विजय सिंह पथिक
आपका वास्तविक नाम भूप सिंह था। आपका जन्म 27 फरवरी 1882 को बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलाँ के एक अहीर परिवार में हुआ था।
सन 1907 में इंदौर में युवावस्था में ही आपका सम्पर्क विख्यात क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल से हुआ से व फिर राशबिहारी बॉस ढाका अनुशीलन समिति के वरिंदर के युगांतर से दल से अब जुड़ गए क्रान्तिकारियों से हो गया था।
दिनाँक 2 मई 1908 को अलीपुर एक्शन के मामले में मानिकतला बाग में युगान्तर दल की बम्ब बनाने की फैक्टरी में आपको भी गिरफ्तार किया गया था परंतु अब कोई सबूत नहीं होने के कारण आपको छोड़ दिया गया।
दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने के एक्शन में प्रतापसिंह बारहट के साथ आप भी शामिल थे।
रासबिहारी बोस की योजना के अनुसार आपने राजपूताना के राज परिवारों से संपर्क किया और उन्हें आजादी की लड़ाई हेतु तैयार किया।
आपके राजपूताना के क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी , खरवा के राव गोपाल सिंह, ब्यावर के सेठ दामोदर दास, प्रतापसिंह जी बारहठ आदि से अच्छे संबंध थे।
आप लोगों ने वीर भारत माता का सभा” का गठन किया था।
आपके श्यामजी कृष्ण वर्मा क्रांतिकारी अरविंद घोष से भी अच्छे संबंध थे।
उस दिनों 4 कारतूस एक साथ चलाने वाली बंदूकों के कारतूस नहीं मिलने के कारण आपने ऐसी बंदूकें सस्ते भाव में खरीदी और इनकी गोलियां कारतूस बनाने के प्रशिक्षण हेतु रेलवे में नौकरी भी की।
रासबिहारी बोस के नेतृत्व में समस्त भारत के क्रांतिकारियों व विदेशों से आए गदर पार्टी के सदस्यों ने 21 फरवरी 1915 को समस्त भारत में अंग्रेजों पर एक साथ सशस्त्र हमला करने की योजना बनाई थी।
राजपूताना में इस योजना का दायित्व आप व राव गोपालसिंह जी पर था।
तय योजना के अंतर्गत 19 फरवरी 1915 को अजमेर से अहमदाबाद गाड़ी पर बम फेंका जाना था जो क्रांति का सिग्नल था।
सिग्नल मिलने के पश्चात आपको नसीराबाद में अंग्रेजों पर सशस्त्र आक्रमण करना था ।
राजपूताना में खरवा के जंगलों में आप और आपके हजारों क्रांतिकारी साथी बम्ब व बंदूके धारण किये तैयार थे।
फरवरी 1915 की क्रांति के बारे में एक गद्दार कृपाल सिंह द्वारा पुलिस समस्त सूचना ददी ।
अंग्रेजों ने छावनीयों में भारतीय सैनिकों से हथियार ले लिए गए व बहुत बड़ी संख्या मर गिरफ्तारीयां हो गई जिसके कारण क्रांति सफल नहीं हुई।
क्रांति का सिग्नल नहीं मिलने के कारण आप आपके साथी इधर-उधर छिप गए।
आपके साथ राव गोपाल सिंह, मोर सिंह व सवाई सिंह आदि थे।
आप अपने साथियों के साथ। “शिकारी बुर्जी “ में आश्रय लिए हुए थे।
उसी समय अजमेर कमिश्नर ने पुलिस के साथ आप का घेराव कर लिया ।
आपने बुर्जी के अंदर से मुकाबले हेतु मोर्चे संभाल लिए ।
जिसके कारण कमिश्नर डर गया क्योंकि आपका उस क्षेत्र में अच्छा प्रभाव था और फायरिंग की स्थिति में जन आंदोलन होने की संभावना थी।
अंततः सरकार से हुए समझौता के अनुसार आप लोग डोरगढ़ के किले में नजर बंद किया गया।
इस बीच आपके नाम से फिरोजपुर मामले में आपके गिफ्तारी वारण्ट जारी हो गए थे।
आपने एक डोरगढ़ के किले से साधु का भेष बनाकर फरार हो गए।
उस समय आपने अपना नाम। विजय सिंह पथिक रखा था।
इसके बाद आप यहां से एक दो रियासतों के राजाओं के पास आश्रय हेतु गए परंतु उन्होंने आप को आश्रय देने से मना कर दिया ।
वहाँ से निकलने के लिए उनके वाहन मांगे तो पहचाने जाने के डर से वाहन भी उपलब्ध कराने से मना कर दिया।
आप रात को एक जंगल में सोए हुए थे कि शेर ने अपने मुंह मे आप भी टांग पकड़ कर जंगल की ओर घसीटने लगा
आप की आंख खुली तो आपने बिना घबराहट के अपने पिस्तौल से शेर को गोली मार कर मार दिया।
एक बूढ़ी औरत के यहां आश्रय लिया क्रांतिकारीयों के फ़रार होने के बारे में खबरें फेल चुकी थी ।
उस औरत को एहसास हो गया की हो ना हो आप क्रांतिकारियों में से ही एक है ।
इसलिए उसने अपने बेटे को भेजकर एक घोड़ी की व्यवस्था की और आपको वहां से फरार होने का मौका दिया ।
इसके बाद आप गुरला ठाकुर के पास रुके फिर ईश्वरदान जी चारण (प्रताप सिंह बारहठ के बहनोई) के पास उनके गांव में घ गए उस समय ईश्वरदान जी घर पर नहीं थे।
बिजौलिया से आये एक साधु सीताराम दास आपसे बहुत प्रभावित थे ।
