दुर्गादेवी जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को शहजादपुर वर्तमान जिला कौशांबी इल इलाहाबाद में हुआ था।
जब आपकी आयु मात्र 10 वर्ष की थी तो आप विख्यात क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की जीवनसाथिनी बनी।
विवाह के बाद आपने प्रभाकर डिग्री ली
आपने अपने पति भगवती वोहरा के साथ नोजवान भारत सभा व हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक एसोसिएशन की सक्रिय सदस्य के रूप में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेती थी।
भगवती चरण वोहरा दल में बड़े थे इसलिए दल में सभी आपको दुर्गा भाभी से संबोधित करते थे।
गांधी जी के आह्वान पर आपने भी लाहौर में सत्याग्रह आंदोलन में खादी धारण कर सक्रिय रूप से भाग लिया।
क्रांतिकारी एक्शन चोरा-चोरी के बाद जैसे ही गांधी जी ने आंदोलन वापस लिया सभी क्रांतिकारियों की तरह आपका भी अहिंसात्मक आंदोलन पर से विश्वास उठ गया।
नौजवान भारत सभा के आयोजन में करतार सिंह सराभा की तस्वीर के नीचे लगाये गए खादी के कपड़ें पर आपने अपनी अंगुली के रक्त के छींटे दिए।लाहौर में साइमन कमीशन विरोध के समय दुर्गा भाभी के नेतृत्व महिला क्रांतिकारीयों ने भी भाग लिया था।
लाठीचार्ज के समय ही आपने गर्जना के साथ शपथ ली थी कि “डंके की चोट पर ब्रिटिश राज से टक्कर लेनी है।”
जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त केंद्रीय असेंबली में बम धमाका करने जा रहे थे तो वोहरा जी ने दुर्गाभाभी व सुशीला बहन को बुलाया कि भगतसिंह को विदाई पार्टी देने का बताते हुए क़ुरदसिया पार्क में बुलाया वहाँ आज़ाद जी व भगवती जी भगतसिंह को उसका मनपसंद खाना खिला रहे थे। सुशीला दीदी ने अपने अंगूठे के खून से भगतसिंह को तिलक कर विदा किया ।
वहां से भगतसिंह सीधे असेम्बली गए वहां बटुकेश्वर मिले दोनों ने असेम्बली में धमाका एक्शन लिया।
जब तक यह एक्शन चला तब दुर्गा भाभी शची को गोद लिए ,सुशीला व भगवती जी के साथ तांगे में असेम्बली के आगे घूमते रहे।
जब भगतसिंह व दत्त को पुलिस गिरफ्तार कर ले जाने लगी तो अचानक शची ने आवाज लगादी ” लंबू चाचा ” शुक्र है पुलिस का ध्यान नहीं गया।
सांडर्स वध के बाद आपने अंग्रेजी मैम जैसे वेष में साहब बने भगत सिंह की पत्नी के रूप में भगतसिंह व राजगरु को कोलकाता मेल से लाहौर से कोलकाता की जोखिम भरी यात्रा की थी। जो क्रांतिकारी इतिहास में भारतीय विवाहित महिला की वीरता व त्याग का एक उदाहरण है।
भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई जाने के बाद आज़ाद जी ने दुर्गा भाभी व सुशीला बहन को गांधी जी के पास भेजा था पर गांधीजी ने भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु की फाँसी रुकवाने की शर्त वॉयसराय इरविन से होनेवाली वार्ता में रखने से इन्कार कर दिया गया।
इसके बाद ही दल की केंद्रीय समिति की असहमति के बावजूद आपने अपने पति भगवतीचरण वोहरा के साथ वॉयसराय इरविन की ट्रेन बम्ब से उड़ाने के एक्शन में साथ दिया।
भगतसिंह व साथियों को जेल बस से छुड़ाने हेतु बनाये गए कार्यक्रम में आप साथ थी।पर दिनाँक 28 मई 1930 को आपके पति क्रांतिकारी भगवती वोहरा की बम्ब परीक्षण में शहीद हो गए । रात्रि में रावी तट के वीराने में खड्डा बनाकर शव को बुरा गया ।उस समय का आपका साहस व त्याग भी एक उदाहरण है।
1930 में दुर्गा भाभी के नेतृत्व में पृथ्वी सिंह व सुखदेव राज को पंजाब गवर्नर मैल्काल्म हैली का वध करने हेतु बम्बई भेजा गया था।आपने बहादुरी के साथ
दिनांक 8 अक्टूबर 1930 को इस एक्शन को अंजाम देना चाहा पर हैरी अपने निवास पर नहीं आया तो आपने पृथ्वीसिंह व सुखदेव राज के साथ लेमिंग्टन रॉड बम्बई में थाने के आगे एक यूरोपीयन जोड़े पर कार से चलते हए फायरिंग की । यह सार्जेंट टेलर था जिसके गोली लगी। आप घटना स्थल से आराम से निकल आये। यह एक्शन दल की अनुमति के बिना ही लिया था।
आपको 14 सितंबर 1932 में गिरफ्तार कर दो माह जेल में रखा गया फिर 1935 में गिरफ्तार किया गया पर एक सप्ताह बाद छोड़ दिया गया व जिलाबदर किया गया।
1935 में आप गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका लगी।
1937 में आप दिल्ली कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनी। उस समय आपने काकोरी केस से रिहा हुए क्रांतिकारीयों के अभिनंदन में कार्यक्रम रखा जिसके लिए आपको एक सप्ताह जेल में रहना पड़ा। आपको कांग्रेस रास नहीं आयी।
आपने 1939 में मद्रास जाकर मार्टिया मोंटेसरी से मोंटेसरी शिक्षा का प्रशिक्षण लिया व 1940 में लखनऊ कैंट रोड पर अपना एक निजी विद्यालय खोला। आपका 14 अक्टूबर 1999 को स्वर्गवास हुआ।
शत शत नमन महान वीरांगना को