बोलो वीर
बोलो चिर उन्नत मेरा शीश
मेरा मस्तक निहार
झुका पड़ा है हिमद्र शिखर
बोलो वीर
बोलो महाविश्व महाआकाश चीर
सूर्य चंद्र से आगे
धरती पाताल स्वर्ग भेद
ईश्वर का सिंहासन छेद
उठा हूं मैं
मैं धरती का एकमात्र शाश्वत विस्मय
देखो मेरे नेत्रों में
दीप्त जय का दिव्य तिलक
ललाट पर चिर स्थिर
बोलो वीर
बोलो चिर उन्नत मेरा शीश
मैं दायित्वहीन क्रूर नृशंस
महाप्रलय का नटराज
मैं चक्रवात विध्वंस
मैं महाभय, मैं पृथ्वी का अभिताप
मैं निर्दयी, सबकुछ तोड़फोड़ मैं नहीं करता विलाप
मैं अनियम, उच्छृंखल
कुचल चलूं मैं नियम क़ानून श्रृंखल
नहीं मानता कोई प्रभुता
मैं अंधड़, मैं बारूदी विस्फोट
शीश बन कर उठा
मैं दुर्जटी शिव,
काल बैशाखी का परम अंधड़
विद्रोही मैं
मैं विश्वविधात्री का विद्रोही पुत्र
नंग धड़ंग अंधड़
बोलो वीर
बोलो चिर उन्नत मेरा शीश
मैं बवंडर, मैं तूफ़ान
मैं उजाड़ चलता
मैं नित्य पागल छंद
अपने ताल पर नाचता
मैं मुक्त जीवन आनंद
मैं चिर-चंचल उछल कूद
मैं नित्य उन्माद
करता मैं अपने मन की
नहीं कोई लज्जा
मैं शत्रु से करूं आलिंगन
चाहे मृत्यु से लडाऊं पंजा
मैं उन्मत्त, मैं झंझा
मैं महामारी, धरती की बेचैनी
शासन का खौफ़, संहार
मैं प्रचंड चिर-अधीर
बोलो वीर
बोलो चिर उन्नत मेरा शीश
मैं चिर दुरंत, दुर्मति, मैं दुर्गम
भर प्राणों का प्याला पीता,
भरपूर मद हरदम
मैं होम शिखा, मैं जमदग्नि
मैं यक्ष पुरोहित अग्नि
मैं लोकालय, मैं श्मशान
मैं अवसान, निशा अवसान
मैं इंद्राणी पुत्र, हाथों में चांद
मैं नीलकंठ, मंथन विष पीकर
मैं व्योमकेश गंगोत्री का पागल पीर
बोलो वीर
बोलो चिर उन्नत मेरा शीश
मैं संन्यासी, मैं सैनिक
मैं युवराज, बैरागी
मैं चंगेज़, मैं बागी
सलाम ठोकता केवल खुद को
मैं वज्र, मैं ब्रह्मा का हुंकार
मैं इसाफील की तुरही
मैं पिनाक पानी
डमरू, त्रिशूल, ओंकार
मैं धर्मराज का दंड,
मैं चक्र महाशंख
प्रणव नाद प्रचंड
मैं आगबबूला दुर्वासा का शिष्य
जलाकर रख दूंगा विश्व
मैं प्राणभरा उल्लास
मैं सृष्टि का शत्रु, मैं महा त्रास
मैं महा प्रलय का अग्रदूत
राहू का ग्रास
मैं कभी प्रशांत, कभी अशांत
बावला स्वेच्छाचारी
मैं सुरी के रक्त से सिंची
एक नई चिंगारी
मैं महासागर की गरज
मैं अपगामी, मैं अचरज
मैं बंधन मुक्त कन्या कुमारी
नयनों की चिंगारी
सोलह वर्ष का युवक मैं
प्रेमी अविचारी
मैं ह्रदय में अटका हुआ
प्रेम रोग की हूक
मैं हर्ष असीम अनंत
और मैं वंध्या का दुःख
मैं विधि का श्वास
मैं अभागे का दीर्घ श्वास
