:- सुभाष चंद्र बोस -:

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका रही है ।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने आप में एक संपूर्ण क्रांति थे।
आप का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक , उड़ीसा में हुआ।
आपने प्राथमिक शिक्षा पी .ई .मिशनरी स्कूल से, इंटरमीडिएट  रेवेनशा कॉलेजियट स्कूल  से करने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज  प्रवेश लिया ।
अंग्रेजी शिक्षक  ओटन  द्वारा भारतीयता के संबंध में विवाद होने पर आप ने उसके थप्पड़ मार दिया जिसके कारण विवाद बढ़ गया। आप ने माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया ।
प्रतिक्रिया स्वरुप आप को  कॉलेज से निकाल दिया गया।
आप कुछ दिन आध्यात्मिक गुरु की खोज  में उत्तरी भारत का भ्रमण करते रहे।
बॉस ने स्कोटिश  चर्च   कॉलेज में प्रवेश लिया व 1919 में प्रथम श्रेणी से बी.ए .ऑनर्स  पास की।

बॉस 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैंड गए वहां किट्स विलियम हाल में मानसिक एंव नैतिक विज्ञान की परीक्षा हेतु प्रवेश लिया।

इंग्लैंड जाने के पीछे आपका  उद्देश्य ICS बनना था।
आपका दिनांक 22 सितंबर 1920 को  ICS में चयन हो गया।
इस कठिन परीक्षा में आपीने   चतुर्थ स्थान प्राप्त किया।

आप लक्ष्य देश की आजादी था इसलिए आपने  22 अप्रैल 1921 को अपनी ICS सेवाओं से त्यागपत्र दे दिया।

प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर आपने विरोध किया ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया ।
बॉस को दिनांक 10 दिसंबर 1921 को 6 माह का कारावास दिया गया।
बॉस को 25 अक्टूबर 1924 को गिरफ्तार कर अलीपुर बहरामपुर जेल में भेज दिया गया।
इंग्लैंड से आकर आपने गांधी जी से मुलाकात की और कलकत्ता आकर देशबंधु चितरंजन दास बाबू के साथ असहयोग आंदोलनआप में शामिल हो गए।
दाश ने उस समय स्वराज पार्टी भी बनाली थी व अपनी पार्टी से चुनाव लड़ते  हुए कलकत्ता के महापौर बने ।
दास जी ने सुभाष बॉस को1924 में कार्यकारी अधिकारी बनाया।

मांडले जेल में रहते हुए बॉस ने विधान परिषद का चुनाव लड़ा और 10 दिसंबर 1926 को निर्वाचित हुए।
कठोर यातनाएं झेलने के बाद बोस दिनांक 16 मई 1927 को जेल से रिहा हुए।
कलकत्ता  में साइमन कमीशन का विरोध सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में किया गया।

सन 1928 में कांग्रेस के 43वें  अधिवेशन में सुभाष बोस ने 7000 खाकी वर्दी वाले सैन्य दल का नेतृत्व करते हए कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मोतीलाल नेहरू को गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया ।

जिसका  अनुशासन देखते ही बनता था।
साइमन  कमीशन को जबाब हेतु भारत के भावी संविधान के संबंध रिपोर्ट तैयार करने हेतु पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्ष में 8 सदस्यी कमेटी बनाई गई थी।
  जिसमें सुभाष बोस भी सदस्य थे।
कांग्रेस के इस कलकत्ता अधिवेशन में  पंडित मोती लाल नेहरू ने  डोमिनियन स्टेटस  पर सहमति  की रिपोर्ट दी।

सुभाष चंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डोमिनियन स्टेटस की रिपोर्ट का विरोध करते हुए पूर्ण स्वराज की मांग की।

अंततः यह तय रहा कि यदि 1 वर्ष की अवधि में अंग्रेज भारत को इस  डोमिनियन स्टेटस नहीं देते है तो कॉन्ग्रेस पूर्ण स्वराज के लिए आंदोलित होगी ।
डोमिनियन स्टेटस नहीं मिला । कांग्रेस का अगला अधिवेशन 1930  में लाहौर में  पंडित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ ।
इसमें  कांग्रेस ने  26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में के रूप में मनाने की घोषणा करदी।

अगले वर्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता में  26 जनवरी 1931 को एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व करते हए राष्ट्रध्वज फहराया।
पुलिस ने लाठीचार्ज किया व बॉस को जेल में भेज दिया गया।
गांधी इरविन समझौता के समय सुभाष चंद्र बोस जेल में थे ।
उन्होंने गांधी इरविन समझौते का विरोध करते हुए कहा था कि
ऐसा समझौता किस काम का जो ,भगतसिंह जैसे देशभक्तों की जान नहीं बचा सके ‘।


