समाचार सांकेतिक भाषा में जेल से क्रांतिकारीयों ने भिजवाया था ।
लड्डू जलेबियाँ मतलब बम्ब व हथियार।

जेल से फ़रार होने की योजना बानी ।  क्रांतिकारियों को जेल में विस्फोटक पदार्थ , डायनामाइट आदि भिजवाए गए ।

सुरंग बनने लगी जेल के पास में एक मकान किराए पर लिया गया। जिसमें बम  व डायनामाइट लगाए गए ।

जेल से भी डायनामाइट से विस्फोट कर रास्ता बनाकर भाग लिया जाए ।
सब कुछ तैयारियां चल रही थी ।

दुर्भाग्य से एक दिन मकान मालकिन झाड़ू लगा रही थी तो उसे दीवार के नीचे दबे तार देख कर  आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया।
बात पुलिस तक पहुंच गई और पुलिस को पता चल गया । मकान की तलासी में  विस्फोटक आदि पकड़ लिए गए ।
इसे घटना को डायलॉग डायनामाइट नाम से जाना जाता है।
  इस घटना के बाद प्रशासन पर दबाव पड़ा और प्रशासन ने क्रांतिकारियों के साथ यह समझौता किया कि डायनामाइट मामले में किसी भी क्रांतिकारी के विरुद्ध कोई केस नहीं बनाया  जाएगा तथा चटगांव एक्शन शस्त्र आगरा लूटने के मामले में सरकार बड़ी सजाएं नहीं देगी।
यह बहुत बड़ी जीत थी।
जनवरी 1932 में एक्शन के  बाद में गिरफ्तार किए गए लोगों पर मुकदमा चलाया गया ।
मुकदमा का निर्णय 1 मार्च 1932 को  दिया गया।  गणेश घोष, लोकेनाथ ‘आनन्द गुप्ता (सोलह वर्षीय) अनन्त सिंह सहित 12 क्रांतिकारीयों अजीवन निर्वासन की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया।
दो को तीन साल की जेल की सजा मिली । शेष 32 व्यक्तियों को बरी कर दिया गया।


क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिये एक तीव्र छापेमारी शुरू हुई।
पूर्व मे गिरफ्तार क्रांतिकारियों का जेल की यातनाओं से मनोबल न कम नहीं हो इसलिए मास्टर दा के निर्देशानुसार अनंत सिंह  दिनाँक 28 जून 1930 को चंदन नगर से कलकत्ता आकर आत्मसमर्पण किया व गिरफ्तार हुए।
इस एक्शन में अंनत सिंह द्वारा हथियारों व बम्बो की व्यवस्था की गई थी।
एक्शन में अनंत सिंह पुलिस शस्त्रागार को लूटने में गणेश घोष के मुख्य सहायक थे।
दिनांक 22 अप्रैल 1930 को चटगांव हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के कुछ क्रांतिकारी  जलालाबाद की पहाड़ियों में पुलिस से युद्ध कर रहे थे
उसी दिन गणेश घोष ,अनंत सिंह जीवन घोषाल और आनंद गुप्त चटगांव में थे ।
उन्होंने अपने घायल साथी हिमांशु को अपने एक मित्र के यहां छोड़ा था ।
दोनों ने चटगांव से कलकत्ता जाने का प्रोग्राम बनाया । तब तक  रेलवे सर्विस शुरू हो चुकी थी ।
दूरदर्शिता से काम में लेते हुए दोनों ने कलकत्ता की बजाय  फैनी स्टेशन के लिए  टिकेट लिए।
स्टेशन मास्टर को शक हो गया उसने फैनी स्टेशन मास्टर को तार से सूचना दे दी  ।
जब चारों कांतिवीर फैनी  पहुंचे तो  पुलिस का तैयार पाया।
पुलिस ने काफी देर तक गोलियां चलाई।मुकाबले में पुलिस को हराकर भागने सफल हुए।


ये  चंद्रनगर (फ्रांस अधिकार क्षेत्र )में एक मकान में छुपे हुए थे। लोकनाथ भी चंद्र नगर आ गए। 

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी चार्ल्स टेगार्ट  खूंखार और होशियार पुलिस अधिकारी था ।
टेगार्ट ने गुप्त रूप से योजना बनाई तथा अपने साथ सारे फिरंगी  सिपाही व पुलिस अधिकारी लिए।
किसी को कोई ख़बर नहीं होने दी।
 

वादेदार  ने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम में से यूरोपीयन क्लब जिसके गेट पर लिखा होता था Dogs and Indian not allowed पर 24 सितंबर 1932 को हमला किया क्लब में अधिक फ़िरंगियों के होने के कारण अपने साथियों को सुरक्षित भेजा।
प्रीतिलता  के गोली लगने से वह घायल हो गयी । इसलिए जहर खाकर आत्म बलिदान किया।

 
 क्रांतिकारियों को पता चला कि पुलिस महा निरीक्षक मिस्टर किंग क्रेग कोलकाता से चटगांव दौरे पर आने वाला है क्रांतिकारियों की योजना थी बनी की निरीक्षण के बाद पुलिस सुरक्षा कम होगी इसलिए करेक्ट को निरीक्षण के बाद वापस लूटते हुए मारा जाए।

रामकृष्ण विश्वास व काली पद चक्रवर्ती ने अपनी योजना के अनुसार हथियार लेकर ट्रेन में सवार हो गए ।

गाड़ी 1 दिसंबर 1930 को कानपुर स्टेशन पर चांदपुर स्टेशन पर रुकी तो चांदपुर स्टेशन पर इंस्पेक्टर तारिणी मुखर्जी ट्रेन से उतरा तो वहां खड़े एक पुलिस वाले ने तारिणी मुखर्जी को सेल्यूट किया।

मुखर्जी की पीठ क्रांतिकारियों की तरफ थी। उन्होंने मुखर्जी को अपना टारगेट समझ कर गोलियां चलादी।

मिस्टर क्रैक ट्रेन में बैठा था उसने खिड़की से क्रांतिकारियों को गोलियां चलाते देखा व क्रांतिकारियों पर गोलियां चलाई।

पुलिस से मुकाबला हुआ दोनों पकड़े गए। राम विश्वास के पास जिंदा बम्ब और दोनों के पास एक एक रिवाल्वर बरामद हुआ।

पुलिस इंस्पेक्टर तारिणी मुखर्जी हॉस्पिटल ले जाते वक्त रास्ते मे मर गया।

रामकृष्ण विश्वास को फांसी व पद चक्रवर्ती को आजन्म काला पानी की सजा हुई । रामकृष्ण विश्वास को अलीपुर सेंट्रल जेल में 4 अगस्त 1931 को फांसी दी गई

हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी  चटगांव के 6 क्रांतिकारियों का एक दल मुकाबले के बाद अलग हो गया था।
इन लोगों ने चटगांव के यूरोपियन क्लब पर आक्रमण करने की योजना बनाई। 
यूरोपियन क्लब चटगांव क्रांतिकारियों के एजेंडे में था।
स्वदेश रे ,  रजत सेन देव प्रसाद गुप्ता और मनोरंजन सेन पूरी तैयारी के साथ चले ।
पुलिस को इसकी सूचना मिल गई और पुलिस ने पीछा किया   कालारपोल  स्थान पर पुलिस ने घेर लिया।
यहां से मुकाबला करते हुए निकल गए व रात्रि को पास ही जुलडा गांव में रुके
पुलिस रात भर पीछा करती हुई वहां पर भी पहुंच गई पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया फायरिंग शुरू हुई ।
क्रांतिकारियों के पास गोलियां खत्म होने लगी तो इन्होंने  निर्णय लिया कि पुलिस के हाथों गिरफ्तार होने से पुलिस को सम्मान मिलेगा व जेल यातनाएं झेलने से अच्छा है आत्म बलिदान करें।
सब ने एक दूसरे के गोली मारकर आत्मबल दान का एक विचित्र उदाहरण पेश किया ।

तारकेश्वर दस्तीदार व दल के कुछ क्रांतिकारी ‘गोहिरा” नामक गांव में रुके हुए थे पुलिस को सूचना मिल गई दिनांक 19 मई 1933 को पुलिस ने मकान को घेर कर निराकरण कर दिया कुछ देर दोनों तरफ से मुकाबला हुआ तारकेश्वर दस्तीदार और 1 साथी भागने में सफल हुए। पूर्ण चंद तालुकदार और  मनोरंजन दास पुलिस फायरिंग में शहीद हो गए।

एक 15 वर्ष के बाल क्रांतिकारी हरिपद भट्टाचार्य ने 30 अगस्त 1931 को पुलिस इंस्पेक्टर खान बहादुर असनुल्ला का वध करने हेतु  फुटबॉल मैदान में खान को गोलियों से उड़ा दिया
बालक भागा नहीं मौका पर पकड़ लिया गया  ।

बाल क्रांतिकारी की  मुक्कों व  ठोकर से  पिटाई गई। गिरफ्तारी के बाद मुकदमा व दिनाँक 22 दिशम्बर 1931 को हरिपद को हत्या एवं अवैध हथियार रखने के जुर्म में आजीवन काला पानी की सजा दी गई।

दिनाँक 31 अगस्त 1930 रात्रि को चंदननगर मकान को लिया गया ।दोनों तरफ से मुकाबला हुआ एक क्रांतिकारी जीवन घोषाल को गोली लगी  और गणेश घोष, लोकनाथ बल व आनंद गुप्त को गिरफ्तार कर लिया गया। इस एक्शन को “मिडनाइट ड्रामा” के नाम से जाना जाता है।

