प्रतापसिंह बारहठ

सिंह पुरुष, क्रांतिवीर प्रताप सिंह बारहठ

भारत माता के उस सपूत को शत-शत नमन, जिसने सिंह की तरह संघर्ष किया और बलिदान दे दिया।

राजस्थान की वीर भूमि पर जन्मे प्रताप सिंह बारहठ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उस तेजस्वी अध्याय का नाम हैं, जिसने हथियारबंद क्रांति की धधकती मशाल को उत्तर भारत तक पहुंचाया।

क्रांति का पारिवारिक संस्कार

प्रताप सिंह जी का जन्म एक क्रांतिकारी परिवार में हुआ था। उनके पिता केसरी सिंह बारहठ न केवल एक विद्वान और राष्ट्रभक्त थे, बल्कि उन्होंने राव गोपाल सिंह (खरवा), अर्जुनलाल सेठी (जयपुर) और सेठ दामोदरदास राठी (ब्यावर) के साथ मिलकर “अभिनव भारत समिति” की स्थापना की थी।

यह समिति भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध गुप्त रूप से सशस्त्र संघर्ष की योजना बना रही थी और रासबिहारी बोस से उनका गहरा संपर्क था।

रासबिहारी बोस का ‘सिंह’

केसरी सिंह जी ने अपने पुत्र प्रताप सिंह को देश की सेवा हेतु रासबिहारी बोस को समर्पित कर दिया। जल्दी ही प्रताप सिंह बोस के विश्वासपात्र बन गए। रासबिहारी बोस ने एक बार लिखा था –
“इसकी आंखों में आग है, यह सिंह है।”

दिल्ली बम कांड का नायक

23 दिसंबर 1912 — यह दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जब ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड हार्डिंग दिल्ली में नए राजधानी उद्घाटन समारोह में शामिल होकर हाथी पर सवार होकर चांदनी चौक से गुजर रहे थे।

उसी समय एक बम उनकी सवारी पर फेंका गया। योजना के पीछे थे रासबिहारी बोस, और जिम्मेदारी सौंपी गई थी प्रताप सिंह बारहठ और जोरावर सिंह को।

बम फेंकने की योजना प्रताप सिंह ने ही बनाई थी — उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की छत को चुना, बुर्का पहनकर बम फेंका, और योजना के अनुसार बखूबी कार्य को अंजाम दिया।

हालांकि हार्डिंग बच गया, लेकिन उसका अंगरक्षक मारा गया। इसके बाद प्रताप सिंह जी और उनके बहनोई ईश्वर सिंह आशिया यमुना नदी तैरकर भागे और पीछा कर रही पुलिस पर गोली भी चलाई।

गिरफ्तारी और यातनाएं

दिल्ली केस में प्रताप सिंह जी पर कोई साक्ष्य नहीं था, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन आशानाडा के एक रेलवे स्टेशन मास्टर ने गद्दारी की और उन्हें गिरफ्तार करवा दिया।

इसके बाद बनारस षड्यंत्र केस में उन्हें 5 वर्ष की सजा हुई और बरेली सेंट्रल जेल में रखा गया, जहां उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं।

वायसराय का सचिव क्लीवलैंड खुद जेल में आकर उन्हें अपने परिवार की दुहाई देकर क्रांतिकारी गतिविधियों की जानकारी देने को कहता है, परंतु सिंह की भांति उत्तर मिलता है –
“मैं अपनी मां को चुप करवाने के लिए हजारों माओं को नहीं रुला सकता।”

उनके पिता केसरी सिंह जी भी जेल में मिलने आए और चेतावनी दी कि “अगर देशद्रोही सोच रखी तो मेरी गोली से नहीं बच पाओगे।”
प्रताप सिंह जी ने उत्तर दिया –
“दाता, मैं आपका पुत्र हूं। स्वप्न में भी देशद्रोही विचार नहीं लाऊंगा।”

शचींद्र सान्याल की गवाही

महान क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल ने अपनी आत्मकथा “बंदी जीवन” में प्रताप सिंह जी की बहादुरी और निडरता की खुलकर प्रशंसा की है।

अंतिम बलिदान

वर्षों की यातनाओं के बाद, 24 मई 1918 को (कुछ ग्रंथों में 27 मई) जेल में ही प्रताप सिंह बारहठ ने अपने प्राणों की आहुति दी।

वीर बारहठ परिवार को श्रद्धांजलि

यह परिवार स्वतंत्रता संग्राम का गर्व है — जिनके दो भाई, एक पुत्र और दामाद ने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर किए।

सिंह की गर्जना अब भी गूंजती है इतिहास के आकाश में।
शत शत नमन है उस सिंह पुरुष प्रताप सिंह बारहठ को,
जिनकी आंखों में आग थी और सीने में जलती हुई देशभक्ति।