अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती: चटगांव सशस्त्र क्रांति के वीर योद्धा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कुछ घटनाएँ ऐसी रही हैं, जिनमें वीरता, साहस और क्रांति का अद्वितीय संगम देखने को मिला। चटगांव सशस्त्र क्रांति (1930) ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का सर्वोत्तम बलिदान दिया। ये वही वीर थे जिन्होंने अपने साहसिक कार्यों से न केवल अंग्रेजी साम्राज्य को हिला दिया, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा भी दी।
चटगांव सशस्त्र क्रांति और अंबिका का योगदान
18 अप्रैल 1930 को भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने चटगांव (जो आज बांग्लादेश में स्थित है) के पुलिस और सहायक बलों के शस्त्रागार पर आक्रमण किया। इस क्रांतिकारी योजना का नेतृत्व महान क्रांतिकारी सूर्य सेन, जिनके नाम के आगे “मास्टर दा” उपनाम था, ने किया था। इस योजना में टेलीफोन और टेलीग्राफ तारों को काटने और ट्रेन की गतिविधियों को बाधित करने की कार्यवाही को अंजाम देने वाली टोली में अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती का महत्वपूर्ण योगदान था। उनकी रणनीति और साहस ने इस सशस्त्र क्रांति को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया।
यह एक न केवल शस्त्रागार पर आक्रमण था, बल्कि यह एक सामरिक युद्ध था, जिसमें क्रांतिकारी अपने शत्रु से मुकाबला करने के लिए अद्भुत चतुराई और बहादुरी का परिचय दे रहे थे। अंबिका ने जिस प्रकार इस योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वह उनके संघर्ष और बलिदान की जीवंत मिसाल है।
चटगांव छावनी की भीषण लड़ाई
22 अप्रैल 1930 को चटगांव छावनी के पास जलालाबाद पहाड़ियों में एक भयावह संघर्ष हुआ, जिसमें हजारों अंग्रेजी सैनिकों ने क्रांतिकारियों को घेर लिया था। यह दिन क्रांतिकारियों के लिए कठिन, लेकिन गौरवपूर्ण था। इस लड़ाई में अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती भी घायल हुए थे, लेकिन उनकी अदम्य साहसिकता और संघर्ष की भावना ने उन्हें पलायन करने में मदद दी।
इस संघर्ष के बाद, अंग्रेजी पुलिस और सैनिकों ने क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के लिए एक तीव्र छापेमारी शुरू की। अंबिका और उनके साथी इस कड़ी छापेमारी के बावजूद चुपके से छिपने और बचने में सफल रहे। लेकिन इसके बावजूद, यह घटना चटगांव के स्वतंत्रता संग्राम को एक ऐतिहासिक मोड़ पर ले आई थी, जिसे बाद में स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण अध्यायों में शुमार किया गया।
फांसी की सजा से जीवनभर की सजा तक का संघर्ष
चटगांव सशस्त्र क्रांति में अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती की भागीदारी के कारण उन्हें 1930 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बाद में यह सजा बदलकर उन्हें आजीवन कारावास में तब्दील कर दी गई। इस निर्णय के बाद अंबिका को अंडमान के काले पानी की जेल में भेज दिया गया।
यह वह दौर था जब अंग्रेजों के द्वारा दिए गए यातनाओं का सामना करना, अपने देश के लिए लड़ना और एक नई आशा के साथ भविष्य की ओर देखना, यह सब एक क्रांतिकारी के जीवन का हिस्सा बन गया था। अंबिका को जेल में रहते हुए कई मानसिक और शारीरिक यातनाएँ दी गईं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम की राह को छोड़ने का विचार नहीं किया।
जेल में साम्यवाद की ओर झुकाव
अंडमान की जेल में रहते हुए अंबिका का झुकाव साम्यवाद की ओर हुआ। जेल के सख्त माहौल और वहां के क्रांतिकारी विचारों ने उन्हें यह समझने में मदद की कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में भी बदलाव लाना जरूरी है। इसके बाद, अंबिका ने अपने विचारों को और मजबूत किया और जब उन्हें जेल से रिहा किया गया, तो वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।
कम्युनिस्ट आंदोलन और विधानसभा चुनाव
अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती ने जेल से रिहा होने के बाद साम्यवादी आंदोलन में भाग लिया और 1949 से 1951 तक पुनः जेल में रहे। उन्होंने अपनी विचारधारा को और अधिक मजबूत किया और भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाने का प्रयास किया। 1952 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा से निर्वाचित होकर राजनीति में कदम रखा और कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से जनहित में काम करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
अंबिका का जीवन और उनके योगदान का समापन
अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती का जन्म जनवरी 1892 में बर्मा में हुआ था, और उनके जीवन का एक उद्देश्य था—देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना। उनका जीवन न केवल एक क्रांतिकारी के रूप में महत्वपूर्ण था, बल्कि वे समाजवादी दृष्टिकोण के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने।
लेकिन, 6 मार्च 1962 को एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हुआ, और इस प्रकार एक महान क्रांतिकारी योद्धा की जीवित गाथा समाप्त हो गई। हालांकि उनका शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं होना बहुत दुखद था, लेकिन उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और साम्यवादी आंदोलन में सदैव जीवित रहेगा।
शत शत नमन अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती को
उनके जीवन की कहानी न केवल हमें साहस और बलिदान की प्रेरणा देती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि स्वतंत्रता संग्राम में किसी भी व्यक्ति का योगदान कितना महत्वपूर्ण हो सकता है। अंबिका प्रसाद चक्रवर्ती का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा अमर रहेगा।
शत शत नमन इस महान योद्धा को, जिनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष की वजह से भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम मिला।