चटगांव क्षेत्र के पाटिया नामक स्थान के थानेदार माखनलाल दीक्षित ने कोइराला गांव के एक जमीदार नेत्रसेन को अपने साथ मिला लिया और उसे 10000 रुपये का प्रलोभन दिया।  
इस षड्यंत्र के द्वारा नेत्रसेन ने मास्टर दा  को अपने पास बुलाया।
मास्टर दा दिनांक 16 फरवरी 1933 को रात्रि को अपने आठ साथियों के साथ गांव कोइराला में  नेत्रसेन के पास मेहमान बन पहुंच गए ।


उनके साथ दल की एक महिला सैनिक कल्पना दत्त भी थी।

नेत्रसेन ने इनाम के लालच में मुखबिरी की जिस पर मास्टर दा को 16 फरवरी 1933 को  गिरफ्तार कर लिया गया । लेकिन  चटगांव क्रांतिकारियों ने नेत्र सेन को ब्रिटिश सरकार से इनाम के 10,000 रुपये प्रप्त करने से पहले कुछ गोलीयां इनाम में दे दी।

जेल में अमानवीय यातनाओं को सहने के बाद 12 जनवरी 1934 मास्टर दा व तारेश्वर दस्तीदार को फांसी दी गयी।

मास्टर दा ने आखरी सांस  बंदे मातरम् के साथ लिया।
अत्याचारियों ने शव को फांसी के तख्ते लटका दिया।
उसी रात तारकेश्वर दस्तीदार को भी  फाँसी दे दी गई ।
दोनों की शवों को  समुद्र में फेंक दिया गया।

:- अल्लूरी सीताराम राजू -:

 आपने  जंगल के आदिवासीयों व जंगलो को फ़िरंगियों से बचाने केलिए ऐतिहासिक युद्ध शुरू किया।

आपका जन्म तिथि निश्चित नहीं है पर संभवतः (4 जुलाई) या(4जनवरी)या(15) जनवरी 1897 को पाण्डुरंगी,(पन्ड्रिक) विशाखापटनम आन्ध्र प्रदेश में हुआ।
आप 18 वर्ष की आयु में सन्यासी बन गये थे। पर 1921 में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े । असहयोग आंदोलन वापसी पर आप क्षुब्ध हो गए व सशस्त्र आंदोलन की तैयारी में लग गए।
आपने 300 सैनिकों की फ़ौज तैयार करली थी।
गौतम डोरे व मल्लूडोरे आपके सेनापति थे।

उन दिनों बीरैयादौरा नामक एक वीर ने आदिवासियों का एक छापामार दस्ता बनाया व फ़िरंगियों के विरुद्ध बिगुल बजा रखा था।
बिरैया को गिरफ्तार किया गया पर वह जेल से फ़रार होकर जंगलों में आगया ।अब बिरैयादौरा की मुलाकात सीताराम  राजू से हो गयी थी।
फ़िरंगियों ने बीरैयादौरा को फिर पकड़ लिया व उसे फांसी पर लटकाने की तैयारी में थे।
  सीताराम राजू  ने फ़िरंगियों को खुली चुनौती देते हए कहा वह बिरैया को जेल से ले जायेगा।

कोई रोक सकता है तो रोकले।
    एक दिन पुलिस  बीरैया को  अदालत ले जा रहा थी। सीताराम राजू ने अपने दल सहित रास्ते मे धावा बोल दिया व भयंकर गोलीबारी के बीच राजू बिरैया को छुड़ा ले गया।
इस मुठभेड़ में राजू का एक भी सैनिक शहीद नहीं हुआ।
फ़िरंगियों ने राजू की गिरफ्तारी पर लाखों रुपयों का ईनाम रखा।
अब राजू फ़िरंगियों व पुलिस के लिए डर बन गया।
राजू ने दस से अधिक थानों को लूटकर कर हथियार एकत्रित किये।
उन दिनों गदर पार्टी के क्रांतिकारी बाबा पृथ्वी सिंह आंध्र प्रदेश की राज महिंद्री जेल में थे ।
राजू ने बाबा पृथ्वी सिंह को छुड़ाने का ऐलान कर दिया।
  पुलिस राजू के ऐलान को अच्छी तरह समझती थी ।
आसपास के थानों की पुलिस बुलाकर राजमहेन्द्री जेल में लगा दिया गया ।  राजू  ने  स्तिथि का लाभ उठाया व एक साथ अलग टोलियां बनाकर कई थानों पर आक्रमण करवा दिया व थानों को लूट कर हथियार ले गए।

राजू का ठिकाना आंध्र का रम्पा क्षेत्र था। यहाँ के सभी आदिवासी राजू  को दिल से  चाहते थे।

इसलिये अन्य स्थानों की तरह राजू व दल को मुखवरी का भय नहीं था।
फ़िरंगियों ने बाहर से पुलिस दल बुलवाया पर राजू ने सब को मार भगाया।
सरकार ने दो विशेष खूंखार पुलिस अधिकारी नेस्कोर्ट व आर्थर को भारी पुलिस दल के साथ भेज ।
ओजेरी गांव के पास मुठभेड़ हुई राजू दल ने नेस्कोर्ट व आर्थर को मार दिया।

अन्ततः फ़िरंगियों ने 6 मई 1924 को सेना की असम राइफल्स ब्रिगेड को भेजा ।
  राजू को पेड़ से बांध कर गोलियां चलाई गई।
राजू के शहीद होने के बाद गौतम डोरे ने कमान संभाली वो भी शहीद हो गए। इस लड़ाई में राजू के 12 सैनिक शहीद हुए।
मल्लूडोरे को गिरफ्तार कर फाँसी दी गई।

शत शत नमन शहीदों को

:- क्रांतिवीर गोपी मोहन साहा -:

सन 1923 तक बंगाल ऑर्डिनेंस की आड़ में बंगाल के लगभग सभी क्रांतिकारीयों को पकड़ कर उनके सभी ठिकानों पर छापे मारे जा चुके थे।बंगाल में खूंखार पुलिस अधिकारी टेगार्ट का आतंक था।

टेगार्ट इस क़दर खतरनाक पुलिस अधिकारी , उसकी मेज पर बम पड़ा रहता था ।

एक बार तो उसके कार्यालय में एक बम्ब फट गया ,वह पास ही खड़ा था पर टेगार्ड के चेहरे कोई शिकन नहीं आयी।

टेगार्ट ने ही बाघा जतिन व उनके साथियों का एनकाउंटर किया था।

तिथि विवादित है 2 या 12 जनवरी 1924 को कलकत्ता में कोहरा छाया हुआ था । चौरंगी रोड पर सुबह 7:00 बजे अचानक एक युवक ने एक फिरंगी को गोलियां से उड़ा दिया।

युवक ने अपने शिकार को टेगार्ट समझ कर मारा था। पर मरने वाला ई डे था। उसकी शक्ल टेगार्ट जैसी थी । कोहरे के कारण युवक अपने टारगेट को पहचान नहीं कर सका।

यह युवा क्रांतिकारी गोपी मोहन साहा थे। युवक ने भागते हुए तीन को गोली मार कर घायल किया पर पकड़ा गया।

अदालत में कार्यवाही के समय टेगार्ट अदालत में मौजूद था । गोपी मोहन ने खुले न्यायालय में बड़े सख्त शब्दों में कहा की मैं तो मिस्टर टेगार्ट को मारना चाहता था। लेकिन पहचान में गलती हो गयी । निर्दोष ई डे के मारे जाने का मुझे अफसोस है ।

यही नहीं गोपीमोहन ने टेगार्ट की और इशारा करते हुए चुनौती दी कि अगर बंगाल में एक भी क्रांतिकारी है, तो वह मेरा अधूरा काम पूर्ण करेगा ।

मिस्टर टेगार्ट अपने को सुरक्षित समझते होंगे।

अदालत में आरोप लगाने के समय भी गोपीमोहन ने जज से कहा आरोप लगाने में कंजूसी मत कीजिए और दो चार धाराएं लगाई जा सकती है तो लगाइए ।

कैसे भूल गए हम ऐसे महान क्रांतिवीरों को!?

सोसिअल मीडिया पर इनके जन्म परिवार , जीवन का पूर्ण ब्यौरा नहीं है।

गोपीमोहन को अदालत ने 16 फरवरी 1924 को फांसी की सजा सुनाई । दिनाँक 1 मार्च 1924 को फांसी दे दी गई।

शत शत नमन शहीदों को

:-मुकंदी लाल गुप्ता-:


आप मूलतः औरैया इटावा के निवासी थे।
आप क्रांतिकारी संस्था मातृदेवी के कमांडर इन चीफ गेंदालाल दीक्षित के सानिध्य में थे।
” मातृ देवी ” का उद्देश्य भी सशस्त्र क्रांति था । इस दल के द्वारा हथियार खरीदने हेतु आयरलैंड क्रांतिकारियों की तरह धनी लोगों पर डाके डालकर धन अर्जित करना था ।
  मातृ देवी के एक भावी एक्शन के अनुसार एक बड़े आसामी के यहां डाका डाला जाना था।
जिस व्यक्ति को आसामी के संबंध में सूचना देने हेतु दे तो दिया गया था ।
वह व्यक्ति पुलिस मुखबिर बन गया और उसने पुलिस को बता दिया। जिसके कारण गिरफ्तारियां हुई।

