विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक: राजस्थान के क्रांतिकारी नायक

विजय सिंह पथिक का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान योद्धाओं में लिया जाता है जिन्होंने क्रांति के रास्ते को अपना जीवन बना लिया था। उनका वास्तविक नाम भूप सिंह था और उनका जन्म 27 फरवरी 1882 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गुठावली कलाँ गांव में हुआ था। वे एक अहीर परिवार से थे, जो समाज के उस वर्ग से था जिसे अक्सर उपेक्षित किया जाता था। लेकिन विजय सिंह पथिक ने इस सामाजिक स्थिति से ऊपर उठकर अपना नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमर कर दिया।

उनकी क्रांतिकारी यात्रा की शुरुआत 1907 में हुई जब उनका संपर्क भारत के एक प्रमुख क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ। इसके बाद उनका जुड़ाव रासबिहारी बोस और युगांतर दल जैसे संगठन से हुआ, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी दलों में थे।

क्रांतिकारी संघर्ष की शुरुआत

विजय सिंह पथिक का पहला बड़ा संघर्ष 1908 में हुआ, जब उन्हें अलीपुर एक्शन के मामले में मानिकतला बाग में युगांतर दल द्वारा बम बनाने की फैक्ट्री से गिरफ्तार किया गया था। हालांकि किसी सबूत के अभाव में उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया गया। लेकिन उनका कड़ा संकल्प पहले ही दिन से स्पष्ट था कि वे किसी भी हालत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी जंग जारी रखेंगे।

दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर हमला

विजय सिंह पथिक ने दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने के एक्शन में भी भाग लिया था। यह घटना ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारियों की बढ़ती असहमति और विरोध का प्रतीक बनी। पथिक ने रासबिहारी बोस के नेतृत्व में समस्त भारत के क्रांतिकारियों और गदर पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर एक योजना बनाई, जिसमें 21 फरवरी 1915 को समस्त भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र हमलों की रूपरेखा तैयार की गई थी।

राजपूताना में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

राजपूताना में विजय सिंह पथिक और उनके साथी राव गोपाल सिंह, अर्जुन लाल सेठी, और अन्य कई क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई के लिए राज परिवारों को तैयार किया। पथिक ने राजपूताना के क्रांतिकारी नेताओं से मिलकर यह सुनिश्चित किया कि अगर एक साथ पूरे देश में एक सशस्त्र संघर्ष हो, तो राजपूताना इस आंदोलन का मुख्य केंद्र बनेगा।

फरवरी 1915 में अजमेर से अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन पर बम फेंकने का संकेत देने के बाद, विजय सिंह पथिक और उनके साथी नसीराबाद में अंग्रेजों पर हमला करने के लिए तैयार थे। हालांकि, योजना में एक गद्दार कृपाल सिंह ने पुलिस को सब कुछ सूचित कर दिया, जिसके कारण बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुईं और क्रांति सफल नहीं हो पाई। इसके बाद पथिक अपने साथियों के साथ शिकारी बुर्जी में शरण लिए थे, लेकिन पुलिस ने उनका घेराव कर लिया।

साधु का भेष और विजय सिंह पथिक का जन्म

अंग्रेजों के बढ़ते दबाव और गिरफ्तारी के डर से, पथिक ने साधु का भेष बनाकर डोरगढ़ किले से भागने की योजना बनाई। उन्होंने अपना नाम बदलकर विजय सिंह पथिक रखा और इस नाम से पूरे भारत में अपनी पहचान बनाई।

शेर से मुकाबला और जंगल में संघर्ष

एक दिन जब विजय सिंह पथिक और उनके साथी एक जंगल में रात बिताने के लिए रुके, तो एक शेर ने उन्हें हमला कर दिया। लेकिन पथिक ने बिना घबराए अपने पिस्तौल से शेर को मार डाला। यह घटना उनकी साहसिकता और संघर्ष की प्रतीक बन गई।

बिजौलिया आंदोलन और किसानों का संघर्ष

विजय सिंह पथिक का नाम विशेष रूप से बिजौलिया किसान आंदोलन के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1916 में बिजौलिया में किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया। राजस्थान के कई इलाके में किसानों से अत्यधिक मालगुजारी वसूली जा रही थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई थी। पथिक ने इस आंदोलन को अपनी अगुवाई में एक शक्तिशाली रूप दिया।

उन्होंने किसानों को संगठित किया और 13 सदस्यीय पंच मंडल बनाया। यह आंदोलन राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी फैल गया। इसके परिणामस्वरूप मेवाड़, अलवर, बूंदी, सिरोही, सीकर और तारवाटी जैसे क्षेत्रों में किसान आंदोलनों की लहर दौड़ पड़ी। इस संघर्ष में पथिक और उनके साथियों ने बहुत संघर्ष किया, जिसमें कई किसान शहीद हुए।

बिजौलिया आंदोलन का प्रचार

बाल गंगाधर तिलक और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे प्रमुख नेताओं ने इस आंदोलन को अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित किया। इस आंदोलन को इतना बड़ा समर्थन मिला कि अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन में बिजौलिया आंदोलन पर चर्चा की गई।

गांधी जी से मुलाकात और राजस्थान सेवा संघ का गठन

बिजौलिया आंदोलन के समय पथिक ने महात्मा गांधी से भी मुलाकात की। गांधी जी ने पथिक से कहा कि अगर मेवाड़ सरकार ने किसानों को राहत नहीं दी, तो वह खुद बिजौलिया में सत्याग्रह करेंगे।

1920 में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई, और पथिक ने इसके माध्यम से पूरे राजस्थान में कई जन आंदोलनों की शुरुआत की। उनका यह आंदोलन न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

कारावास और रिहाई

पथिक को 1923 में बेगू आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें पांच साल की सजा दी गई। लेकिन पथिक ने संघर्ष नहीं छोड़ा। उन्होंने 1927 में रिहा होने के बाद राजस्थान के कई हिस्सों में आंदोलन जारी रखा।

अंतिम समय और उत्तराधिकारी

विजय सिंह पथिक का निधन 28 मई 1954 को हुआ। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया और उन्हें राजस्थान के राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मानित किया।

उनकी कविता “यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे; यदि इच्छा है तो यह है-जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।” आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है।

शत शत नमन विजय सिंह पथिक को, जिनकी वीरता, संघर्ष और समर्पण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया आयाम दिया।