क्रांतिवीर वीर: भगवतीचरण वोहरा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्रांतिवीर भगवतीचरण वोहरा का नाम साहस, विद्वता और बलिदान की प्रतिमूर्ति के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगा। वे न केवल एक जांबाज योद्धा थे, बल्कि एक गहन विचारक, लेखक और बम निर्माण में पारंगत विशेषज्ञ भी थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
भगवतीचरण वोहरा का जन्म 4 जुलाई 1903 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। उनके पिता श्री शिवचरण रेलवे विभाग में अधिकारी थे, जो बाद में आगरा से लाहौर स्थानांतरित हो गए। भगवतीचरण ने लाहौर के प्रसिद्ध नेशनल कॉलेज से बी.ए. की पढ़ाई की थी। इसी कॉलेज में उनके साथी और भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और सुखदेव भी अध्ययनरत थे। इन युवाओं ने एक अध्ययन मंडली का गठन किया, जिसमें वे स्वतंत्रता संग्राम, राजनीति और क्रांति के सिद्धांतों का गहन अध्ययन करते थे।
क्रांतिकारी संगठन और विचारधारा
भगवतीचरण वोहरा का “नौजवान भारत सभा” के गठन में विशेष योगदान था। इस संगठन के घोषणापत्र के निर्माण में भी उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। शचिंद्र सान्याल द्वारा तैयार क्रांतिकारी पर्चा “दि रेवोल्यूशनरी” को 1 जनवरी 1925 को जनता में वितरित करने का कार्य भी उन्होंने ही किया।
बम निर्माण में निपुणता और गुप्त गतिविधियाँ
भगवतीचरण बम बनाने में दक्ष थे। उन्होंने काकोरी कांड के वीरों को लखनऊ जेल से छुड़ाने के लिए योजनाएं तैयार की थीं, लेकिन संयुक्त प्रांत और पंजाब के दो अन्य क्रांतिकारियों की असहमति के कारण यह एक्शन टल गया। लाहौर में “कश्मीर बिल्डिंग” का कमरा नंबर 69 उनके नाम पर किराए पर लिया गया था, जहाँ उन्होंने एक गुप्त बम फैक्ट्री स्थापित की थी। 15 अप्रैल 1930 को इस स्थान पर पुलिस ने छापा मारा, जिसके बाद उन्हें फरार होना पड़ा।
बम विस्फोट, गिरफ्तारियाँ और भूमिगत जीवन
जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंका, तो वे वहीं गिरफ्तार हो गए। इस बीच, लाहौर बम फैक्ट्री से सुखदेव, किशोरीलाल और जयगोपाल तथा सहारनपुर से तीन अन्य साथियों की गिरफ्तारी हो चुकी थी। उस समय भगवतीचरण वोहरा, यशपाल, चंद्रशेखर आज़ाद और वैशंपायन फरार थे।
इन विषम परिस्थितियों में, उन्होंने दिल्ली के श्रद्धानंद बाजार की एक गली में मकान किराए पर लिया और वहां फिर से बम निर्माण कार्य शुरू किया।
इरविन वध योजना और गांधी से असहमति
उस समय वायसराय इरविन और गांधी जी के बीच समझौता वार्ता प्रस्तावित थी। भगवतीचरण वोहरा कांग्रेस और गांधी जी की ‘गिड़गिड़ाने’ की नीति से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि गांधी पूंजीपतियों के प्रतिनिधि के रूप में एक साम्राज्यवादी से बातचीत करेंगे, जिससे आम जनता को कोई लाभ नहीं होगा।
इस विचार से प्रेरित होकर उन्होंने वायसराय इरविन की विशेष ट्रेन को उड़ाने की योजना बनाई। अपने साथियों — यशपाल, धर्मपाल और इंद्रपाल — के साथ मिलकर उन्होंने मथुरा रोड पर पांडवों के किले के पास रेलवे लाइन पर बम लगाए। 23 दिसंबर 1929 को हुए इस विस्फोट में ट्रेन का एक डिब्बा उड़ गया, पर दुर्भाग्यवश इरविन बच गया।
यह एक्शन क्रांतिकारी दल की केंद्रीय समिति के निर्णय के विरुद्ध था। इससे आज़ाद नाराज़ हुए, और भगवतीचरण ने दल का घोषणापत्र उन्हें लौटा दिया।
गांधीजी से वैचारिक संघर्ष
इस एक्शन के बाद गांधीजी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए इरविन को सहानुभूति भरा तार भेजा। कांग्रेस के अधिवेशन में इस क्रांतिकारी कार्रवाई की निंदा की गई। गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ में “कल्ट ऑफ द बम” शीर्षक से लेख लिखा।
इसके उत्तर में भगवतीचरण वोहरा ने “फिलॉस्फी ऑफ द बम” नामक लेख लिखा, जिसमें क्रांतिकारियों के राजनीतिक उद्देश्य और समझ को स्पष्ट किया गया। इस लेख को भगत सिंह ने जेल में अंतिम रूप दिया।
अंतिम बलिदान
भगत सिंह और उनके साथियों को जेल से छुड़ाने की योजना के तहत भगवतीचरण वोहरा ने चंद्रशेखर आज़ाद से मिलकर एक्शन की रूपरेखा तय की। योजना के तहत 28 मई 1930 को रावी नदी के किनारे बम परीक्षण करते समय, दुर्भाग्यवश बम उनके हाथ में फट गया। इस दुर्घटना में उनका शरीर क्षत-विक्षत हो गया और उन्होंने वीरगति प्राप्त की।
अपने अंतिम समय में उन्होंने कहा —
“यदि भगत सिंह और साथियों को छुड़ाने का एक्शन पूरा होता है, तभी मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।”
दुर्गा भाभी का योगदान
भगवतीचरण वोहरा की पत्नी, जिन्हें क्रांतिकारी दल में “दुर्गा भाभी” के नाम से जाना जाता है, का योगदान भी अविस्मरणीय है। वे भी एक निडर और समर्पित क्रांतिकारी थीं।
विचारशील योद्धा
भगवतीचरण वोहरा न केवल बम निर्माण में निपुण थे, बल्कि एक उच्च कोटि के विचारक और प्रचारक भी थे। उन्होंने कई क्रांतिकारी पर्चे लिखे, जो अब दुर्लभ हैं। उनकी लिखी एक पुस्तक “मैसेज ऑफ इंडिया” युवाओं में विशेष रूप से लोकप्रिय रही।