मैनपुरी केस में आपको 6 वर्ष के कठोर कारावास सजा दी गई थी। गिरफ्तारी के बाद आपको  अमानवीय  यातनाये दी गई थी।
इस मामले में 6 वर्ष की सजा काटने के बाद आप शांत होकर घर पर नहीं बैठे अपितु शचीन्द्रनाथ बख्शी के संपर्क में आए व क्रांतिकारी संस्था हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए।
तब तक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल व साथियों द्वारा  काकोरी एक्शन की पृष्ठभूमि तैयार की जा चुकी थी।
काकोरी एक्शन से पूर्व दल की शाहजहांपुर में दिनाँक 7 अगस्त 1925 को बैठक हुई जिसमें आप भी उपस्थित थे।
इस एक्शन में आपको यह दायित्व दिया गया था कि आप अन्य साथियों के साथ एक्शन पूर्ण होने तक  रिवाल्वर से फायर करके ट्रेन में बैठे मुसाफिर  को डराते रहेंगे
काकोरी एक्शन 9 अगस्त 1925 को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और मौका पर कोई क्रांतिकारी नहीं पकड़ा गया
काकोरी केस में बनवारी लाल सरकारी गवाह बन गया। जिसने दल की समस्त सूचनाएं पुलिस को दे दी।
जिसके आधार पर आपके सहित कुल 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया था ।
काकोरी केस में  बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खान व ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई थी।
  शचिंद्र सान्याल , शचींद्र बख़्शी व आपको आजन्म काला पानी की हुई थी।
   द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सरकार द्वारा की गई आम रिहाई में आप जेल से बाहर आये।
देश की गुलाम के रहते आपका युद्ध कैसे ख़त्म हो सकता था।
आप 1942 में असहयोग आंदोलन में  कूद गए जिसमें भी आपको  7 वर्ष का कठोर कारावास हुआ ।


मैनपुरी एक्शन में बिस्मिल फ़रार रहे।
मैनपुरी एक्शन केस कार्यवाही में आपको अखबार बांटने वाला हॉकर बताया गया था।
मातृ-देवी के द्वारा  संयुक्त प्रांत के पुलिस एवं प्रशासन के 12 बड़े सरकारी अधिकारियों का वध किया जाना था।
पर पुलिस को इस योजना का पता चल गया इसलिए यह योजना सफल न हो सकी ।

(कृपया इनके बाल्यकाल व अंतिम जीवन के बारे में कहीं जानकारी नहीं मिली ।आपको कोई जानकारी है तो देंवें)

शत शत नमन

– काकोरी वीर रामकृष्ण खत्री –

आपका जन्म  3 मार्च 1902 को गांव चिखली जिला बुलढाणा बरार महाराष्ट्र में हुआ था।
आप बाल गंगाधर तिलक से बहुत  प्रभावित थे। आपने युवा अवस्था में संयास ले लिया था।तिलकजी ने आपको एक उदासी साधु संप्रदाय का सचिव बना दिया।
अब आप स्वामी गोविंद प्रकाश के नाम से सन्यासी बन कर रह रहे थे।
  उन्हीं दिनों चंद्रशेखर आजाद भी एक महंत के शिष्य बने हुए , महंत के मरने का इंतजार कर रहे थे । यह दल की योजना के अंतर्गत था ताकि महंत के मरने पर उसकी संपत्ति क्रांतिकारी दल के काम आ सके।
एक दिन चंद्रशेखर आजाद की स्वामी गोविंद प्रकाश से मुलाकात हुई । दोनों एक दूसरे से पहले परिचित थे।
बातचीत के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने दल की योजना अनुसार महंत का शिष्य बनने की कहानी सुनाते हुए बताया महंत बलवान है मरनेवाला नहीं इसलिए अब वो वापिस जाएंगे ।
बातचीत में  स्वामी गोविंद प्रकाश ने भी सन्यासियों के चरित्रहीन होने के बारे में बताया।
आज़ाद ने देशभक्ति के लिए प्रेरित किया तो स्वामी जी का ह्रदय परिवर्तित हो गया ।
अब दो सन्यासियों के स्थान दो क्रांतिकारीयों ने लिए व क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री बन गए क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य ।
आपको मराठी भाषा का ज्ञान था इसलिए दल के गठन हेतु  बिस्मिल ने आपको उत्तरप्रदेश से मध्यप्रदेश भेज दिया।
काकोरी एक्शन के बाद जब पूरे हिन्दुस्तान से गिरफ़्तारियाँ हुईं तो आपको को पूना में गिरफ्तार कर  लखनऊ जेल में अन्य क्रान्तिकारियों के साथ रखा गया। आप वास्तव में काकोरी एक्शन मर शामिल नहीं थे पर आपको भी आरोपित कर मुकदमा चलाया गया।
आपको मध्य भारत और महाराष्ट्र में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का विस्तार करने का दोषी माना गया व दस वर्ष की सजा सुनाई गई।
सजा काटकर जेल से छुटने के बाद आपने क्रांतिवीर  राजकुमार सिन्हा के घर का प्रबन्ध किया
फिर योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिये प्रयास किया।
उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया।  
आपने एक पुस्तक “शहीदों की छाया “में भी प्रकाशित की।
शत शत नमन क्रांतिवीरों को

-काकोरी वीर मन्मंथगुप्त –

आपका जन्म 7 फरवरी 1908 को बनारस में हुआ । आपने काशी विद्यापीठ से विशारद की परीक्षा पास की थी।
आपकी आयु मात्र 14  वर्ष की थी जब आपने प्रिंस एडवर्ड के बनारस आगमन पर  पर्चे बांटे  थे।
इस मामले में आपको 3 माह की सजा काटनी पड़ी।

गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन  वापिस लिए जाने के बाद आप का सानिध्य बंगाल के क्रांतिकारियों से हुआ और आप सशस्त्र क्रांति पथ पर आगे बढ़े।


आप क्रांतिकारी दल ” हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन “के सक्रिय सदस्य थे। काकोरी एक्शन के समय आप भी साथ थे।जब अश्फाक खजाने वाला बक्सा तोड़ने लगे तो अपना माउज़र आपको दिया ताकि आप माउजर तानकर ट्रैन में बैठे लोगों को डराए रखे।

आपके हाथ से घोड़ा दब गया जिससे अहमद अली नामक यात्री की मृत्यु हुई जिसकी हत्या के अपराध मेंआपकी आयु कम होने के कारण आपको 14 वर्ष कारावास की सज़ा हुई थी।

आपके पिता श्री वीरेश्वर जी आपसे मिलने आये तो आप रोने लगे । आपके आपके पिता ने आपको रोने से रोकते हुए कहा –  – “I don’t expect tears in eyes of my son”.

आपकी अध्ययन व लेखन में रुचि थी। आपने हिंदी , इंग्लिश व बंगाली में करीब  120 पुस्तकें लिखी।

आपके द्वारा लिखित पुस्तकों में ‘भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास’ , ‘क्रांति युग के अनुभव ‘, “चंद्रशेखर आजाद” , “विजय यात्रा”  , “यतींद्र नाथ दास” ‘कांग्रेस के सौ वर्ष” ,’ “द लिवड़ डेंजरसली”, ” रेमिनीसेंसेज ऑफ़ अ रेवोल्यूशनरी”, “भगत सिंह एंड हिज़ टाइम्स”, “आधी रात के अतिथि”, ” कांग्रेस के सौ वर्ष”,  “दिन दहाड़े” ” सर पर कफन बाँध कर”, “तोड़म फोड़म”, “अपने समय का सूर्य:दिनकर”, और “शहादतनामा” मुख्य है।  
आपको  1937 में जेल से छोड़ा गया।
आजादी के बाद आपने सूचना प्रसारण मंत्रालय कार्य किया।
जब डीडी ने 19 दिसम्बर को बिस्मिल की फांसी के 70 साल बाद 1997 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई तो आपने काकोरी एक्शन के समय गोली चलाये जाने की ग़लती को स्वीकार किया ।


ऐसी गलती एक बार आज़ाद जी से भी हुई थी जब उन्होंने अपने माउज़र को खाली समझ कर आप पर फ़ायर कर दिया ।गोली आपके सर के पास से निकल गयी। 
आपका स्वर्गवास दिनाँक 26 अक्टूबर 2000 में हुआ।
शत शत नमन

:-  बसंतकुमार बिश्वास -:

    
आपका जन्म 6 फ़रवरी 1895 को गांव पोरागाचा जिला नादिया पश्चिमी बंगाल में हुआ था।
  आप रासबिहारी बोस के सानिध्य में थे तथा क्रांतिकारी दल “युगान्तर “के सक्रिय सदस्य थे।  
आप देहरादून में रासबिहारी बॉस के नोकर हरिदास के रूप में रहे थे।  लाहौर में एक क्लीनिक में कंपाउंडर बन कर रहे।
आप भाई बालमुकुंद के साथ पंजाब में संगठन का कार्य देख रहे थे।
दल द्वारा दिनाँक 23 दिशम्बर 1912 को दिल्ली में वॉयसराय हॉर्डिंग को व दिनाँक 17 मई 1913 को फ़िरंगियों के सिविल ऑफिसर्स को उड़ाने हेतु  लॉरेंस गार्डन लाहौर में बम्ब हमले किये गए ।
दोनों ही एक्शन के बाद कोई गिरफ्तार नहीं हुई।
वॉयसराय हार्डिंग पर औरत के वेष में बम्ब फेंका गया। अब तक प्राप्त कुछ सामग्री के अनुसार प्रतापसिंह बारठ भी पंजाब नेशनल बैंक ,जहां से बम्ब फेंका गया ,पर बुर्का पहने हुए थे और बम्ब उनके पास भी था तथा उन्होंने दीवार की ऊंचाई के आधार पर बम्ब फेंकने का पूर्व अभ्यास भी किया था।
इस पर अभी गहन अध्ययन की आवश्यकता है।
क्रांतिकारी एक्शन में टीम वर्क होता था। कोई टारगेट की सूचना देता ,