मैं वंचित व्यथित पथवासी
मैं निराश पथिकों का संताप
अपमानितों का परिताप
अस्वीकृत प्रेमी की उत्तेजना
मैं विधवा की जटिल वेदना
मैं अभिमानी, मैं चित चुंबन
मैं चिर कुमारी कन्या के
थरथर हाथों का प्रथम स्पर्श
मैं झुके नैनों का खेल
कसे आलिंगन का हर्ष
मैं यौवन चंचल नारी का प्रेम
चूड़ियों की खनखन
मैं सनातन शिशु, नित्य किशोर, मैं तनाव
मैं यौवन से सहमी बाला के आंचल का खिंचाव
मैं उत्तरवायु, अनिल शामक उदास पूर्वी हवा
मैं पथिक कवि की रागिनी, मैं गीत, मैं दवा
मैं आग में जलती निरंतर प्यास
मैं रूद्र, रौद्र, मैं घृणा अविश्वास
मैं रेगिस्तान झर-झर झरता एक झरना
मैं शामल, शांत, धुंधला एक सपना
मैं दिव्य आनंद में दौड़ रहा ये क्या उन्माद
जान लिया है मैंने खुद को
आज खुल गए हैं सब वाद
मैं उत्थान, मैं पतन
मैं अचेतन में भी चेतन
मैं विश्व द्वार पर वैजयंती
मानव विजय केतन
मैं जंगल में फैलता दावानल
मैं पाताल पतीत पागल
अग्नी का दूत, मैं कलरव, मैं कोलाहल
मैं धंसती धरती के ह्रदय में भूकंप
मैं वासुकी का फन
स्वर्गदूत जिब्राइल का जलता अंजन
मैं विष, मैं अमृत, मैं समुद्र मंथन
मैं देवशिशु मैं चंचल
मैं दांतों से नोच डालता
विश्व मां का अंचल
और बांसुरी बजाता
ज्वरग्रस्त संसार को मैं बड़ी
ममता से सुलाता
मैं शाम की बंसी
नदी से उछल छू लेता महा आकाश
मेरे भय से धूमिल स्वर्ग का निखिल प्रकाश
मैं बगावत का अखिल दूत
मैं उबकाई नरक का प्राचीन भूत
मैं अन्याय, मैं उल्का, मैं शनि
मैं धूमकेतु में जलता विषधर कालफनी
मैं छिन्नमस्ता, चंडी
मैं सर्वनाश का दस्ता
मैं नर्क की आग में बैठ बच्चे सा हंसता
मैं चिन्मय
मैं अजर, अमर, अक्षय
मैं मानव, दानव, देवताओं का भय
जगदीश्वर ईश्वर
मैं पुरुषोत्तम सत्य
मैं रौंदता फिरता स्वर्ग, नर्क
मैं अश्वत्थामा कृत्य
मैं नटराज का नृत्य
मैं परशुराम का कठोर प्रहार
निक्षत्रिय करूंगा विश्व
मैं लाऊंगा शांति शांत उदार
मैं बलराम का यज्ञ
यज्ञकुंड में होगा दाहक दृश्य
मैं महाविद्रोही अक्लांत
उस दिन होऊंगा शांत
जब उत्पीड़ितों का क्रंदन षोक
आकाश वायु में नहीं गूंजेगा
जब अत्याचारी का खड्ग
निरीह के रक्त से नहीं रंजेगा
मैं विद्रोही रणक्लांत
मैं उस दिन होऊंगा शांत
पर तब तक
मैं विद्रोही दृढ बन
भगवान के वक्ष को भी
लातों से देता रहूंगा दस्तक
तब तक
मैं विद्रोही वीर
पी कर जगत का विष
बन कर विजय ध्वजा
विश्व रणभूमि के बीचो-बीच
खड़ा रहूंगा अकेला
चिर उन्नत शीश
मैं विद्रोही वीर
बोलो वीर…
(क़ाज़ी नज़रुल )