मास्टर अमीरचंद: एक महान क्रांतिकारी
मास्टर अमीरचंद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिनका योगदान भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा। उनका जन्म 1869 में हैदराबाद में हुआ था, और वे दिल्ली के दो विद्यालयों में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते थे। वे उर्दू, संस्कृत और अंग्रेजी के ज्ञाता थे, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
क्रांतिकारी यात्रा की शुरुआत
मास्टर अमीरचंद का जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित था। वे स्वदेशी आंदोलन के समर्थक थे और लाला हरदयाल के इंग्लैंड जाने के बाद उन्होंने उनके क्रांतिकारी दल का कार्य संभाला। उनका संबंध रासबिहारी बॉस से भी था, जो भारतीय क्रांतिकारी गतिविधियों का एक प्रमुख चेहरा थे। रासबिहारी बॉस के नेतृत्व में देश में कई स्थानों पर एक साथ बम विस्फोट कर फ़िरंगी अधिकारियों का वध करने की योजना बनाई गई थी, जिसमें मास्टर अमीरचंद का योगदान भी था।
स्वदेशी प्रदर्शनी और क्रांतिकारी योजनाएँ
मास्टर अमीरचंद ने 1912 में स्वदेशी प्रदर्शनी का आयोजन किया, जो उनके देशप्रेम और स्वदेशी वस्त्रों व उत्पादों के प्रचार-प्रसार का एक महत्वपूर्ण कदम था। इसी समय वे रासबिहारी बॉस के संपर्क में थे और क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।
दिल्ली और पंजाब में बम विस्फोट
क्रांतिकारियों का उद्देश्य अंग्रेजों को यह एहसास दिलाना था कि वे दिल्ली ही नहीं, बल्कि लंदन में भी सुरक्षित नहीं हैं। 23 दिसंबर 1912 को वायसराय हार्डिंग की सवारी का जुलूस चाँदनी चौक में पंजाब नेशनल बैंक के पास पहुंचा, तो क्रांतिकारियों ने उसकी सवारी पर बम फेंका। दुर्भाग्यवश हार्डिंग बच गया, लेकिन उसका अंगरक्षक मारा गया। इस हमले से ब्रिटिश अधिकारियों के होश उड़ गए, और पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद कोई भी क्रांतिकारी पकड़ में नहीं आया। इस हमले में प्रतापसिंह जी बारठ और उनके बहनोई भी शामिल थे। यह आक्रमण ब्रिटिश शासन के लिए एक बड़ा संदेश था।
गिरफ्तारियां और सजा
वायसराय हार्डिंग पर बम हमले के बाद ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र या दिल्ली षड्यंत्र के नाम से एक मामला दर्ज किया, जिसमें सम्राट के विरुद्ध विद्रोह का आरोप लगाया गया। इस मामले में मास्टर अमीरचंद, अवध बिहारी, बालमुकुंद, और बसंत कुमार बिस्वास को उम्रभर की सजा दी गई। बाद में ओ डायर द्वारा अपील किए जाने पर सभी को फांसी की सजा दे दी गई।
मास्टर अमीरचंद के खिलाफ उनके ही दत्तक पुत्र सुल्तान चंद ने गवाही दी थी, और इसके बाद उन्होंने मास्टर साहब की सम्पत्ति प्राप्त की।
शहादत
मास्टर अमीरचंद का जीवन एक संघर्ष की गाथा है। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश की स्वतंत्रता की नींव रखी। 19 फरवरी 1914 को गिरफ्तार होने के बाद उन्हें फांसी की सजा दी गई, और उनका बलिदान भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।
शत-शत नमन शहीदों को!
मास्टर अमीरचंद के साहस, बलिदान और देशभक्ति को हमेशा याद किया जाएगा। उनके योगदान ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को गति दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी संघर्ष और बलिदान का असली मतलब समझाया।
