काकोरी वीर रामकृष्ण खत्री: एक महान क्रांतिकारी की प्रेरक यात्रा
भारत का स्वतंत्रता संग्राम उन वीर क्रांतिकारियों की प्रेरणादायक गाथाओं से भरा पड़ा है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्ष किया। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण नाम है रामकृष्ण खत्री का। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि देशप्रेम और बलिदान के लिए किसी भी रूप में समर्पण की आवश्यकता होती है, चाहे वह धर्म, समाज या किसी भी रूप में हो।
प्रारंभिक जीवन और सन्यास
रामकृष्ण खत्री का जन्म 3 मार्च 1902 को चिखली, जिला बुलढाणा, महाराष्ट्र में हुआ था। वे बचपन से ही बाल गंगाधर तिलक के विचारों से प्रभावित थे। तिलक जी के विचारों ने उन्हें युवा अवस्था में ही संन्यास लेने के लिए प्रेरित किया। रामकृष्ण ने अपनी ज़िंदगी को तपस्वी रूप में बिताने का निर्णय लिया और स्वामी गोविंद प्रकाश के नाम से सन्यासी बन गए।
चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात
स्वामी गोविंद प्रकाश के रूप में रामकृष्ण खत्री एक महंत के शिष्य के रूप में रहे। इस दौरान उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से हुई। दोनों पहले से एक दूसरे को जानते थे। चंद्रशेखर आजाद ने रामकृष्ण से महंत के संपत्ति से जुड़ी योजना के बारे में बताया। यह योजना क्रांतिकारी दल के लिए थी, ताकि महंत की संपत्ति का उपयोग भारत की स्वतंत्रता के लिए किया जा सके।
बातचीत के दौरान आजाद ने रामकृष्ण को देशभक्ति के लिए प्रेरित किया और उनका हृदय परिवर्तित हो गया। इसके बाद, रामकृष्ण खत्री ने अपने सन्यासी जीवन को छोड़कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़ने का निर्णय लिया। अब वे एक क्रांतिकारी के रूप में देश की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार बन गए।
काकोरी एक्शन में भूमिका
रामकृष्ण खत्री को अपनी मराठी भाषा के ज्ञान की वजह से भारतीय क्रांतिकारी दल ने महत्वपूर्ण कार्य सौंपे। बिस्मिल ने उन्हें उत्तरप्रदेश से मध्यप्रदेश भेजा, ताकि दल का विस्तार किया जा सके। काकोरी एक्शन के बाद जब पूरे भारत में गिरफ्तारी की लहर दौड़ी, तो रामकृष्ण खत्री को भी गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, वे काकोरी एक्शन में सीधे तौर पर शामिल नहीं थे, फिर भी उन्हें इस घटना से जोड़ते हुए मुकदमा चलाया गया।
उन्हें मध्य भारत और महाराष्ट्र में HRA के विस्तार के लिए दोषी ठहराया गया और दस साल की सजा सुनाई गई। वे लखनऊ जेल में अन्य क्रांतिकारियों के साथ कैद रहे।
सजा और पुनः संघर्ष
रामकृष्ण खत्री ने जेल में सजा काटने के बाद कभी भी संघर्ष नहीं छोड़ा। जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने क्रांतिकारी राजकुमार सिन्हा के घर का प्रबंध किया और योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिए प्रयास किए। उन्होंने केवल क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए काम नहीं किया, बल्कि जेल में बंद अन्य राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए भी संघर्ष किया।
“शहीदों की छाया” पुस्तक
रामकृष्ण खत्री का योगदान केवल शारीरिक संघर्ष तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने अपने अनुभवों और संघर्षों को लेखन के रूप में भी प्रस्तुत किया। उन्होंने एक पुस्तक “शहीदों की छाया” प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों के बारे में लिखा। यह पुस्तक न केवल उनके संघर्षों को रेखांकित करती है, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गई है।
समाप्ति और श्रद्धांजलि
रामकृष्ण खत्री का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें बताता है कि वास्तविक स्वतंत्रता केवल बाहरी संघर्ष से नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन और दृढ़ निश्चय से प्राप्त होती है। उन्होंने अपना जीवन देश के लिए समर्पित किया, और उनकी शहादत हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी।
शत शत नमन शहीद रामकृष्ण खत्री को।
उनके संघर्ष और बलिदान को याद करते हुए, हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने देश की सेवा में अपना योगदान देंगे।