बॉस द्वारा गठित बंगाल वालंटियर्स के  एक क्रांतिकारी  गोपीनाथ साहा ने 1925 में क्रूर पुलिस अधिकारी  चार्ल्स टेगर्ट के भरोसे अर्नेस्ट डे नामक व्यक्ति को  मार दिया।
जिस पर गोपी नाथ साह को फांसी दी गई थी। जेल से गोपी मोहन का शव सुभाष चंद्र बोस ने  लिया व उनका संस्कार करवाया।
इस बात से अंग्रेज सरकार खफा हुई और बॉस को बिना मुकदमा चलाये अनिश्चित काल के लिए     बर्मा (म्यांमार) की मांडले जेल में भेज दिया गया ।
मांडले  में बॉस को तपेदिक बीमारी हो गई। स्वास्थ्य अधिक खराब होने पर इलाज हेतु डलहौजी जाने की अनुमति मिली।

कारावास से ही बॉस ने 1930 में कलकत्ता महापौर का चुनाव लड़ा और जीतकर महापौर बन गए। इसके चलते अंग्रेजों को रिहा करना पड़ा ।
1931 में बॉस ने नौजवान सभा का सभापतित्व करते हुए भाषण दिया।

सन 1932 में बॉस को फिर कारावास से दंडित किया गया और अल्मोड़ा जेल में भेज दिया गया। वहां पर भी बॉस का स्वास्थ्य खराब हो गया तो उन्हें यूरोप में इलाज करवाने हेतु छूट दी गई।
मांडले जेल से बॉस 13 फरवरी 1933 को  इलाज हेतु वियना गए।

सन 1933 से 1936 तक बॉस यूरोप में रहे व इटली के मुसोलिनी, आयरलैंड के डी वलेरा आदि से संपर्क किया।
  
यूरोप वास के समय 1934 में ऑस्ट्रेलिया में एक पुस्तक लिखते समय रखी अपनी टाइपिस्ट एमिली शेंकल  को अपना जीवन साथी बनाया।


जनवरी 1938 में हरिपुरा  कांग्रेस के 51 वें अधिवेशन में  गांधी जी ने  सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया।
बॉस का भारी स्वागत हुआ। बॉस ने  अधिवेशन में अपना अध्यक्षीय भाषण प्रभावशाली रूप से दिया।

सन 1938 में द्वितीय महायुद्ध के बादल छा रहे थे । बॉस इस मौके का फायदा उठाकर ब्रिटेन के विरुद्ध विदेशी सहायता से अंग्रेजों को भारत से भागना चाहते थे। गांधी जी व अन्य अनुयाई बॉस की इस नीति से सहमत नहीं थे।


सन1939 कांग्रेस के अध्यक्ष पद के निर्वाचन हेतु गाँधी जी ने पट्टाभि सितारे भैया को प्रत्याशी घोषित किया।  सुभाष चंद्र बोस ने पट्टाभि सितारमैय्या के सामने चुनाव लड़ा व सितरैमय्या को 203 मतों से पराजित किया।
गांधी जी ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय बनाते हुए कहा  सीताराम भैया की हार मेरी हार है ।

इस निर्वाचन के बाद कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन था । उस समय बॉस को 102 से डिग्री बुखार था। बॉस ने गांधी जी से अध्यक्षता हेतु निवेदन किया परंतु गांधी जी ने इंकार करते हुए कहा आप अध्यक्ष हैं तो आप ही अध्यक्षता करेंगे।
इस प्रकार  गांधीजी के विरोध के चलते बॉस अपने तरीके से  काम नहीं कर पाए और अंततः मजबूर होकर बॉस को 29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा ।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 3 मई 1940 को फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन कर देशव्यापी आंदोलन किया ।

फॉरवर्ड ब्लॉक के उत्साही देश भगत कार्यकर्ताओं ने कलकत्ता के हालवेट स्तंभ को भारत की गुलामी का प्रतीक मानते हुए रातों-रात इसे ध्वस्त कर इसकी नींव की ईंटे तक उखाड़ कर ले गए ।
इससे क्षुब्ध होकर सरकार ने फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी सदस्यों सहित बॉस को नजरबंद कर दिया।

विश्वयुद्ध की परिस्थितियों में बोस को जेल में रखने से आंदोलन की संभावना को देखते हुए बॉस को उनके घर पर ही नजरबंदी में रखा गया।
घर के बाहर खुफिया पुलिस का निरंतर पहरा रहता था
  शेर वो भी बंगाल का ऐसे समय कैसे नजरबंदी में रह सकता था ।
बॉस दिनांक 16 जनवरी 1941 को मौलवी जियाउद्दीन  बन कर अंग्रेजी खुफिया विभाग की आंखों में धूल झोंक कर पलायन कर गए।


