क्रांति वीरांगना ननिबाला देवी

क्रांति वीरांगना ननिबाला देवी: एक अमर संघर्ष की गाथा

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की वीरता और बलिदान की अनगिनत कहानियाँ हैं, लेकिन कुछ गाथाएँ ऐसी हैं जिनमें सिर्फ साहस ही नहीं, अपितु त्याग, समर्पण और अपार साहस की मिसाल भी मिलती है। ननिबाला देवी की कहानी एक ऐसी ही वीरता और शौर्य की कहानी है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

ननिबाला देवी का जन्म 1888 में हावड़ा जिले के बाली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सूर्यकांत बनर्जी और माता का नाम गिरिवाला देवी था। ननिबाला का जीवन सामान्य रूप से शुरू हुआ था, लेकिन बहुत कम उम्र में ही उनका जीवन एक नई दिशा में मोड़ लेने वाला था। जब वे केवल 11 वर्ष की थीं, उनका विवाह हुआ, लेकिन विवाह के पांच साल बाद ही उनके पति का निधन हो गया। इस घटना ने ननिबाला के जीवन को दुखों से भरा, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने संघर्ष और समर्पण की राह पर चलने का निर्णय लिया।

क्रांतिकारी संघर्ष की ओर कदम

ननिबाला के भतीजे अमरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय युगांतर क्रांतिकारी दल के सदस्य थे, और उनके कारण ननिबाला भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने लगीं। जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ तेज हो गईं, तब ननिबाला ने भी अपनी भूमिका निभानी शुरू की।

उस समय बंगाल में जतिन बाघा के नेतृत्व में क्रांतिकारी गतिविधियाँ चरम पर थीं। ननिबाला ने कई बार क्रांतिकारियों को अपने घर में आश्रय दिया और उनके शस्त्रों को छिपाकर रखा। यह एक अत्यधिक जोखिम भरी स्थिति थी, लेकिन ननिबाला ने न केवल उन्हें आश्रय दिया, बल्कि उनके अस्त्र-शस्त्र भी बचाए रखे।

रामचंद्र मजूमदार की मदद

एक घटना ने ननिबाला के साहस और संघर्ष की मिसाल पेश की। पुलिस ने कलकत्ता के श्रमजीवी समवाय संस्थान से क्रांतिकारी नेता रामचंद्र मजूमदार को गिरफ्तार कर लिया था। रामचंद्र के पास एक पिस्तौल थी, जो पुलिस के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी। यह पिस्तौल उसके लिए एक अहम हथियार थी। ननिबाला ने रामचंद्र की पत्नी बनकर जेल में उनसे मुलाकात की और पिस्तौल व अन्य महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की। इस साहसिक कार्य के कारण ननिबाला पुलिस के रडार पर आ गईं, लेकिन उन्होंने कभी भी क्रांतिकारियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

चंदननगर और छिपे हुए क्रांतिकारी

जब बाघा जतिन की शहादत हो गई, तो आंदोलन की कमान जादू गोपाल मुखर्जी के हाथों में आ गई। वे जर्मनी से हथियार मंगवाने की योजना बना रहे थे, जिसका पता अंग्रेजों को चल चुका था। पुलिस ने सभी क्रांतिकारियों को पकड़ने की योजना बनाई और उनकी गिरफ्तारी के लिए हर संभव प्रयास किया।

सितंबर 1915 में, ननिबाला ने चंदननगर में एक मकान किराए पर लिया, जहाँ क्रांतिकारी नेता जादू गोपाल मुखर्जी, अमर चटर्जी, अतुल घोष, भोलानाथ चटर्जी, विजय चक्रवर्ती और विनय भूषण दत्त को शरण दी। उन दिनों इन सभी क्रांतिकारियों को पकड़वाने पर पुलिस ने हजार रुपये के ईनाम की घोषणा की थी। इसके बावजूद, ननिबाला ने उन्हें अपने घर में शरण दी।

पुलिस की गिरफ्तारी और यातनाएँ

लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक नहीं रही। पुलिस को ननिबाला के बारे में जानकारी मिल गई और उन्होंने यह पता लगा लिया कि वह रामचंद्र की पत्नी बनकर जेल में मिलने गई थीं। ननिबाला की गिरफ्तारी सुनिश्चित करने के लिए, पुलिस ने उनके पिता सूर्यकांत बनर्जी को बार-बार पकड़कर पूछताछ की। यह अत्यधिक मानसिक और शारीरिक पीड़ा का दौर था।

ननिबाला ने पुलिस से बचने की कोशिश की और पेशावर जाने का निश्चय किया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह हेपेटाइटिस (हेजे) की शिकार हो गईं और पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। इसके बाद उन्हें काशी जेल भेज दिया गया।

अमानवीय यातनाएँ और साहस का अपूर्व उदाहरण

जेल में ननिबाला को वह यातनाएँ दी गईं, जिनकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते। उन्हें निर्वस्त्र कर उनके गुप्तांगों में लाल मिर्च पाउडर डाला गया, जिससे वह असहनीय दर्द से गुजर रही थीं। लेकिन फिर भी ननिबाला ने पुलिस के सामने क्रांतिकारियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

एक बार, जब ननिबाला ने जेल में भूख हड़ताल की, तो गुप्तचर विभाग के अधीक्षक गोल्डी से उन्होंने अपनी मांग का पत्र दिया। गोल्डी ने उस पत्र को फाड़ दिया, इस पर ननिबाला ने उसे थप्पड़ मार दिया। यह उनकी साहसिकता का प्रतीक था, और इस घटना ने उन्हें एक वीरांगना के रूप में स्थापित किया।

रिहाई, गुमनामी और अंतिम समय

कुछ समय बाद, जब सामान्य माफी का दौर आया, तो ननिबाला को जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन जब वह समाज में वापस लौटीं, तो उसे कोई सहारा नहीं मिला। बीमार होने पर एक साधु ने उनकी सेवा की और ननिबाला ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया।

ननिबाला देवी ने गुमनामी में अपना शेष जीवन बिताया और 1967 में उनका देहांत हो गया। उनके जीवन की गाथा आज भी हमारे दिलों में जीवित है, और उनकी वीरता और संघर्ष का उदाहरण हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

शत-शत नमन वीरांगना ननिबाला देवी को

ननिबाला देवी का जीवन न केवल साहस और बलिदान की प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान कितना महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक था। शत-शत नमन इस महान वीरांगना को, जिनकी त्याग और समर्पण की कहानी हमेशा हमारे दिलों में रहेगी।