अवधबिहारी: साहस, बलिदान और क्रांतिकारी संघर्ष
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे अनेकों वीर क्रांतिकारी हुए हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान दिया। उन्हीं शहीदों में से एक थे अवधबिहारी, जिनका जीवन साहस, संघर्ष और मातृभूमि के प्रति अनन्य निष्ठा का प्रतीक बन गया। उनका बलिदान भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अवधबिहारी का जन्म 1869 में दिल्ली में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने B.A. की डिग्री प्राप्त की और फिर लाहौर सेंट्रल ट्रेनिंग कॉलेज से B.T. की डिग्री ली। शिक्षा के क्षेत्र में उनका सफर काफी प्रेरणादायक था, लेकिन उनका मन हमेशा से अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार था।
क्रांतिकारी गतिविधियों में भागीदारी
रासबिहारी बोस के नेतृत्व में देश में कई स्थानों पर एक साथ बम विस्फोट करने की योजना बनाई गई, जिसका उद्देश्य अंग्रेजी अधिकारियों को निशाना बनाना था। अवधबिहारी ने इस क्रांतिकारी योजना में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश और पंजाब में क्रांतिकारी संगठन की जिम्मेदारी संभाली और अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ अपने संघर्ष को तेज किया।
23 दिसम्बर 1912 को दिल्ली और 17 मई 1913 को लाहौर के लॉरेंस गार्डन में बम विस्फोट किए गए। इन हमलों के पीछे अवधबिहारी का हाथ था। लॉरेंस गार्डन में हुए बम विस्फोट को उन्होंने बसंत कुमार के साथ मिलकर अंजाम दिया था। यह एक्शन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है।
गिरफ्तारी और फांसी की सजा
अवधबिहारी को अंततः कलकत्ता के राजा बाजार स्थित एक मकान से गिरफ्तार किया गया। वहां से पुलिस को बम की टोपी और लाहौर से हस्ताक्षरित एक पत्र मिला, जो दीनानाथ द्वारा लिखा गया था। दीनानाथ की गिरफ्तारी के बाद उसने पुलिस को सब कुछ बता दिया, जिससे अवधबिहारी की गिरफ्तारी सुनिश्चित हो गई।
अवधबिहारी और उनके साथियों को दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इस षड्यंत्र के तहत वॉयसराय हार्डिंग पर बम हमले की योजना बनाई गई थी। पहले इन सभी क्रांतिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में ओ डायर द्वारा अपील करने पर सभी को फांसी की सजा दी गई।
इस योजना में प्रतापसिंह जी बारठ और उनके बहनोई भी शामिल थे, लेकिन क्रांतिकारियों ने किसी भी अन्य का नाम नहीं लिया। यह उनका साहस और अनुशासन था, जो उन्हें एक सच्चे सेनानी बनाता है।
अंतिम शब्द और शहादत
11 मई 1915 को अंबाला जेल में अवधबिहारी को फांसी दी गई। फांसी से पहले एक अंग्रेज अधिकारी ने उनसे उनकी अंतिम इच्छा पूछी, तो उन्होंने उत्तर दिया, “यही कि अंग्रेजी साम्राज्य नष्ट भ्रष्ट हो जाए।”
अवधबिहारी ने हंसते हुए फांसी का फंदा अपने हाथों से पहना और ‘वंदेमातरम’ का उद्घोष करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका यह साहस और बलिदान आज भी भारतीयों के दिलों में जीवित है।
धरोहर और प्रेरणा
अवधबिहारी का जीवन हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता संग्राम केवल एक संघर्ष नहीं, बल्कि देश की आज़ादी के लिए शहादत देने का एक रास्ता था। उनका साहस, आत्मबल और मातृभूमि के प्रति निष्ठा आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।
आपकी की गुनगुनाई हुई एक प्रसिद्ध लाइन थी:
“एहसान ना ख़ुदा का उठाएं मेरी बला,
किश्ती ख़ुदा पे छोड़ दूं, लंगर को तोड़ दूं!“
शत-शत नमन शहीद अवधबिहारी को।
उनकी शहादत यह याद दिलाती है कि स्वतंत्रता के लिए हमें किसी भी कठिनाई से डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें अपने देश के लिए हर हाल में संघर्ष करना चाहिए।
