:-शहीद अशफ़ाक़ उल्ला खाँ-:
भारतीय सशस्त्र क्रांति का इतिहास अधूरा रहेगा यदि हम क्रांतिवीर अशफाक उल्ला खान की शहादत और शौर्य का जिक्र नहीं करेंगे। अशफाक उल्ला वारसी हसरत शाहजहांपुर के निवासी थे । अशफ़ाक़ जी के परिवार की गिनती वहां के रईसों परिवारों होती थी ।
अशफ़ाक़ को बचपन से ही तैरने , घोड़े की सवारी करने और भाई की बंदूक लेकर शिकार करने में बड़ा आनंद आता था ।
अशफ़ाक़ शारिरिक रूप से स्वस्थ व सुडोल सुंदर जवान थे । जिनका चेहरा हमेशा ही खिला हुआ और बोली में प्रेम रहता था ।
अशफ़ाक़ अच्छे कवि भी थे और
” हसरत” कवि नाम से लिखते थे काकोरी वीर अदालत में आते जाते अशफाक की लिखी कविताएं गाते थे ।
अशफाक हिंदू मुस्लिम एकता के बड़े कट्टर समर्थक थे ।एक बार शाहजहांपुर भी हिन्दुमुस्लिम दंगो की चपेट में आ गया। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल व अशफ़ाक ने मिलकर लोगों को समझाया।
काकोरी एक्शन में अशफाक ने अपने शक्तिशाली हाथों से सरकारी खजाने वाले मजबूत संदूक को तोड़ा था ।
अशफ़ाक़ क्रांतिकारी दल “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ” के सदस्य थे । अशफ़ाक़ पर कुल 5 अभियोग लगाए गए जिनमेसे तीन में फाँसी व 2 में उम्रकैद की सजा दी गयी ।
अदालत में अशफ़ाक़ को रामप्रसाद बिस्मिल का “लेफ्टिनेंट” कहा गया।
अशफ़ाक़ को फैजाबाद जेल में दिनांक 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी ।
अशफाक उल्ला की जिंदगी के कुछ किस्सों का ‘ हिंदू पंच के बलिदान अंक “जो 1930 में प्रकाशित हुआ था व श्री कृष्ण सरल की पुस्तक क्रांतिकारी कोष से लिये है ।
काकोरी एक्शन वाले दिन आप
” कुंवर जी “बने हुए थे और गाड़ी को रोकने हेतु ड्रामा किया था कि कुँवर जी का जेवरों का बक्सा जो उनके हाथ में था , जिसमें 20 हजार रुपये के जेवर थे, प्लेटफॉर्म पर भूल गए व शचीन्द्र बख्शी ने चैन खींच कर गाड़ी रोकी ।
काकोरी एक्शन में अशफ़ाक़ व शचीन्द्र नाथ बख्शी गिरफ्तार नहीं हुए थे । इसलिए गिरफ्तारी के बाद दोनों पर काकोरी मुकदमा पूरक रूप में चलाया गया था ।
अशफ़ाक 8 सितम्बर 1926 में दिल्ली में गिरफ्तार किए गए व शचीन्द्र बख़्शी को उन्ही दिनों में गिरफ्तार कर लखनऊ लाया गया अदालत में अशफ़ाक व शचीन्द्र बक्शी को अलग अलग गाड़ियों से लाया गया और दोनों को मिलने नहीं दिया गया ।अदालत में दोनों अजनबी बन कर रहे ।
अदालत के बाद पुलिस यह गुप्त रूप से देखना चाहती थी कि अशफाक व बक्शी एक दूसरे को पहचानते हैं या नहीं ?
अदालत के बाद दोनों अपरिचित से खड़े थे जेल अधिकारी ने अशफ़ाक को सुनाते हुए बख्शी जी को नाम लेकर पुकारा ।
अशफ़ाक ने बख्शी जी की ओर देख कर कहा
” अच्छा आप ही शचीन्द्र बक्शी हैं ! मैंने आपकी बड़ी तारीफ सुन रखी है। “
बख्शी जी ने जेल अधिकारी से पूछा क्या आप मुझे इनका परिचय देंगे जो मुझसे सवाल कर रहे हैं। जेल के अधिकारी ने बक्शी जी से कहा ये
“प्रसिद्ध क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां है “
बक्शी जी ने जानबूझकर बनते हुए अशफ़ाक को संबोधित करते हुए कहा
“अच्छा आप ही अशफ़ाकउल्लाह खां है मैंने भी आपकी बहुत तारीफ सुन रखी है”।
लोग कोतुहल से देख रहे थे । इसके बाद दोनों अपनी भावनाओं पर लगाम नहीं लगा सके व एक दूसरे की भुजाओं में बंधे हुए एक दूसरे को दबोच कर मिल रहे थे। इनको मिलते हुए देखकर पुलिस वाले भी अपने आप को ताली बजाने से रोक नहीं सके।
स्पेशल मजिस्ट्रेट सैयद अईनुदीन ने अशफ़ाक से पूछा
“आपने मुझे कभी देखा है?”
अशफ़ाक ने कहा मैं तो आपको बहुत दिनों से देख रहा हूं। जब से काकोरी का मुकदमा आप की अदालत में चल रहा है। तब से मैं कई बार यहां आकर देख गया हूँ।
मजिस्ट्रेट ने पूछा कि कहां बैठते थे?