कोई टारगेट पर फायर या बम्ब फेंकता ,मुख्य एक्शन कर्ता के साथ एक और सहायक होता था जो हमले के बाद सुनिश्चित करता था कि काम पूर्ण हुआ या नहीं।

अगर टारगेट में कोई कमी होती तो सहायक पूर्ण करता था। यही सम्भव है कि आप व बारठ  दोनों ही इस एक्शन पर काम कर रहे हो ।

दिल्ली एक्शन से सरकार की जड़े हिलती हुई महसूस होने लगी । पुलिस ने पुरजोर देशभर में छापे मारे व हर संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार किया ।
इसी क्रम में कलकत्ता में  राजा बाजार स्तिथ मकान में छापा मारा गया व अवधबिहारी को गिरफ्तार किया गया ।
मकान में बम्ब की टोपी तथा लाहौर से M S द्वारा हस्ताक्षररित एक पत्र बरामद हुआ । जिसके बारे में पुलिस को पता चल गया कि दीनानाथ का लिखा हुआ है ।
दीनानाथ गिरफ्तार हुआ तो उसने पुलिस को सब कुछ उगल दिया ।इस बयान के आधार पर दिनाँक 26 फ़रवरी 1914 आपकी गिरफ्तारी हुई ।
फ़िरंगियों ने दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र या दिल्ली षड्यंत्र के नाम से सम्राट के विरुद्ध   युद्ध करने के लिए  मास्टर अमीरचंद  ,अवधबिहारी,  भाई बालमुकुंद व आपको उम्रकैद की सजा दी गई ।
पर ओ डायर द्वारा अपील किये जाने पर सभी को  फांसी की सजा दी  गयी। 
आप लाहौर लॉरेंस गार्डन में हुए बम्ब विस्फोट एक्शन में आप भी शामिल थे
आपको अम्बाला केंन्द्रीय कारागर  में दिनाँक 11 मई 1915 को फाँसी दी गई थी।
शत शत नमन शहीदों को

:- भाई बालमुकुंद -:

आपका जन्म सन 1889 में गांव खरियाला जिला झेलम ,पंजाब में हुआ था। आपने लाहौर डी. ए. वी. कॉलेज से B.A. पास की और उसके बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े।

रासबिहारी बोस के नेतृत्व में समस्त भारत में एकल क्रांतिकारी संगठन का गठन किया गया।

जिसमे आपको लाहौर में संगठन का भार सम्भलाया गया था दल की ओर से आपने कई बार “लिबर्टी “नामक क्रांतिकारी पर्चा वितरित किया ।

दल द्वारा दिनाँक 23 दिशम्बर 1912 को दिल्ली में वॉयसराय हॉर्डिंग को व दिनाँक 17 मई 1913 की फ़िरंगियों के सिविल ऑफिसर्स को उड़ाने हेतु लॉरेंस गार्डन लाहौर में बम्ब हमले किये गए ।

दोनों ही एक्शन के बाद कोई गिरफ्तार नहीं हुई। दिल्ली एक्शन से सरकार की जड़े हिलती हुई महसूस होने लगी । पुरजोर देशभर में गिफ्तारियां कई गई । इसी क्रम में कलकत्ता में राजा बाजार स्तिथ मकान में अवधबिहारी के साथ ही बम्ब की टोपी तथा लाहौर से M S द्वारा हस्ताक्षररित एक बरामद हुआ जिसके बारे में पुलिस को पता चल गया कि दीनानाथ का लिखा हुआ है ।

दीनानाथ गिरफ्तार हुआ तो उसने पुलिस को सब कुछ उगल दिया ।इस बयान के आधार पर आपकी गिरफ्तारी हुई ।

फ़िरंगियों ने दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र या दिल्ली षड्यंत्र के नाम से सम्राट के विरुद्ध युद्ध करने के लिए मास्टर अमीरचंद ,अवधबिहारी, बसंत कुमार बिस्वास व आपको उम्रकैद की सजा दी गई ।

पर ओ डायर द्वारा अपील किये जाने पर सभी को फांसी की सजा दी गयी।

इसी क्रम में लाहौर लॉरेंस गार्डन में हुए बम्ब विस्फोट एक्शन में आप भी शामिल थे ।

आप सभी के विरुद्ध स्पष्ट सबूत नहीं था । केवल शक के आधार पर आपको आरोपित कर सज्जाएँ मौत दी गई।

आपकी गिफ्तारी के दिनों आप जोधपुर के राजकुमार को शिक्षा दे रहे थे।

आपको दिल्ली जेल में दिनाँक 8 मई 1915 को फाँसी दी गई थी।

शत शत नमन शहीदों को

:- शहीद अवधबिहारी-:


  
आपका जन्म सन 1869  में दिल्ली में हुआ था।
आपने B.A.पास करने करने के बाद लाहौर सेंट्रल ट्रेनिंग कॉलेज  से   B.T. की डिग्री ली ।
क्रांतिकारी संगठन का उत्तरप्रदेश व पंजाब का काम आप संभालते थे।रासबिहारी बॉस के नेतृत्व में देश मे कई स्थानों पर एक साथ बम्ब विस्फोट कर फ़िरंगी अधिकारियों का वध करने का एक्शन लिया गया था।
इसी क्रम दिनाँक 23 दिशम्बर 1912 को दिल्ली व दिनाँक 17 मई 1913 लाहौर लॉरेंस गार्डन में बम्ब विस्फोट किये गए।

लॉरेंस गॉर्डन एक्शन आपने संम्पन्न किया था।

इस बम्ब की टोपी बसंत कुमार से मिलकर आपने ही लगाई थी।
आपको मास्टर अमीरचंद के कलकत्ता में  राजा बाजार स्तिथ मकान में गिरफ्तार किया गया था।

वहां बम्ब की टोपी व लाहौर से M S द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र बरामद हुआ। जिसके बारे में पुलिस को पता चल गया कि यह दीनानाथ का लिखा हुआ है ।

दीनानाथ गिरफ्तार हुआ तो उसने पुलिस को सब कुछ उगल दिया ।

वॉयसराय हार्डिंग पर हुए बम्ब हमले के लिए दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र या दिल्ली षड्यंत्र के नाम से सम्राट के विरुद्ध   युद्ध करने के लिए आप सहित मास्टर
अमीरचंद  ,बालमुकुंद व बसंत कुमार बिस्वास  को उम्रकैद की सजा दी गई थी । पर ओ डायर द्वारा अपील किये जाने पर सभी को  फांसी की सजा दी  गयी।
इस योजना में प्रतापसिंह जी बारठ व उनके बहनोई भी शामिल थे ।क्रांतिकारी कभी भी किसी दूसरे क्रांतिकारी का नाम नहीं बताते थे इसलिए जो पकड़े गये उन्होंने और किसी का नाम नहीं बताया हो ।
इस एक्शन की गहराई  शोध का विषय है।

आप अक्सर गुनगुनाते थे-
” एहसान ना ख़ुदा का उठाएं मेरी बला,
किश्ती ख़ुदा पै छोड़ दूँ लंगर को तोड़ दूँ !
आपको 11 मई 1915 को अंबाला जेल में फांसी दी गई थी।

फाँसी से पहले आपसे एक अंग्रेज ने अंतिम इच्छा पूछी आपने उत्तर दिया – “यही कि अंग्रेजी साम्राज्य नष्ट भ्रष्ट हो जाए “।
आपने हंसते हुए फांसी का फंदा अपने हाथों पहना व ‘वंदेमातरम ‘ का शंखनाद करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी।

शत शत नमन शहीदों को

(चाँद फाँसी से संकलित)

:-मास्टर अमीरचंद-:

आपका जन्म सन 1869 में हैदराबाद में हुआ था। आप दिल्ली के दो विद्यालय में बच्चों को निःशुल्क पढ़ाते थे।
आप उर्दू ,संस्कृत व अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता थे।
लाला हरदयाल के इंग्लैंड जाने के बाद उनके क्रांतिकारी दल का काम ही संभालते थे।
आप स्वदेशी समर्थक थे । आपने सन 1912 में स्वदेशी प्रदर्शनी का भी आयोजन किया ।
आप रासबिहारी बॉस के सम्पर्क में थे।
रासबिहारी बॉस के नेतृत्व में देश मे कई स्थानों पर एक साथ बम्ब विस्फोट कर फ़िरंगी अधिकारियों का वध करने का था।
इसी क्रम में दिल्ली व पंजाब में बम्ब डाल कर आक्रमण किये गए।

अंग्रेजों ने पहले भारत की राजधानी कलकत्ता  को बनाया हुआ था । बंगाल में क्रांतिकारियों द्वारा निरंतर ब्रिटिश अधिकारियों पर आक्रमण किए जा रहे थे एवं हत्या की जा रही थी।
जिससे डर कर अंग्रेजों ने कलकत्ता से दिल्ली को राजधानी बनाया।
भारतीय क्रांतिकारी फ़िरंगियों को यह महसूस करवाना चाहते थे कि तुम दिल्ली तो क्या लंदन में भी सुरक्षित नहीं रह सकोगे।
दिनाँक 23 दिशम्बर 1912 को वायसराय हार्डिंग की सवारी का जुलूस निकाला जा रहा था। पूरी सुरक्षा व्यवस्था थी ।
जब जुलूस चाँदनी चौक में पंजाब नेशनल बैंक के पास पहुँचा तो क्रांतिवीरों ने वॉयसराय हार्डिंग की सवारी पर बम्ब फेंका दुर्भाग्य से हार्डिंग बच गया पर अंगरक्षक मारा गया । भारी मात्रा में कई गई सुरक्षा का वीरों ने निष्फल कर दिया व कोई भी क्रांतिकारी मौके पर नही पकड़ में नहीं आया।इस आक्रमण से फ़िरंगियों के होश उड़ गए।
इस योजना में प्रतापसिंह जी बारठ व उनके बहनोई भी शामिल थे ।क्रांतिकारी कभी भी किसी दूसरे क्रांतिकारी का नाम नहीं बताते थे इसलिए जो पकड़े गये उन्होंने और किसी का नाम नहीं बताया हो ।
इस एक्शन की गहराई  शोध का विषय है।
इस एक्शन के लिए फ़िरंगियों ने दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र या दिल्ली षड्यंत्र के नाम से सम्राट के विरुद्ध विद्रोह करने का मामला चलाया गया। मास्टर अमीरचंद को 19 फ़रवरी 1914 को गिरफ्तार किया गया।
इस केस में  मास्टर अमीरचंद ,अवध बिहारी, बालमुकुंद व बसंत कुमार बिस्वास  को उम्रकैद की सजा दी गई पर ओ डायर द्वारा अपील किये जाने पर सभी को  फांसी की सजा दी  गयी।
मास्टर साहब के खिलाफ इनके ही दत्तक पुत्र सुल्तान चंद ने गवाही दी थी।जिसे मास्टर साहब की समस्त सम्पति प्राप्त हुई थी।
शत शत नमन शहीदों को