उसने आपको बिजोलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमंत्रित किया।
बिजोलिया में किसानों से 84 मालगुजारी(लागें) वसूली जाती थी । जिनके किसानों की दशा आर्थिक रूप से बहुत खराब हो गई थी ।
आपने 1916 में बिजौलिया जाकर किसान आन्दोलन की कमान अपने हाथों में ली।
आपने किसानों के 13 सदस्यों का एक पंच मंडल बनाया। प्रत्येक गाँव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली। क्षेत्र के समस्त किसानों को एकत्रित किया।
आपके आंदोलन में महिलाओं ने भी भाग लिया। सरकारी सेना ने गोलियां चलाई जिसमें सुपाजी व कर्माजी नामक किसान शहीद हुए ।
किसान आंदोलन अलवर
मेवाड़ ,बूंदी ,सिरोही में शुरू होक में
सीकर तारवाटी , उदयपुरवाटी में हरलाल सिंह के नेतृत्व में जमींदारों के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू हुआ।
राजस्थान में करीब 2000 किसान शहीद हुए ।
बिजोलिया आंदोलन के समाचार को खूब प्रचारित किया था।
गणेश शंकर विद्यार्थी ने कानपुर से प्रकाशित अपने समाचार पत्र। ” प्रताप” व बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र मराठा में आंदोलन का प्रचार किया।
आपके प्रयत्नो से बाल गंगाधर तिलक ने अमृतसर 1919 में कांग्रेस की बैठक में बिजौलिया आंदोलन सम्बन्धी प्रस्ताव रखा गया।
आपने बिजोलिया किसानों के सम्बंध में बम्बई जाकर गांधी जी से भी चर्चा की।
गांधी जी नेविश्वास दिलाया कि मेवाड़ सरकार द्वारा किसानों को राहत नहीं दी जाती है तो गांधी जी स्वयं ने बिजौलिया आकर सत्याग्रह करेगें।
आपके प्रयत्नों से 1920 में अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना हुई।
इस संस्था की शाखाएँ पूरे प्रदेश में खुल गईं।
इस संस्था ने राजस्थान में कई जन आन्दोलनों का संचालन किया।
सन 1920 में आप अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दिखाती हुई एक प्रदर्शनी का आयोजन किया।
गांधी जी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजौलिया के किसानों को हिजरत करने यानी क्षेत्र छोड़ चले जाने की सलाह दी।
जिस आपने विरोध करते हुए कठोर शब्दों में कहा
यह तो केवल हिजड़ों के लिए ही उचित है , मर्दों के लिए नहीं।
सन् 1921 के आते-आते पथिक जी ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन किए।
बिजौलिया आन्दोलन अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था।
राजस्थान में किसान आन्दोलन की लहर चल पड़ी है।
इस बीच में बेगू में आन्दोलन तीव्र हो गया।
मेवाड सरकार ने बेगू आंदोलन में आपको 10 सितम्बर 1923 को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पाँच वर्ष की सजा सुना दी गई।
कैद के बाद आप अप्रैल 1927 में रिहा हुए।
अंतत: सरकार ने राजस्थान के ए० जी० जी० हालैण्ड को बिजौलिया किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया।
शीघ्र ही दोनो पक्षों में समझौता हो गया।
किसानों की अनेक माँगें मान ली गईं।
चैरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गईँ।
दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की गई ।
आपका 28 मई 1954 को स्वर्गवास हुआ।
आपने प्रारंभिक विद्यालयी शिक्षा ग्रहण की थी । पर अभ्यास से आपने हिंदी, उर्दू, इंग्लिश व मराठी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।
आप क्रांतिकारी होने के साथ साथ कवि, लेखक और पत्रकार भी थे।
आपने अजमेर से ” नवसंदेश “
और “राजस्थान संदेश ‘ के नाम से व वर्धा से। ‘राजस्थान केसरी’ हिन्दी के अखबार भी निकाले।
अजमेर से ही पथिक जी ने नया पत्र नवीन राजस्थान प्रकाशित किया।
आप “तरुण राजस्थान ” नाम के एक हिन्दी साप्ताहिक में
“राष्ट्रीय पथिक” के नाम से अपने विचार भी व्यक्त किया करते थे।
आपने अजय मेरु (उपन्यास)लिखा
उनके काम को देखकर ही उन्हें राजपूताना व मध्य भारत की प्रांतीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
भारत सरकार ने विजय सिंह पथिक की स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया।
आपकी कविता,
“यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे;
यदि इच्छा है तो यह है-जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।”
, लोकप्रिय हुई।
पूरे राजस्थान में वे राष्ट्रीय पथिक के नाम से अधिक लोकप्रिय हुए।
शत शत नमन