क्रांतिवीर कन्हाई लाल दत्त : मातृभूमि पर न्योछावर एक महान बलिदानी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक ऐसे वीर क्रांतिकारी हुए जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया। इन्हीं अमर शहीदों में एक नाम है कन्हाई लाल दत्त का, जिनका बलिदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
कन्हाई लाल दत्त का जन्म सन 1887 में कृष्णाष्टमी के दिन चंदननगर (जिला हुगली, पश्चिम बंगाल) स्थित अपने ननिहाल में हुआ था। उनका पैतृक निवास श्रीरामपुर (बंगाल) में था। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने चंदननगर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर कलकत्ता आ गए।
क्रांति पथ पर अग्रसर
कलकत्ता में वे ‘युगांतर’ क्रांतिकारी दल से जुड़ गए और सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करने लगे। उन्हें क्रांति की प्रेरणा अपने शिक्षक श्री चारु चंद्र राय से मिली थी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने 19 मार्च 1909 को फांसी पर चढ़ा दिया था। चारु चंद्र राय पर आरोप था कि उन्होंने अलीपुर के सरकारी वकील आशुतोष की हत्या की थी।
मुजफ्फरपुर एक्शन और गिरफ्तारी
युगांतर दल के ही खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने कसाई काजी के नाम से कुख्यात मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका था। इस एक्शन के बाद ब्रिटिश सरकार ने युगांतर के कलकत्ता स्थित सभी ठिकानों पर छापेमारी की। मानिकतला बाग से कन्हाई लाल दत्त को 34 अन्य क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार कर अलीपुर जेल भेज दिया गया।
जेल में ऐतिहासिक बलिदान
अलीपुर षड्यंत्र मामले में युगांतर दल का एक सदस्य नरेंद्र गोस्वामी सरकारी गवाह बन रहा था। जब यह बात दल को पता चली, तब कन्हाई लाल दत्त और सत्येंद्र बसु ने एक योजना बनाई। उन्होंने नाटक करते हुए नरेंद्र से कहा कि वे भी सरकारी गवाह बनना चाहते हैं, जिससे उन्हें उससे मिलने का अवसर मिल गया।
इसके बाद उन्होंने जेल में दो रिवॉल्वर मंगवाए – एक अपने लिए और एक सत्येंद्र बसु के लिए। जैसे ही मौका मिला, 1 सितंबर 1908 को जेल के अस्पताल में दोनों ने मिलकर नरेंद्र गोस्वामी का अंत कर दिया।
बलिदान
ब्रिटिश सरकार ने इस कार्यवाही को देशद्रोह मानते हुए कन्हाई लाल दत्त को मृत्युदंड दिया। 10 नवंबर 1908 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। उन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
अमर शहीद को श्रद्धांजलि
कन्हाई लाल दत्त का जीवन साहस, त्याग और देशभक्ति की मिसाल है। उनका बलिदान आज भी हर देशभक्त के हृदय को गर्व से भर देता है।
शत-शत नमन है ऐसे वीर बलिदानी को, जिन्होंने भारत माता की सेवा में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।

शत शत नमन शहीदों को