:- क्रांतिवीर शिववर्मा-:

   

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मूल सक्रिय सदस्यों में एक शिव वर्मा थे।
इस दल के अग्रिम पंक्ति के साथियों को फांसी दिए जाने के बाद आपने अपनी पुस्तक “स्मृतियां “में चंद्र शेखरआज़ाद, भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु,भगवतीचणवोहरा, यतींद्र नाथ दास व महावीरसिंह  की क्रांतिकारी गतिविधियों  व विचार धारा का उल्लेख किया।
आज़ाद भारत की यह पहली पुस्तक थी जिसमें सशस्त्र क्रांति के बारे में पढ़ने को मिला।
आपका दल में  छद्म नाम ‘प्रभात’ था । आपका जन्म 9 फरवरी 1904 को गांव कलौरी जिला हरदोई उत्तरप्रदेश में हुआ ।
आपने असहयोग आंदोलन व मदारीपासी के ” किसानों के एका” आंदोलन में महत्वपूर्ण  योगदान किया था।
जब आपने क्रांतिपथ पर पैर रखा तब डी .ए .वी. कॉलेज , कानपुर में अध्यनरत थे। 

भगत सिंह से आपकी पहली मुलाकात जनवरी 1927 इसी कॉलेज में हुई थी।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन कानपुर में हुआ । उस समय से आप अग्रिम भूमिका में रहे ।


शचींद्र सान्याल की उपस्थिति में दिनाँक 8-9 सितम्बर 1928 को फिरोजशाह कोटला में इस दल के पुनर्गठन में आप केंद्रीय समिति के सदस्य थे।  

  
आप लेखन कार्य में भी सिद्धहस्त थे। आपके लेख ‘चांद ‘ पत्रिका में प्रकाशित होते थे।
आपने सन 1928 में नूरी गेट के पास अमीर चंद के नाम से मकान किराए पर लेकर इसमें बम बनाने का प्रशिक्षण लिया था ।
सहारनपुर में बम फैक्ट्री भी आप ने स्थापित की। आपके द्वारा ही क्लीनिक हेतु एक भवन किराए पर लिया गया जिसमें डॉक्टर ज्ञानप्रसाद डॉक्टर ,आप व जयदेव कंपाउंडर की भूमिका में रहते थे।
इसी फैक्टरी से आपको गिरफ्तार किया गया था।
वायसराय इरविन को सन 1929 में बम से उड़ाने के एक्शन में आप बैकअप भूमिका में थे ।
राजगुरु द्वारा इरविन  के आगमन पर सिग्नल दिया जाना था और उसके सिग्नल के साथ ही जयदेव कपूर द्वारा  इरविन पर बम्ब फेंका जाना था।
वॉयसराय की गाड़ी में इरविन नहीं था केवल तीन महिलाएं थी।

इसलिए टारगेट के नहीं दिखाई देने के कारण  राजगुरु ने सिग्नल नहीं दिया और यह एक्शन पूर्ण  नहीं किया जा सका।
एक बार आप और जयदेव दोनों ही जेल से फरार हो गए थे परंतु फिर पकड़ लिए गए थे।
द्वितीय लाहौर एक्शन में आपको उम्र कैद की सजा दी गई। 
आप लाहौर, राजमुंद्री , दमदम, नैनी ,लखनऊ, हरदोई व अंडमान जेलों में  अपनी जिंदगी के 16 वर्ष 9 माह 7 दिन  यातनाएं  सहन की।

अंडमान जेल में आपकी आंखें खराब हो गई थी ।

क्रांति वीरांगना दुर्गा भाभी द्वारा स्थापित लखनऊ मोंटसरी इंटर कॉलेज  में आपने एक शहीद स्मारक व  स्वतंत्रता संग्राम  शोध केंद्र स्थापित किया ।
आप काकोरी वीर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से उनकी फांसी से एक दिन पूर्व गोरखपुर जेल में बिस्मिल की माताजी के साथ बिस्मिल के मौसेरे भाई शंकर प्रसाद बन कर मिल कर मिलने गए थे  ।

द्वितीय महायुद्ध के बाद आम रिहाई देते हुए  में लगभग सभी राजनीतिक कैदियों को 1938 तक रिहा कर दिया गया था।
परंतु आप और जयदेव अंडमान जेल में ही यातनाएँ झेल रहे थे ।

सरकार ने आप को सशर्त रिहाई लेने हेतु लिखा तो आपने इसे ठुकराते हुए अंडमान जेल से एक पत्र लिखा जो ऐतिहासिक दस्तावेज है ।
आप व जयदेव ने इस सयुंक्त  पत्र के द्वारा सशर्त रिहाई  को ठुकरा दिया था ।
आपने कैदियों को दी जाने वाली पेंशन भी नहीं ली ।
आप भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे योद्धा थे जिन्हें  आजादी के बाद भी कैद नसीब हुई ।

आपको 1948 ,1962 व 1965 में भी  गिरफ्तार कर जेल में रखा गया। 
आजादी के बाद आप कम्युनिस्ट पार्टी में अहम भूमिका में आ गए थे ।
दिनांक 10 जनवरी 1997 को देश की आधी अधूरी आजादी को छोड़ कर , क्रांति काल की मधुर स्मृतियों को संजोये आप अपने साथियों (शहीदों) से मिलने चले गए।
शत शत नमन क्रांतिवीर
 

:- क्रांतिवीर सत्येंद्र बसु -:


सत्येंद्र कुमार बसु का जन्म 30 जुलाई 1882 को मिदनापुर,बंगाल में हुआ। आप अरविंद घोष के सानिध्य में आने से क्रांति पथ पर अग्रसर हुए।

विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन के समय आपने आगे बढ़ कर काम किया था ।
आप ” छात्र- भंडार”के नाम की एक संस्था को संचालित करते हुए युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम की ओर ला रहे थे।
खुदीराम बॉस जिन्होंने प्रफ्फुल चाकी के साथ मुजफरपुर जाकर किंग्फोर्ड की गाड़ी को बम्ब से उड़ाया था , को युगान्तर तक आप ही लेकर आये थे।
आपको बिना लाइसेंस के अपने भाई की बंदूक उपयोग करने के लिए दो वर्ष की कारवास की सजा हुई थी सजा काटने हेतु आपको अलीपुर जेल में भेजा गया।
उस समय अलीपुर जेल में  “अलीपुर- एक्शन” (बम्ब बनाने) के मामले में कई क्रांतिकारी पहले से ही जेल में थे ।
आपका अन्य क्रांतिकारीयों से घनिष्ट संबंध पाए जाने के आधार पर आप पर भी एक और नया मुकदमा बना दिया गया था ।
उस समय अलीपुर मामले में नरेंद्र गोस्वामी सरकारी गवाह बन गया था। नरेंद्रगोस्वामी द्वारा  सितंबर 1908 को गवाही दी जानी थी ।
आप ने अन्य क्रांतिकारियों से विचार विमर्श कर  नरेंद्र गोस्वामी  का जेल में ही वध करने का कार्यक्रम बनाया ।
इस एक्शन में आपके सहयोगी कन्हाई लाल दत्त थे। जेल में रिवॉल्वरों  की व्यवस्था की गई।
आपने व कन्हाई लाल दत्त ने 31 अगस्त या 1 सितम्बर 1908 (तिथि विवादित है)  को जेल के हॉस्पिटल में नरेंद्र गोस्वामी को गोलियों से उड़ाया ।
आपको दिनाँक 21 नवंबर 1908 को फांसी दी गयी।
आपने मुस्कराते हए फाँसी का फंदा पहना।
आपका अन्तिम संस्कार जेल में ही किया गया।
शत शत नमन शहीदों को