‌  बॉस गोमोह से रेल से पेशावर पहुंचे। पेशावर में बॉस भगतराम तलवार से मिले व उनके साथ गूंगा बन पैदल ही  काबुल की ओर चले।
रास्ते मे पूछताछ के समय पकड़े जाने के डर से बोस को अपने पिताजी से मिली सोने की चैन वाली घड़ी भी एक पुलिसवाले को देनी पड़ी।

काबुल में उत्तम चंद जी मल्होत्रा के साथ रहे। जिन्होंने आपकी काफी सहायता की ।
बॉस 18 मार्च 1941 को सीनो ऑरलैंडो मेजोट्रा बनकर मास्को से बर्लिन गए ।


वहां मुक्ति सेना का गठन किया। बर्लिन में आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की व दिनांक 19 फरवरी 1942 को अपने भाषण में देशवासियों को संबोधित कर कहा हम बाहर से आक्रमण करेंगे आप देश के अंदर लड़ाई लड़े।

हिटलर से हुई मुलाकात के बाद बॉस को  लगा हिटलर  को भारत की आजादी में कोई दिलचस्पी नहीं है।
इसलिए बॉस 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बंदरगाह से
मातसुदा बने हुए अपने साथी आबिद हसन सफ़रानी के  जर्मन पनडु्बी में बैठकर साथ 83 दिनों तक सफर कर के  हिंद महासागर में मेडागास्कर के किनारे तक गए।

वहां से समुद्र में तैर कर जापानी पनडु्बी तक पहुंचे और इंडोनेशिया के बंदरगाह पहुंचे।
 
तोजो के आमंत्रण पर आपने 16 जून 1946 को  जापानी संसद में भाषण किया।
रासबिहारी बोस आपके इंतजार में थे। सिंगापुर एडवर्ड पार्क में रासबिहारी बोस ने इंडिपेंडेंस लीग का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को सौंपा ।
सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र ने 21 अक्टूबर 1940 को  आजाद भारत की अंतरिम सरकार स्थापित की जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया ,चीन , इटली आदि  9 देशों ने मान्यता दी।
जापान में नजरबंद भारतीय सैनिकों को आजाद हिंद फौज में मिलाया गया।
पूर्वी एशिया में बॉस ने प्रवासी भारतीयों को देश की आजादी की लड़ाई का आव्हान करते हुए
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा
नारा बुलंद किया
द्वितीय महायुद्ध के दौरान अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए आजाद हिंद फौज ने जापानी फोर्स के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत पर आक्रमण किया ।
बॉस ने ” दिल्ली चलो का नारा” बुलंद किया ।
आजाद हिंद फौज इंफाल और कोहिमा तक पहुंच गई ।
तोजो ने 1 नवंबर 1943  अंडमान और निकोबार द्वीप बॉस को सम्भलाए।
जिनका दौरा करने के बाद बॉस ने इन द्वीपों के नाम बदलकर “शहीद”“स्वराज” रखा।
बॉस ने इस दौरान 6 जुलाई 1944 कोरंगून रेडियो से महात्मा गांधी को” राष्ट्रपिता” से संबोधित करते हुए आशीर्वाद चाहा।
गांधी जी ने भी बॉस को भारत का राजकुमार बताया।

बॉस ने  बंगलोर कथा व  फारवर्ड दैनिक पत्रों का संपादन भी किया।
बॉस ने द इंडियन स्ट्रगल व इंडियन पिलग्रिम पुस्तक भी लिखी।
बॉस ने बंगाल की विभिन्न क्रांतिकारी  अनुशीलन समिति का युगांतर में  समन्वय हेतु भी प्रयत्न किया।
बंगाल वॉलिंटियर्स का गठन भी बॉस ने किया था ।
बॉस का कहना था
“मैं या तो पूर्ण आंतकवादी हूं या फिर कुछ नहीं।”
”  अपना स्वाभिमान और सम्मान खोने की अपेक्षा, मैं मर जाना पसंद करूंगा।
भिक्षावृत्ति की अपेक्षा में प्राणोत्सर्ग मुझे प्रिय है।”
“,दासत्व मनुष्य का सबसे बड़ा अभिशाप है ।
अन्याय और बुराई से समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है।
कहां जाता है कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में बोस का ध्यान तो गया परंतु इस तथ्य की पुष्टि नहीं हुई इस पर भारत सरकार द्वारा तीन बार आयोग गठित किए गए परंतु अभी तक यह तथ्य किसी भी रूप में सुनिश्चित नहीं हुआ है

हम भारतवासी भारत सरकार से यह अपेक्षा करते हैं की कम से कम यह तो सुनिश्चित कर दिया जावे की  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद युद्ध अपराधियों की सूची में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम नहीं है।
अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को छोड़कर बाहर नहीं जाना पड़ता और भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में की जाती तो हम अंग्रेजों से लड़कर आजादी भी लेते और देश का विभाजन भी नहीं होता।
जयहिन्द ।