आपका जन्म 7 फरवरी 1908 को बनारस में हुआ । आपने काशी विद्यापीठ से विशारद की परीक्षा पास की थी।
आपकी आयु मात्र 14 वर्ष की थी जब आपने प्रिंस एडवर्ड के बनारस आगमन पर पर्चे बांटे थे।
इस मामले में आपको 3 माह की सजा काटनी पड़ी।
गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापिस लिए जाने के बाद आप का सानिध्य बंगाल के क्रांतिकारियों से हुआ और आप सशस्त्र क्रांति पथ पर आगे बढ़े।
आप क्रांतिकारी दल ” हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन “के सक्रिय सदस्य थे। काकोरी एक्शन के समय आप भी साथ थे।जब अश्फाक खजाने वाला बक्सा तोड़ने लगे तो अपना माउज़र आपको दिया ताकि आप माउजर तानकर ट्रैन में बैठे लोगों को डराए रखे।
आपके हाथ से घोड़ा दब गया जिससे अहमद अली नामक यात्री की मृत्यु हुई जिसकी हत्या के अपराध मेंआपकी आयु कम होने के कारण आपको 14 वर्ष कारावास की सज़ा हुई थी।
आपके पिता श्री वीरेश्वर जी आपसे मिलने आये तो आप रोने लगे । आपके आपके पिता ने आपको रोने से रोकते हुए कहा – – “I don’t expect tears in eyes of my son”.
आपकी अध्ययन व लेखन में रुचि थी। आपने हिंदी , इंग्लिश व बंगाली में करीब 120 पुस्तकें लिखी।
आपके द्वारा लिखित पुस्तकों में ‘भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास’ , ‘क्रांति युग के अनुभव ‘, “चंद्रशेखर आजाद” , “विजय यात्रा” , “यतींद्र नाथ दास” ‘कांग्रेस के सौ वर्ष” ,’ “द लिवड़ डेंजरसली”, ” रेमिनीसेंसेज ऑफ़ अ रेवोल्यूशनरी”, “भगत सिंह एंड हिज़ टाइम्स”, “आधी रात के अतिथि”, ” कांग्रेस के सौ वर्ष”, “दिन दहाड़े” ” सर पर कफन बाँध कर”, “तोड़म फोड़म”, “अपने समय का सूर्य:दिनकर”, और “शहादतनामा” मुख्य है।
आपको 1937 में जेल से छोड़ा गया।
आजादी के बाद आपने सूचना प्रसारण मंत्रालय कार्य किया।
जब डीडी ने 19 दिसम्बर को बिस्मिल की फांसी के 70 साल बाद 1997 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई तो आपने काकोरी एक्शन के समय गोली चलाये जाने की ग़लती को स्वीकार किया ।
ऐसी गलती एक बार आज़ाद जी से भी हुई थी जब उन्होंने अपने माउज़र को खाली समझ कर आप पर फ़ायर कर दिया ।गोली आपके सर के पास से निकल गयी।
आपका स्वर्गवास दिनाँक 26 अक्टूबर 2000 में हुआ।
शत शत नमन