क्रांतिवीर कन्हाई लाल दत्त

– कन्हाई लाल दत्त –

आपका जन्म  कृष्णा अष्टमी के दिन सन1887 को अपने ननिहाल चंदननगर जिला हुगली पश्चिम बंगाल में हुआ था। आपका पैतृक निवास श्रीरामपुर बंगाल था।
   आप चंदननगर से स्नातक डिग्री लेने के बाद कलकत्ता आ गए व “युगान्तर “क्रांतिकारी दल में सक्रिय भूमिका में रहे।
आप अपने शिक्षक श्री चारु चन्द्र राय से प्रेरित होकर  क्रांतिपथ पर चले थे । जिन्हें अलीपुर के  सरकारी वकील आशुतोष की हत्या करने के अपराध में 19 मार्च 1909 को फांसी दी गई थी।
युगांतर के मुजफ्फरपुर एक्शन में खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी ने कसाई काजी के नाम से कुख्यात मुज्जफरपुर के जज किंग्स फोर्ट का वध करने हेतु उसकी गाड़ी को बम  से उड़ा दिया था।
इस एक्शन के बाद पुलिस ने युगान्तर के कलकत्ता स्तिथ सभी ठिकानों की तलाशीयां लेकर गिफ्तारियां की।
मानिकतला बगीचे में  आप को  भी 34 अन्य क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार कर अलीपुर जेल में रखा हुआ था।
युगांतर का एक साथी नरेंद्रगोस्वामी सरकारी गवाह बन रहा था ।दल में इस बात का पता चल गया। सत्येंद्र व आपने ड्रामा करते हुए नरेंद्र से कहा कि आप भी सरकारी गवाह बनना चाहते हैं इस बहाने आपको नरेंद्र से मिलना आसान हो गया।

आपका उद्देश्य  गवाही देने से पूर्व नरेंद्र का वध करना था । आपने जेल में दो रिवॉल्वर एक अपने व एक सत्येंद्र के लिए, मंगवाए व मौका मिलते ही दिनाँक 1 सितम्बर 1908 को आपने व सत्येंद्र  ने जेल के हॉस्पिटल में नरेंद्र का वध कर दिया।
आपको दिनाँक 10  नवम्बर 1908 को फांसी दी गयी।

शहीद कन्हाई लाल दत्त

शत शत नमन शहीदों को

:-शहीद यतींद्र नाथ दाश-:

:- यतींद्र नाथ दास -:


यतींद्र नाथ दास उर्फ जतिन्द्र नाथ दास क्रांतिकारीयों के इतिहास में अनशन करते हए आत्मबलिदान करने वालों में थे।

आपका का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कलकत्ता में हुआ था ।

आप असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे थे । आपको दो बार कारावास में रखा गया था। असहयोग आंदोलन वापिस लिए जाने के बाद के आप भगत सिंह व अन्य साथियों के साथ क्रांतिकारी कार्यो में लग गए।

आपको काकोरी एक्शन में गिरफ्तार किया गया था परंतु आपके विरुद्ध कोई सबूत होने के कारण आपको काकोरी केस से तो निकाल दिया गया पर बंगाल ऑर्डिनेंस के अंतर्गत बंगाल में नजरबंद कर दिया गया।

आप जैसे ही नजरबंदी के मुक्त उन भगतसिंह कलकत्ता आये हुए थे।

शचींद्र सान्याल ने नेशनल स्कूल भवन में देश भर के क्रांतिकारीयों की बैठक बुलाई हुई थी ।

इस बैठक में सर्वसम्मति से देश के सभी उपस्थित क्रांतिकारियों का एक संगठन घोषित किया गया ।

जिसका नाम “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ” रखा गया ।

शचींद्र सान्याल ने इस क्रांतिकारी दल के कार्यक्रम तथा उसके अंतिम लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए एक दस्तावेज पहले से ही तैयार किया हुए थे ।

जिन्हें सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। ये दस्तावेज ” दिरिवॉल्यूशनरी ” तथा “येलो पेपर ” के नाम से विख्यात हुए।

इन दोनों पर्चो के छपवाने कीव्यवस्था यतींद्रनाथ दास ने की थी ।

यतींद्र नाथ दास द्वारा हथियार खरीदने के लिए धन की व्यवस्था हेतु कई बार डाके डाले। जिनमे एक डाका इंडो बर्मा पेट्रोल पेट्रोलियम कंपनी का नगद रुपया लूटना था।

इस एक्शन में यतींद्र दा के साथ प्रेम रंजन थे ।दोनों ने कंपनी के आदमियों की आंखों में एक एक मुट्ठी पीसी लाल मिर्च डालकर नगदी का थैला छीन कर ले गए और आराम से कॉलेज में जाकर अपनी-अपनी कक्षाओं में बैठ गए ।

जितेंद्र नाथ दास बम बनाने के भी विधि विशेषज्ञ थे ।

उन्होंने आगरा में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों को बम बनाने की ट्रेनिंग दी थी।

लाहौर एक्शन में आपको भी गिरफ्तार कर लाहौर जेल मे रखा गया था । क्रांतिकारियों को जेल में रहने की अच्छी व्यवस्था व खाना के लिये अनशन किया तब आपने अनशन को कठिन रास्ता बताते हुए सब को आगाह किया था। थे।

आपने बंगाल में नजरबंदी के दौरान 23 दिन तक अनशन किया था । जिसके फल स्वरुप जेल सुपरिटेंडेंट ने माफी मांगी थी व आपको पंजाब की मियांवाली जेल में भेज दिया गया था। लाहौर जेल में अनशन के दौरान आपको नाक से पेट मे नलकी डाल कर दुध पिलाने की जबरदस्ती की गई। नलकी आपके फेफड़े में चली गई और नलकी से डाला गया दूध फेफड़ों में चला गया।

जिसके कारण स्थिति खराब होती गई । आपने दवाई लेने से इनकार कर दिया ।

सरकार ने बिना शर्त जमानत देनी चाही परंतु आपने इसे भी इन्कार कर दिया।

आपके अनशन के 63 वें दिन दिनांक 13 सितंबर 1929 को आपने अपने प्राणों की आहुति दे दी।

आपके पार्थिक शरीर को लाहौर से कलकत्ता ट्रेन से ले जाया गया था। रास्ते के सभी स्टेशनों पर लोगों की अपार भीड़ श्रंद्धाजलि देने पहुंची।

आपकी अंतिम यात्रा के जुलूस में करीब पांच लाख लोग इकट्ठे हुए ।आपने अपने अंतिम समय में अपने भाई किरणदास से काजी नजरुल इस्लाम की ” बोलो वीर चीर उन्नत मम शीर ” कविता सुनी और वंदेमातरम के साथ ही अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद करली।

शत शत नमन क्रांतिवीर को

शहीद यतींद्र नाथ दाश

:-कूका आंदोलन के प्रणेता गुरु रामसिंह कूका -:

बाबा रामसिंह कूका का जन्म 3 फरवरी,1816  को भैणी नगर लुधियाना पंजाब में हुआ था। भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के बाद पहला बड़ा आंदोलन कूका विद्रोह था।
इसके  प्रणेता  सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक रामसिंह कूका थे।  
रामसिंह जी पहले महाराजा रणजीत  सिंह की सेना में रहे फिर नौकरी छोड़ कर खेतीबाड़ी में लग गये।
आप आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे लोगों में प्रेम भाव से साथ रहने, गोरक्षा करने, महिलाओं के हितों की सुरक्षा ,लड़कियों को पढ़ाने,लड़कियों की जन्मते ही हत्या नहीं करने , अंतर्जातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे।
लोग आपके प्रवचनों से  प्रभावित होने लगे  धीरे-धीरे अनुयायियों की संख्या बढते बढ़ते अलग ही पंथ बन गया । आपने सिख पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी अमृत छका कर सिखी प्रदान की गई। बिना ठाका शगुन, बारात, डोली, मिलनी व दहेज के सवा रुपये में विवाह करने की नई रीति का आरंभ हुआ।
इसे आनंद कारज कहा जाने लगा।  पहली बार 3 जून 1863 को गाँव खोटे जिला फिरोजपुर में 6 अंतर्जातीय विवाह करवा कर समाज में नई क्रांति लाई गई। सतगुरु नाम सिंह की प्रचार प्रणाली से थोड़े समय में ही लाखों लोग नामधारी सिख बन गए। आपको अनुभव हुआ की राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त किए बिना कुछ नहीं हो सकता इसलिए आपने धार्मिक उपदेश हो के साथ-साथ राजनीतिक बातों का प्रचार भी शुरू किया। आपने पंजाब को कुल 22 जिलों में विभाजित कर प्रत्येक जिले का एक अध्यक्ष नियुक्त किया ।
आपने ब्रिटेन की महारानी को भारत को शासक मानने से इंकार कर दिया व फ़िरंगियों के विरुद्ध आजादी का बिगुल बजाया ।आपने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। आपने अंग्रेजों की शिक्षा, अदालत ,रेल ,डाक,तार आदि सेवाओं व विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया।
एक बार 1871 में कूका व बुचड़ो में हुई  मुठभेड़ में कुको ने बुचड़ो को मार दिया । रामसिंह जी के निर्देश पर सभी कुको ने अमृतसर आकर  आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेज अधिकारी राम सिंह जी का अपने शिष्यों पर इतना  प्रभाव देखकर घबराने लग गए ।
मकर संक्रांति 1872 को  भैणी गाँव के मेले में आ रहे एक कूका ने द मलेरकोटला में एक आदमी को कमजोर बैल पर बहुत ज्यादा भार लाद कर लेजाते देखा तो कूका ने उस आदमी को टोकाटाकी की जिस पर विवाद बढ़ गया गांव के लोगों ने कूका को पीटा व एक गाय मारकर गाय का मांस कूका के मुंह मे दे दिया।
कूका ने भैणी आकर बताया तो कूको को गुस्सा आ गया ।
रामसिंह जी ने पुलिस को सुचना दे दी की मामला अब उनके नियंत्रण में नहीं है।
बागी 154 कूको  ने मलोध किले पर कब्जा कर घोड़े व हथियार लेकर मलेरकोटला पर आक्रमण कर दिया।  महल तक पहुंच कर खजाने पर भी आक्रमण किया गया। पर विशेष कारण से कुको को मलेरकोटला से हटना पड़ा।
पटियाला के पास रढ़ गांव के जंगल में दिनाँक 29 नवम्बर, 1885 को 68 कूका वीरों को  पकड़ लिया गया ।
लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर कॉवन  ने 17 जनवरी 1872 को इनमें से 49 कुको को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया। 
गिरफ्तार किए गए कुको में एक 13 वर्ष का बच्चा किशन सिंह था। उसे देख कर आवन की पत्नी को दया आ गई और उसने कावन को बच्चे की हत्या नहीं करने हेतु कहा कॉवन ने रामसिंह जी के लिए अपशब्द बोलते हुए बच्चे को कहा तुम राम सिंह  को अपना गुरु मत मानो । यह सुनते बच्चे ने यकायक कॉवन की दाढ़ी पकड़ कर खींच दी कॉवन ने गुस्से में बच्चे के दोनों हाथ काट कर मार दिया ।
शेष 18 कुको को अगले दिन मलोध में फांसी दे दी गई  ।
दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। वहां जेल में ही 1885 रामसिंह जी शहीद हुए।
अगर कूका आंदोलन अचानक नहीं भड़कता तो संभव है पंजाब से फ़िरंगियों को मार भगाने में सफल होते ।
शत शत नमन कूका वीरों को