तो अशफाक ने बताया कि वे आम दर्शकों के साथ एक राजपूत के भेष में बैठा करते था।
लखनऊ में एक दिन पुलिस अधीक्षक खान बहादुर ने अशफ़ाक को मुसलमान होने की दुहाई देकर कुछ कहा देश आज़ाद भी हो गया तो हिन्दू राज्य होगा। अशफ़ाक ने जबाब दिया” HINDU INDIA IS BETTER THAN BRITISH INDIA”
फ़रारी के दिनों में अशफ़ाक राजस्थान के क्रांतिकारी श्री अर्जुन लाल सेठी के घर रुके थे उनके घर अशफ़ाक को काफ़ी स्नेह मिला । सेठी जी पुत्री अशफ़ाक का इतना ध्यान रखती थी कि अशफ़ाक यह महसूस करने लग गए कि कहीं इनका स्नेह बंधन न बन जाये और अशफ़ाक ने सेठी जी से अनुमति लेकर अन्यत्र चले गए ।
अशफ़ाक की फाँसी की खबर से सेठी जी की पुत्री को इतनाधक्का लगा कि वह बीमार पड़ गयी और बच नहीं सकी ।
फ़रारी के समय अशफ़ाक दिल्ली में शाहजहांपुर के ही एक मुसलमान साथी के घर रुके थे उनका सहपाठी भी था।पर साथी दगा कर गया व ईनाम के लालच में अशफ़ाक को गिरफ्तार करवाया दिया।
उस साथी के घर के पास एक इंजीनियर साहब का घर था जहाँ अशफ़ाक का आना जाना था । इंजीनियर साहब की कन्या ने तो अशफ़ाक के समक्ष विवाह का प्रस्ताव भी रख दिया । बड़ी मुश्किल से अशफ़ाक ने पीछा छुड़ाया।
फांसी से पहले दिन अशफ़ाक दूल्हे की तरह सजधजकर तैयार हुए व बहुत खुश दिखाई देते थे। मिलने आये मित्रों से कह रहे थे मेरी शादी है । अगले दिन सुबह 6:30 बजे अशफाक को फांसी दी गई थी। शहादत के दिन अशफ़ाक हंसी खुशी के साथ कुरान शरीफ का बस्ता कंधे से टांगे हाजियों की तरह लवेक कहते और कलमा पढ़ते, फाँसी के तख्ते के पास गए तख्त को चुंबन किया और फाँसी के समय उपस्थित लोगों से कहा “मेरे हाथ इंसानी खून से कभी नहीं रंगें। मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया है ,वह गलत है। खुदा के यहां मेरा इंसाफ होगा “”
अशफाक ने फांसी से पहले दिन अपने भाई साहब को प्रेषित करने हेतु एक तार दिया जो गणेश शंकर विद्यार्थी को उनके पते पर भेजना था। तार भेज दिया गया । तार में अशफ़ाक ने
“” लिखा था 19 दिसंबर को दिन 2:00 बजे लखनऊ स्टेशन पर मुलाकात करें। उम्मीद है ,आप मेरी इल्तिजा कुबूल फरमाएंगे”‘
यह घटना बहुत ही मार्मिक है गणेश शंकर विद्यार्थी को पता चल चुका था कि 19 दिशम्बर को अशफाक को फांसी दी जानी है।इसलिए वे समाचार पत्र का संपादकीय लेख अशफ़ाक पर ही लिख रहे थे । इस बीच वह तार प्राप्त हुआ उन्होंने तार को मेज पर रख दिया और अपने काम में लग गए ।
इत्तफाक से हवा का झोंका आया और तार उड़कर गणेश शंकर विद्यार्थी के हाथ की कलम के आगे आ गया । विद्यार्थी जी ने तार खोल कर पढ़ा तो सब समझ में आ गया और विद्यार्थी जी साथियों सहित फूलमालाएँ लेकर अशफाक को मिलने गए ।
अशफाक ने अपने अंतिम समय में देश वासियों के नाम एक संदेश छोड़ा था जिस का सारांश इस प्रकार है ।
भारत माता के रंगमंच का अपना पाठ अब हम अदा कर चुके।जो हमने किया वह स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना से किया ।हमारे इस काम की कोई प्रशंसा करेंगे और कोई निंदा किंतु हमारे साहस और वीरता की प्रशंसा हमारे दुश्मनों तक को करनी पड़ी है। क्रांतिकारी बड़े वीर योद्धा और बड़े अच्छे वेदांती होते हैं ।
हम तो कन्हैयालाल दत्त खुदीराम बोस गोपीमोहन साहा आदि की स्मृति में फांसी पर चढ़ जाना चाहते थे।
भारत वासियों आप कोई हो चाहे जिस धर्म या संप्रदाय के अनुयाई हो परंतु आप देशहित के कामों में एक होकर योग दीजिए आप लोग व्यर्थ में लड़ झगड़ रहे हैं । सब धर्म एक है ,रास्ते चाहे भिन्न-भिन्न हो परंतु लक्ष्य है सबका एक ही है । फिर झगड़ा बखेड़ा क्यों ? हम मरने वाले आपको कह रहे हैं आप एक हो जाइए और सब मिलकर नौकरशाही का मुकाबला कीजिए। यह सोचकर की सात करोड़ मुसलमान भारत वासियों में सबसे पहला मुसलमान हूं ।जो भारत की स्वतंत्रता के लिए फांसी पर चढ़ रहा हूं। मन ही मन अभिमान का अनुभव कर रहा हूं ।
आज भी अशफ़ाक के शब्द कानों में गूंज रहे है :-
तंग आकर हम भी उनके ज़ुल्म के बेदाद से,
चल दिये सुए अदम जिन्दाने फैज़ाबाद से।
शहीद अमर रहे!