लखनऊ के नवाब वाजिदअली ने भी जियालाल जी को नसरत जंग का खिताब उनकी बहादुरियों पर खुश होकर दिया था। यह वीर कमाण्डर के ओहदे पर अवध की सेना में काम करता था। इन्हें गंगाघाट पर कानपुर की ओर से लखनऊ पर धावा न हो, इसके लिए नवाब वाजिदअली ने सीमा-रक्षक नियुक्त किया था। इंग्लैण्ड जाते हुए नवाब वाजिद अली ने अपने एक पुत्र बरजिल्स को गद्दी देकर अपनी तीसरी बेगम को उनका संरक्षक नियुक्त किया था। वाजिदअली कलकते में बीमार हो गये और इधर गदर आरम्भ हो गया। कानपुर की ओर से लखनऊ पर हमला करने वाली फौजों को रोकने के लिए नसरत जंग जियालाल ने इंच-इंच भूमि पर अंग्रेजी सेनाओं का मुकाबला किया। जब उसके पास बहुत थोड़े आदमी रह गये तो इसकी सूचना देने के लिए बेगम साहिबा के पास लखनऊ आया। लखनऊ वह थोड़े से आदमियों के साथ अंग्रेजीं सेना के द्वारा घेर लिया गया। जहाँ लखनऊ के टावर पावर के पास अंग्रेजों की शहीदी के स्मारक बने हुए हैं वहीं वीर जियालाल भी शहीद हुआ।
जियालाल नवाब वाजिदअली की सेनाओं के कमाण्डर श्री दर्शनसिंह के पुत्र थे और डाली बाग में रहते थे। यह डाली बाग दर्शनसिंह ने ही बनवाया था।