:- क्रांति वीरांगना दुर्गा -:

दुर्गादेवी जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को शहजादपुर वर्तमान जिला कौशांबी  इल इलाहाबाद में हुआ था।

जब आपकी आयु मात्र 10 वर्ष की थी तो आप विख्यात क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की जीवनसाथिनी बनी।
विवाह के बाद आपने प्रभाकर डिग्री ली
आपने अपने पति भगवती वोहरा के साथ नोजवान भारत सभा व हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक एसोसिएशन की सक्रिय सदस्य के रूप में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेती थी।

भगवती चरण वोहरा दल में बड़े थे इसलिए दल में सभी आपको दुर्गा भाभी से संबोधित करते थे।
गांधी जी के आह्वान पर आपने भी लाहौर में सत्याग्रह आंदोलन  में  खादी धारण कर सक्रिय रूप से भाग लिया।
  क्रांतिकारी एक्शन चोरा-चोरी के बाद जैसे ही गांधी जी ने आंदोलन वापस लिया सभी क्रांतिकारियों की तरह आपका भी अहिंसात्मक आंदोलन पर से विश्वास उठ गया।      

नौजवान  भारत सभा के आयोजन में करतार सिंह सराभा की तस्वीर के नीचे लगाये गए खादी के कपड़ें पर आपने अपनी अंगुली के रक्त के छींटे दिए।लाहौर में साइमन कमीशन विरोध के समय दुर्गा भाभी के नेतृत्व  महिला क्रांतिकारीयों ने भी भाग लिया था।
लाठीचार्ज के समय ही आपने गर्जना के साथ शपथ ली थी कि “डंके की चोट पर ब्रिटिश राज  से टक्कर लेनी है।”
जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त केंद्रीय असेंबली में बम धमाका करने जा रहे थे तो वोहरा जी ने दुर्गाभाभी व  सुशीला बहन  को बुलाया कि भगतसिंह को विदाई पार्टी देने का बताते हुए क़ुरदसिया पार्क में बुलाया वहाँ आज़ाद जी व भगवती जी भगतसिंह को उसका मनपसंद खाना खिला रहे थे। सुशीला दीदी ने अपने अंगूठे के खून से  भगतसिंह को तिलक कर विदा किया ।
वहां से भगतसिंह सीधे असेम्बली गए वहां बटुकेश्वर मिले  दोनों ने असेम्बली में धमाका एक्शन लिया।
जब तक यह एक्शन चला तब दुर्गा भाभी शची को गोद लिए ,सुशीला व भगवती जी के साथ तांगे में असेम्बली के आगे घूमते रहे।
जब भगतसिंह व दत्त को पुलिस गिरफ्तार कर ले जाने लगी तो अचानक शची ने आवाज लगादी  ” लंबू चाचा ” शुक्र है पुलिस का ध्यान नहीं गया।

सांडर्स वध के बाद आपने अंग्रेजी मैम जैसे वेष में  साहब बने भगत सिंह की पत्नी के रूप में भगतसिंह व राजगरु को कोलकाता मेल से लाहौर से कोलकाता की जोखिम भरी यात्रा की थी। जो क्रांतिकारी इतिहास में भारतीय  विवाहित महिला की वीरता व त्याग का एक उदाहरण है।
भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु  को  फांसी की सजा सुनाई जाने के बाद आज़ाद जी ने दुर्गा भाभी व सुशीला बहन को  गांधी जी के पास भेजा था पर गांधीजी ने भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु की फाँसी रुकवाने की शर्त वॉयसराय इरविन से होनेवाली वार्ता में रखने से इन्कार कर दिया गया।
इसके बाद ही दल की केंद्रीय समिति की असहमति के बावजूद आपने अपने पति भगवतीचरण वोहरा के साथ वॉयसराय इरविन की ट्रेन बम्ब से उड़ाने के एक्शन में साथ दिया।

भगतसिंह व साथियों को जेल बस से छुड़ाने हेतु बनाये गए कार्यक्रम में आप साथ थी।पर दिनाँक 28 मई 1930 को आपके पति क्रांतिकारी भगवती वोहरा की बम्ब  परीक्षण में शहीद हो गए । रात्रि में रावी तट के वीराने में खड्डा बनाकर शव को बुरा गया ।उस समय का  आपका साहस व त्याग भी एक उदाहरण है।

1930 में  दुर्गा भाभी के नेतृत्व में पृथ्वी सिंह व सुखदेव राज को  पंजाब गवर्नर मैल्काल्म हैली का वध करने हेतु बम्बई भेजा गया था।आपने बहादुरी के साथ
दिनांक 8 अक्टूबर 1930 को इस एक्शन को अंजाम देना चाहा पर हैरी अपने निवास पर नहीं आया तो आपने पृथ्वीसिंह व सुखदेव राज के साथ  लेमिंग्टन रॉड बम्बई में  थाने के आगे एक यूरोपीयन जोड़े पर कार से चलते  हए फायरिंग की । यह सार्जेंट टेलर था जिसके गोली लगी। आप घटना स्थल से आराम से निकल आये। यह एक्शन दल की अनुमति के बिना ही लिया था।
 
आपको 14 सितंबर 1932 में  गिरफ्तार  कर दो माह जेल में रखा गया फिर 1935 में गिरफ्तार किया गया पर एक सप्ताह बाद छोड़ दिया गया व जिलाबदर किया गया।

1935 में आप गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका लगी। 

1937 में आप दिल्ली कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनी। उस समय आपने काकोरी केस से रिहा हुए क्रांतिकारीयों के अभिनंदन में कार्यक्रम रखा जिसके लिए आपको एक सप्ताह जेल में रहना पड़ा। आपको कांग्रेस रास नहीं आयी।
आपने 1939 में मद्रास जाकर मार्टिया मोंटेसरी से मोंटेसरी शिक्षा का प्रशिक्षण लिया व 1940 में लखनऊ कैंट रोड पर अपना एक निजी विद्यालय खोला। आपका 14 अक्टूबर 1999 को स्वर्गवास हुआ।
शत शत नमन महान वीरांगना को

वीरांगना दुर्गा भाभी

:- क्रांतिवीर वीर -: -: :-भगवतीचरण वोहरा -:

:- क्रांतिवीर वीर -: -:- भगवतीचरण वोहरा -:- आपका जन्म 4 जुलाई 1903 को आगरा में हुआ था। आपके पिता श्री शिवचरण रेलवे में अधिकारी थे। जो कालांतर में आगरा से लाहौर आ गए थे । आपने नेशनल कॉलेज , लाहौर से बी.ए. की थी ।उस भगत सिंह व सुखदेव भी इसी कॉलेज में थे । आपने भगत सिंह, सुखदेव व अन्य साथियों की एक अध्ययन मंडली बनाई थी । आप सभी देश की आज़ादी के लिए गहरा अध्ययन करते थे। क्रांतिकारी दल “नौजवान भारत सभा” के गठन में आपकी अहम भूमिका थी । इसके घोषणा पत्र बनाने में भी मुख्य भूमिका आपका ही थी।

शचिंद्र सान्याल द्वारा तैयार ” दि रेवोल्यूशनरी “‘ पर्चा 1 जनवरी 1925 को बंटवाने का काम भी आपने किया था।

आप बम बनाने में दक्ष थे। आपने काकोरी वीरों को लखनऊ जेल से छुड़ाने हेतु काफी तैयारियां की थी परंतु सयुंक्त प्रांत व पंजाब के दो अन्य क्रांतिकारियों की सहमति नहीं होने के कारण यह एक्शन नहीं लिया जा सका लाहौर में कश्मीर बिल्डिंग का कमरा नंबर 69 आपके नाम से किराए पर लिया हुआ था। इसी में आपने बम बनाने का कारखाना स्थापित किया गया था इस फैक्ट्री में 15 अप्रैल 1936 को पुलिस ने छापा मारा।

इसके बाद आपको वहां से फरार होना पड़ा। केंद्रीय असेंबली में बम डाले जाने के बाद भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त मौका पर ही गिरफ्तार हो गए थे । लाहौर बम फैक्ट्री में सुखदेव, किशोरीलाल व जय गोपाल की गिरफ्तारी हो चुकी थी। सहारनपुर बम फैक्ट्री में तीन अन्य साथियों की गिरफ्तारी हो चुकी थी ।उस समय आप ,यशपाल ,आज़ादजी व वैशंपायन फ़रारी थे।

