:- अलीपुर एक्शन -:
अंग्रेजों की भाषा में ‘” अलीपुर षड्यंत्र ” कहे जाने वाले को हमारी भाषा मे
” अलीपुर एक्शन ” से संबोधित करेंगे। आजादी के सशस्त्र संग्राम के क्रम में हमारे क्रांतिकारियों द्वारा किसी स्थान विशेष पर कोई हथियार रखने , बम्ब बनाने , किसी कुख्यात निर्दयी अधिकारी या गदार का वध करने जैसे क्रांतिकारी एक्शन लिये जाते थे । अंग्रेजी पुलिस व सरकार ऐसे क्रांतिकारी एक्शन को उस स्थान का नाम देकर फिरंगी साम्राज्यवाद के विरुद्ध युद्ध करना करार देकर फौजदारी मामला बना कर क्रांतिकारियों को फाँसी व कालापानी जैसी सजाए देने हेतु कार्यवाही करती थी ।। अलीपुर एक्शन बंगाल की कलकत्ता अनुशीलन समिति द्वारा बम्ब बनाने , लेफ्टिनेंट जनरल एंड्रयू फ्रेजर को मारने हेतु दिसंबर 1906 बम्ब से रेलगाड़ी उड़ाने से संबंधित था। इस दल द्वारा कोलकाता में मानिकतल्ला में स्तिथ बगीचे में सन 1908 से बम्ब बनाने का काम शुरू किया गया था। इस समिति का एक केंद्र देवघर में भी स्थापित कर लिया गया । डगलस किंग्स फोर्ड कोलकाता में चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट था उसने क्रांतिकारी समाचार पत्र युगांतर , वंदे मातरम , संध्या , नवशक्ति व अन्य के संपादकों पर मुकदमा चलाकर उन्हें दंडित किया था। किंग्सफोर्ड ” कसाई काजी” के नाम से कुख्यात था। इस क्रांतिकारी दल ने किंग्सफोर्ड का वध करने का निर्णय किया । सरकार को खबर होने पर किंग्सफोर्ड का स्थानांतरण कोलकाता से मुजफ्फरपुर कर दिया गया । क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी व खुदीराम बोस को किंग्सफोर्ड का वध करने का दायित्व सौंपा गया । दोनों क्रांतिकारी मुजफ्फरपुर आये व किंग्सफोर्ड की गाड़ी व गतिविधियों पर नज़र रखी तथा मौका मिलते ही दिनांक 30 अप्रेल 1908 को किंग्स फोर्ड की कार को बम्ब से उड़ा दिया । दुर्भाग्य से कार में किंग्सफोर्ड नहीं था । सरकारी वकील कैनेडी की पत्नि व पुत्री थी । पुलिस के सामने बम्ब बनाने जाने का यह पहला मामला था। इसलिये पुलिस व सरकार हिल गयी शिघ्र जांच पड़ताल की गई व दिनाँक 2 मई 1908 को इस मामले में कुल 38 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर पेश किया गया विचारण में कुल 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया। इस बीच एक क्रांतिकारी नरेंद्र गोस्वामी सरकारी गवाह बन गया । नरेंद्र द्वारा दल की सारी जानकारी पुलिस को दी जाने का डर था । इसलिए सत्येंद्र बॉस व कन्हैलाल दत्त ने जैल में ही पिस्तौल मंगवा कर गदार नरेंद्र का जैल के अस्पताल में वध कर दिया। इसअलीपुर मामले में कुल 222 गवाहों के बयान हुए व 2000दस्तावेज पेश हुए । मामले का निर्णय 6 मई 1909 को हुआ बारीन्द्र घोष व उल्लासकर दत्त को फांसी की सजा दी गई। जो अपील में उम्रकैद करदी गयी । यह केस सम्राट बना अरबिंदो घोष के नाम से था। इसी को ही अलीपुर के अलावा मानिकतला व मुरारीपुकुर के नाम से भी जाना जाता है अलीपुर केस का निर्णय दिनांक 6 मई 19 09 को किया गया इसमें कुल 49 अभियुक्त रखे गए थे जिनमें से 13 को उम्र कैद वह उनकी संपत्ति जब्त की गई 3 को 10 वर्ष की सजा व उनकी संपत्ति जब्त की गई 3 को 7 वर्ष की सजा व एक को 1 वर्ष की सजा दी गयी । वह अरविंद घोष सहित 17 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी किया गया सभी उम्र कैद वाले कैदी अंडमान जेल में भेजे गए प्रथम महायुद्ध के बाद 1920 में राजनीतिक कैदियों की सामूहिक माफी हुई तब इन सब लोगों की सजा माफ कर दी गई। कुछ क्रांतिकारीयों ने रिहाई के बाद फिर से आज़ादी के लिए लड़ाई शरू रखी। शत शत नमन क्रांतिवीरों को