भाई बालमुकुंद: एक क्रांतिकारी जो इतिहास में अमर हो गए
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक शहीदों और क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इन महापुरुषों में से एक थे भाई बालमुकुंद, जिनका जीवन साहस, बलिदान और संघर्ष का प्रतीक बन गया। उनका योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनमोल है, बल्कि उनका नाम आज भी हर भारतीय के दिल में जीवित है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
भाई बालमुकुंद का जन्म 1889 में गांव खरियाला, जिला झेलम, पंजाब में हुआ था। एक सामान्य परिवार में जन्मे बालमुकुंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने लाहौर डी. ए. वी. कॉलेज से B.A. की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा में उत्कृष्टता के बावजूद, उनके मन में एक गहरी असंतोष था, जो उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के लिए प्रेरित किया।
क्रांतिकारी कार्यों की शुरुआत
लाहौर में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, भाई बालमुकुंद का संपर्क रासबिहारी बोस से हुआ, जो उस समय भारत के प्रमुख क्रांतिकारी नेता थे। रासबिहारी बोस के नेतृत्व में उन्होंने ‘युगांतर’ जैसे क्रांतिकारी दल में सक्रिय भाग लिया और दल के कामकाज को संभाला। वे क्रांतिकारी पर्चा “लिबर्टी” का वितरण करते थे, जिसका उद्देश्य भारतवासियों में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह की भावना जागृत करना था।
महत्वपूर्ण क्रांतिकारी घटनाएँ
भाई बालमुकुंद ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। 23 दिसम्बर 1912 को दिल्ली में वॉयसराय हार्डिंग पर बम फेंका गया, और 17 मई 1913 को लाहौर के लॉरेंस गार्डन में ब्रिटिश सिविल ऑफिसर्स को निशाना बनाकर बम विस्फोट किए गए। दोनों ही घटनाओं ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया था, हालांकि इन घटनाओं के बाद कोई गिरफ्तारियाँ नहीं हुईं। इन क्रांतिकारी कार्रवाइयों से ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई थी और पुलिस ने देशभर में तलाशी और गिरफ्तारी की कार्रवाई शुरू कर दी।
गिरफ्तारी और फांसी की सजा
क्रांतिकारी गतिविधियों के बाद पुलिस ने जोधपुर में राजकुमार को शिक्षा देने वाले भाई बालमुकुंद को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार होने के बाद, पुलिस ने उन्हें दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र के मामले में आरोपित किया। क्रांतिकारियों के खिलाफ उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं था, केवल संभावनाओं और संदेह के आधार पर उन्हें फांसी की सजा दी गई।
फिर ओ डायर की अपील पर, सभी क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई, जिसमें मास्टर अमीरचंद, अवधबिहारी, बसंत कुमार बिस्वास, और भाई बालमुकुंद शामिल थे। इन सभी क्रांतिकारियों के खिलाफ किसी ठोस साक्ष्य की कमी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनके विरोध और संघर्ष को दबाने के लिए उन्हें मौत की सजा दी।
शहादत और अमरता
8 मई 1915 को दिल्ली जेल में भाई बालमुकुंद को फांसी दे दी गई। उनकी शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ दिया। वे केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा थे, जो अपने देश को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिलाने के लिए तैयार थे।
धरोहर और प्रेरणा
भाई बालमुकुंद का बलिदान यह साबित करता है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ स्वतंत्र और सम्मानित जीवन जी सकें। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि हमें अपनी मातृभूमि के लिए किसी भी स्तर तक संघर्ष करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
शत-शत नमन शहीद भाई बालमुकुंद को।
उनका बलिदान भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा, और उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि यदि हम एकजुट होकर अपने देश के लिए संघर्ष करें, तो कोई भी शक्ति हमें हमारे लक्ष्य से हटा नहीं सकती।