इन विकट परिस्थितियों में आपने श्रद्धानंद बाजार दिल्ली की एक गली में मकान किराए पर लिया और इसमें बम बनाने का काम शुरू किया। उन दिनों वायसराय इरविन व गांधीजी में समझौता वार्ता होनेवाली थी ।आप कांग्रेस व गांधी जी की गिड़गिड़ाने की नीति के पक्ष में नहीं थे। आपका कहना था गांधीजी पूंजीपतियों के एक प्रतिनिधि के रूप में एक साम्राज्यवादी के साथ बातचीत करेंगे। जिससे देश की जनता का कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए आपने यह निर्णय लिया कि वायसराय इरविन की स्पेशल ट्रेन को बम्ब से उड़ाकर वॉयसराय को ही मार दिया ताकि इरविन- गांधी वार्ता ही नहीं हो सके ।आपने इस संबंध में इरविन के कार्यक्रम का सुराग लगा कर अपने साथियों यशपाल ,धर्मपाल व इंद्रपाल के साथ समस्त कार्यक्रम तैयार कर लिया । वायसराय की स्पेशल ट्रेन दिल्ली से मथुरा 23 दिसंबर 1929 को कोल्हापुर जानी थी। आपने मथुरा रोड पर पांडवों के किले के पास रेलवे लाईन पर बम्ब लगा दिये। बम्ब विस्फोट जोरदार हुआ गाड़ी का एक डिब्बा भी उड़ गया पर दुर्भाग्य से इरविन बच गया।

आपने यह एक्शन दल की केंद्रीय समिति के निर्णय के विरूद्ध किया था। आपने नाराज़ होकर दल के राजनीतिक महत्व को समझाते हुए घोषणा पत्र भी आज़ाद जी को लौटा दिया ।

इस एक्शन के बाद गांधी जी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए इरविन को तार भेजकर सहानुभूति प्रकट की । क्रांतिकारियों के विरुद्ध कांग्रेस अधिवेशन में क्रांतिकारी एक्शन के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। गांधीजी ने समाचार पत्र यंग इंडिया में “कल्ट ऑफ द बम” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया । इसके उत्तर में भगवती चरण वर्मा ने न केवल गांधी जी के लेख का उत्तर दिया बल्कि क्रांतिकारीयों की राजनीतिक समझ व उद्देश्यों का उलेख करते हुए ‘ फिलॉस्फी ऑफ द बम” लेख प्रकाशित किया।

इस लेख को जेल में भगतसिंह द्वारा अंतिम रूप दिया गया था।

आपने आजाद जी इसे विचार विमर्श कर भगत सिंह व साथियों को जेल गाड़ी पर हमला करके छुड़ाने का कार्यक्रम तय किया। इस एक्शन के क्रम में दिनांक 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर बम परीक्षण करते समय दुर्भाग्यवश बम आपके हाथ में ही फट गया और आपका शरीर क्षत-विक्षत हो गया । आप आपने अपने प्राणों की आहुति दे दी ।

अंतिम समय भी आपने कहा भगतसिंह व साथियों को छुड़ाने के एक्शन पूर्ण किया जाता है तो ही आत्मा को तभी शांति ।

भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी जिसे क्रांतिकारी दल में दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है का योगदान भी स्मृतियोग्य है।

आप दृढ़निश्चयी , बहादुर , बम बनाने में दक्ष ही नहीं क्रांतिकारी दल के में उच्च कोटिके विचारक व प्रचारक थे।

अपने क्रांतिकारी गतिविधियों में कई पर्चे लिखे जो उबलब्ध नहीं है।आपने एक पुस्तक “मैसेज ऑफ इंडिया ” लिखी जो नौजवानों को काफी प्रिय थी।

शत शत नमन क्रांति वीर को

क्रांतिवीर भगवतीचरण वोहरा

      :- क्रांतिवीर वीर -:
-:- भगवतीचरण वोहरा -:-

आपका जन्म 4 जुलाई 1903 को आगरा में हुआ था। आपके पिता श्री शिवचरण रेलवे में अधिकारी थे। जो कालांतर में आगरा से लाहौर आ गए थे ।
आपने नेशनल कॉलेज , लाहौर से बी.ए.  की थी ।उस भगत सिंह व सुखदेव  भी इसी कॉलेज में थे । आपने भगत सिंह, सुखदेव व अन्य साथियों की एक अध्ययन मंडली बनाई थी । आप सभी देश की आज़ादी के लिए गहरा अध्ययन करते थे।
क्रांतिकारी दल “नौजवान भारत सभा”  के गठन में आपकी अहम भूमिका थी । इसके  घोषणा पत्र बनाने में भी मुख्य भूमिका आपका ही थी।
शचिंद्र सान्याल  द्वारा तैयार ” दि रेवोल्यूशनरी “‘  पर्चा  1 जनवरी 1925 को  बंटवाने का काम भी आपने किया था।
आप बम बनाने में दक्ष थे। आपने काकोरी वीरों को लखनऊ जेल से छुड़ाने हेतु काफी तैयारियां की थी परंतु सयुंक्त प्रांत व  पंजाब के दो अन्य क्रांतिकारियों की सहमति नहीं होने के  कारण यह एक्शन नहीं लिया जा सका ।
लाहौर में कश्मीर बिल्डिंग का कमरा नंबर 69 आपके नाम से किराए पर लिया हुआ था। इसी में आपने बम बनाने का कारखाना स्थापित किया गया था
इस फैक्ट्री में 15 अप्रैल 1936 को  पुलिस ने छापा मारा इसके बाद आपको वहां से फरार होना पड़ा। केंद्रीय असेंबली में बम डाले जाने के बाद भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त मौका पर ही गिरफ्तार हो गए थे । लाहौर बम फैक्ट्री में सुखदेव, किशोरीलाल व जय गोपाल की गिरफ्तारी हो चुकी थी।
सहारनपुर बम फैक्ट्री में तीन अन्य साथियों की गिरफ्तारी हो चुकी थी
उस समय आप ,यशपाल ,आज़ादजी व वैशंपायन फ़रारी थे।
इन विकट परिस्थितियों में आपने श्रद्धानंद बाजार दिल्ली की एक गली में मकान किराए पर लिया और इसमें बम बनाने का काम शुरू किया।
उन दिनों  वायसराय इरविन व  गांधीजी में समझौता वार्ता होनेवाली थी ।आप कांग्रेस व गांधी जी की गिड़गिड़ाने की नीति के पक्ष में नहीं थे।  
आपका कहना था गांधीजी पूंजीपतियों के एक प्रतिनिधि के रूप में एक साम्राज्यवादी के साथ  बातचीत करेंगे। जिससे देश की जनता का कोई लाभ नहीं होगा।
इसलिए आपने यह निर्णय लिया कि वायसराय इरविन की स्पेशल ट्रेन को बम्ब से  उड़ाकर वॉयसराय को ही मार दिया ताकि इरविन- गांधी  वार्ता ही नहीं हो सके ।आपने इस संबंध में इरविन के कार्यक्रम का सुराग लगा कर अपने साथियों  यशपाल ,धर्मपाल व इंद्रपाल के साथ समस्त कार्यक्रम तैयार कर लिया  ।
वायसराय की स्पेशल ट्रेन दिल्ली से मथुरा 23 दिसंबर 1929 को कोल्हापुर  जानी थी।
आपने मथुरा रोड पर पांडवों के किले के पास  रेलवे लाईन पर बम्ब लगा दिये।
बम्ब विस्फोट जोरदार हुआ गाड़ी का एक डिब्बा भी उड़ गया पर दुर्भाग्य से इरविन बच गया।
आपने यह एक्शन दल की केंद्रीय समिति के निर्णय के विरूद्ध किया था। आपने नाराज़ होकर दल के राजनीतिक महत्व को समझाते हुए घोषणा पत्र भी आज़ाद जी को लौटा दिया ।  
इस एक्शन के बाद गांधी जी ने  ईश्वर को धन्यवाद देते हुए इरविन को तार भेजकर सहानुभूति प्रकट की ।
क्रांतिकारियों के विरुद्ध कांग्रेस अधिवेशन में क्रांतिकारी एक्शन के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। गांधीजी ने समाचार पत्र यंग इंडिया में “कल्ट ऑफ द  बम” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया ।
इसके उत्तर में भगवती चरण वर्मा ने न केवल गांधी जी के लेख का उत्तर दिया बल्किक्रांतिकारीयों की राजनीतिक समझ व उद्देश्यों का उलेख करते हुए  ‘ फिलॉस्फी ऑफ द बम” लेख प्रकाशित किया।इस लेख को जेल में भगतसिंह द्वार अंतिम रूप दिया गया था।
आपने आजाद जी इसे विचार विमर्श कर भगत सिंह व साथियों को जेल  गाड़ी पर हमला करके छुड़ाने का कार्यक्रम तय किया।
इस एक्शन के क्रम में दिनांक 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर बम परीक्षण करते समय  दुर्भाग्यवश बम आपके हाथ में ही फट गया और आपका शरीर क्षत-विक्षत हो गया । आप आपने अपने प्राणों की आहुति  दे दी ।
अंतिम समय भी आपने कहा भगतसिंह व साथियों को छुड़ाने के एक्शन पूर्ण किया जाता है तो ही  आत्मा को तभी शांति  ।
भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी जिसे क्रांतिकारी दल में दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है का योगदान स्मृतियोग्य है।
आप दृढ़निश्चयी , बहादुर , बम बनाने में दक्ष ही नहीं क्रांतिकारी दल के में उच्च कोटिके विचारक व प्रचारक थे।
अपने क्रांतिकारी गतिविधियों में कई पर्चे लिखे जो उबलब्ध नहीं है।आपने एक पुस्तक “मैसेज ऑफ इंडिया ” लिखी जो नौजवानों को काफी प्रिय थी।

शत शत नमन क्रांतिवीर को