शहीद यतींद्र नाथ दास: एक साहसी अनशनकारी क्रांतिकारी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शहीद यतींद्र नाथ दास एक ऐसा नाम है, जिसने अपने आत्मबलिदान से देशभक्तों की आत्मा को झकझोर दिया। वे उन वीरों में से एक थे, जिन्होंने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अनशन जैसे कठिन मार्ग को चुना और अपने प्राणों की आहुति दे दी।
प्रारंभिक जीवन और राष्ट्रभक्ति की शुरुआत
यतींद्र नाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कलकत्ता में हुआ था। किशोरावस्था से ही वे देश की आज़ादी के लिए समर्पित हो गए थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया और इसी सिलसिले में उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा। हालांकि जब असहयोग आंदोलन स्थगित किया गया, तो उन्होंने क्रांतिकारी रास्ता चुना और भगत सिंह तथा अन्य साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सक्रिय रूप से कार्य करने लगे।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ और गिरफ्तारी
आपको काकोरी एक्शन के संदर्भ में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में आप इस केस से मुक्त हो गए। इसके बावजूद, ब्रिटिश सरकार ने आपको बंगाल ऑर्डिनेंस एक्ट के तहत नजरबंद कर दिया। नजरबंदी से मुक्त होते ही, जब भगत सिंह कलकत्ता आए हुए थे, उस समय शचींद्र सान्याल ने नेशनल स्कूल भवन में देशभर के क्रांतिकारियों की बैठक बुलाई थी।
इस बैठक में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के गठन की घोषणा की गई। शचींद्र सान्याल ने संगठन के उद्देश्यों और कार्यक्रमों को स्पष्ट करने के लिए दो दस्तावेज— “द रिवॉल्यूशनरी” और “येलो पेपर” पहले से तैयार कर रखे थे, जिन्हें सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इन क्रांतिकारी दस्तावेजों की छपाई की व्यवस्था यतींद्रनाथ दास ने ही की थी।
हथियार, डाके और साहसिक कार्य
स्वतंत्रता के लिए हथियार जुटाना उस समय की सबसे बड़ी जरूरत थी। इसके लिए यतींद्र नाथ दास ने कई बार धन जुटाने हेतु डाके डाले। एक प्रसिद्ध घटना इंडो-बर्मा पेट्रोलियम कंपनी की है, जहाँ उन्होंने अपने साथी प्रेम रंजन के साथ मिलकर कंपनी के कर्मचारियों की आंखों में पीसी हुई लाल मिर्च झोंककर नगदी का थैला लूटा और फिर सीधे कॉलेज जाकर अपनी-अपनी कक्षा में बैठ गए। यह उनकी चतुराई और साहस का अद्भुत उदाहरण था।
यतींद्रनाथ बम बनाने के विशेषज्ञ भी थे। उन्होंने आगरा में HRA के सदस्यों को बम निर्माण की विधि सिखाई और उन्हें प्रशिक्षण दिया।
लाहौर जेल में ऐतिहासिक अनशन
लाहौर एक्शन के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल में रखा गया। जेल में क्रांतिकारियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और घटिया खाने के विरोध में उन्होंने साथियों के साथ अनशन शुरू किया। यतींद्र नाथ दास ने सभी को चेताया कि यह राह कठिन है। इससे पहले भी वे बंगाल की नजरबंदी के दौरान 23 दिनों तक अनशन कर चुके थे, जिसके चलते जेल अधीक्षक को माफी मांगनी पड़ी थी और उन्हें मियांवाली जेल भेज दिया गया था।
लाहौर जेल में उन्हें जबरन दूध पिलाने के लिए नाक से पेट में नलकी डाली गई, पर दुर्भाग्यवश वह नलकी उनके फेफड़ों तक चली गई, जिससे उनकी स्थिति बिगड़ती गई। उन्होंने दवाइयाँ लेने से इनकार कर दिया और जब सरकार ने बिना शर्त जमानत की पेशकश की, तो उसे भी ठुकरा दिया।
63 दिन का संघर्ष और बलिदान
63 दिनों के कठिन अनशन के बाद 13 सितंबर 1929 को यतींद्र नाथ दास ने अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर दिए। उनके पार्थिव शरीर को लाहौर से कलकत्ता ट्रेन से लाया गया। रास्ते के हर स्टेशन पर हजारों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने उमड़े। उनकी अंतिम यात्रा में करीब पांच लाख लोग शामिल हुए।
अपने अंतिम समय में उन्होंने अपने भाई किरण दास से काजी नजरुल इस्लाम की प्रसिद्ध कविता “बोलो वीर, चीर उन्नत मम शीर” सुनी और वंदे मातरम् के उद्घोष के साथ हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं।
शहीद यतींद्र नाथ दास का यह बलिदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि आत्मबल, संकल्प और त्याग से बड़ा कोई हथियार नहीं होता। वे भारत माता के उन सपूतों में से हैं, जिनकी गाथा युगों तक गूंजती रहेगी।
