उपेन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय

उपेन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी

उपेन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय का जन्म 6 जून 1879 को चन्द्रनगर में हुआ था। वे एक प्रेरणादायक क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और मातृभूमि की आज़ादी के प्रति गहरी निष्ठा से भरा हुआ था।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

उपेन्द्रनाथ की शिक्षा बहुत ही उज्जवल रही। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त की और इसके बाद कलकत्ते के मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर बनने के लिए दाखिला लिया। यहीं उनकी मुलाकात कई क्रांतिकारियों से हुई और उनकी सोच में बदलाव आया। उन्हें अंग्रेजी शासन से घृणा थी और उनका मानना था कि केवल शस्त्रों के माध्यम से ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।

उन्हें स्वामी विवेकानंद से भी प्रेरणा मिली, और उन्होंने स्वामी जी के विचारों को आत्मसात किया। स्वामी विवेकानंद के मायावती आश्रम में कुछ समय बिताने के बाद, वे पंजाब की यात्रा पर निकल पड़े और वहां के समाज और परिस्थितियों को समझा। इसके बाद उन्होंने चन्द्रनगर लौट कर अपने उद्देश्यों को स्पष्ट किया और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ और ‘युगान्तर’ पत्रिका

उपेन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय का असली योगदान उनके क्रांतिकारी कार्यों में था। उन्होंने ‘युगान्तर’ पत्रिका के माध्यम से बंगाल और पंजाब में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाई। उनका उद्देश्य था कि वे भारतीय युवाओं में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह की भावना भरें। साथ ही, वे शस्त्रों के संग्रह और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने लगे।

1905 में उन्होंने ‘भवानी मन्दिर’ नामक उपन्यास लिखा, जिसमें उन्होंने शक्ति-पूजा और मातृभूमि की पूर्ण स्वतंत्रता का संदेश दिया। इसके बाद उन्होंने कई अन्य पुस्तकों जैसे ‘वर्तमान रणनीति’ और ‘मुक्ति कौन पथे’ भी लिखीं, जिनमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया।

गिरफ्तारी और काले पानी की सजा

अलीपुर षड्यंत्र के दौरान उवेन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय को गिरफ्तार किया गया। उन्हें काले पानी की सजा दी गई, जिसे उन्होंने असहनीय होते हुए भी सहन किया। अण्डमान में उनके कारावास का जीवन अत्यंत कठिन था। वे वहां तेल की घानी चलाते थे और एक दिन की मेहनत के बाद भी केवल 15 सेर तेल निकाल पाए। वे बताते हैं कि किस प्रकार गालियाँ सुनकर भी उन्हें क्रांति का ख्वाब नहीं छोडऩे दिया।

उन्हें काले पानी की सजा के बाद 12 साल तक जेल में रखा गया, लेकिन उनका उत्साह कभी कम नहीं हुआ। जेल में बिताए गए अपने अनुभवों को उन्होंने अपने लेखों में व्यक्त किया, जो आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

जीवन के बाद का संघर्ष

काले पानी की सजा पूरी होने के बाद 20 फरवरी 1920 को उन्हें रिहा किया गया। जेल से निकलने के बाद भी उनका संघर्ष थमा नहीं। उन्होंने फिर से क्रांतिकारी पत्रों और साप्ताहिकों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन दिया। ‘आत्म शक्ति’ नामक पत्र के द्वारा उन्होंने भारतीय युवाओं को और अधिक जागरूक किया।

अंतिम विचार

उपेन्द्रनाथ बन्दोपाध्याय के संघर्ष और त्याग ने हमें यह सिखाया कि यदि लक्ष्य स्पष्ट हो और हौंसला मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल हमसे हमारी मंजिल नहीं छीन सकती। उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपने देश के लिए अपने कर्तव्यों को निभाने में कभी पीछे नहीं हट सकते।

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