भीखाजी कामा

आप भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं ।  आपने विदेशों में  भारत की स्वतंत्रता  गूँज को तीव्र ध्वनि दी।
आपका जन्म 24 सितंबर 1861
बम्बई के एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था।
आपने मुंबई के अलेक्जेंड्रा गर्ल्स स्कूल में शिक्षा प्राप्त की।

आपका विवाह रुस्तम जी कामा  के साथ दिनांक 3 अगस्त 1885  को हुआ था। जो एक वकील थे।


     

मुंबई में दिसंबर 1885 में  कांग्रेस के पहले अधिवेशन में  अपने भाग लिया था।

वर्ष 1896 में बॉम्बे में प्लेग प्रकोप के समय आपने मरीजों की सेवा की थी।
उस समय आप भी प्लेग की चपेट में आ गई ।
डॉक्टर ने आपको उपचार  हेतु यूरोप जाने की सलाह दी गई थी।

आप उपचार हेतु वर्ष 1902 में लंदन गईं ‌।
लंदन में आप दादा भाई नौरोजी के संपर्क में आई और उनके सचिव के रूप में कार्य किया।

उसी समय आपका सम्पर्क क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा व वीर सावरकर से हुआ।

वहां भी  आप भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए सक्रिय हो गई।। ब्रिटिश सरकार आपको गिरफ्तार करना चाहती थी ।

इसकी आप को भनक मिली और आप चुपचाप लंदन छोड़कर  पेरिस  चली गयी।

वहाँ  आपका संपर्क क्रांतिकारी लाला हरदयाल, मुकुंद सरदेसाई, विरेंद्र चट्टोपाध्याय  से हुआ।

फ्रांस में ही आपके नाम के साथ मदाम ( मैडम ) शब्द जुड़ गया।
आपसे जेनेवा गई वहां वंदे मातरम नमक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया ।
इस पत्र के द्वारा आपने भारत में अंग्रेजों के अत्याचारों से संबंध में समाचार प्रकाशित किए ।
आपने अमेरिका और यूरोप के विभिन्न देशों की यात्रा की।

पेरिस से  वंदे मातरम, तलवार व इंडियन फ्रीडम समाचार के संचालन में आपकी प्रमुख भूमिका थी।

आप 1901  पेरिस विधि वहां आपने आयरलैंड जर्मनी व रुस के क्रांतिकारियों से संपर्क किया

  जर्मनी के  यस्टुटगार्ट नगर में दिनांक 22 अगस्त 1907 को आयोजित सातवें अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन 
आपने वीर सावरकर के परामर्श के अनुसार इस सम्मेलन में ब्रिटिश मजदूर दल की आपत्ति के बावजूद सरदार सिंह राणा व विरेंद्र चट्टोपाध्याय के साथ भारत का प्रतिनिधित्व किया था ।

इस सम्मेलन में आपने भारतीय  ध्वज लहराया था।

इस ध्वज में भारतीय राष्ट्रीय एकता के प्रतीक का हरे , पीले व लाल रंग के तिरंगे झंडे, जिसके बीच में देवनागरी लिपि में  वंदे मातरम लिखा था और इस पर 8 कमल के फूल सूर्य व चंद्रमा बने हुए थे ।


  इस सम्मेलन में आपने कहा
‘‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।’’

भारतवासियों का आह्वान करते हुए कहा कि –
‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।’’

मदन लाल धींगरा द्वारा  लंदन में कर्जन वायली को गोली मारने के समाचार को प्रकाशित करते हुए लिखा –
“मदनलाल ढींगरा की पिस्तौल की आवाज आयरलैंड की कच्ची झोमपड़ियों में बैठे किसानों ने सुनी,  मिश्र के खेतों में काम कर रहे किसानों ने सुनी तथा अंधेरी खानों में कार्य कर रहे जुलु खदान श्रमिकों ने सुनी ।”

साम्राज्यवाद के विरुद्ध विश्व जनमत जाग्रत करने तथा भारत को अंग्रेजों  से मुक्ति के लिए आपका योगदान कभी भी नहीं भुलाया जाएगा।

राष्ट्रवादी यूरोपीय पत्रकार भी आपका सम्मान करते थे।
 


  फ्रांसीसी अखबारों में उनका चित्र जोन ऑफ आर्क के साथ आया।

वीर सावरकर  को अंग्रेजों की गिरफ्त छुड़ाने की योजना में भी आपने सक्रिय भूमिका अदा की।

फ्रांसीसी सीमा से सावरकर की अवैध  गिरफ्तारी के विरुद्ध आपने मामले को गंभीरता पूर्वक अंतरराष्ट्रीय अदालत हेग में उठाया था।


प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने पर फ्रांस की सरकार ने आप को गिरफ्तार करके जेल में बंद कर दिया । युद्ध समाप्ति के बाद  1918 में आप को जेल से रिहा किया गया।

अपने जीवन के 34 वर्षों में साम्राज्य वाद के विरुद्ध एंव भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष  किया ।
आप दिसंबर 1935 में भारत लौटी।

16 अगस्त 1936

आपका स्वर्गवास हुआ

शत शत नमन वीरांगना को