मणींन्द्र नाथ बनर्जी

मणींन्द्र नाथ बनर्जी

मणीन्द्रनाथ बनर्जी: एक क्रांतिकारी जो समर्पण और संघर्ष का प्रतीक थे

मणीन्द्रनाथ बनर्जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन अज्ञात नायक में से एक थे, जिनकी बहादुरी और बलिदान को शायद उतनी पहचान नहीं मिली, जितनी कि वो हकदार थे। उनका जीवन न केवल संघर्ष से भरा था, बल्कि उनके परिवार की जड़ों में भी क्रांति की गूंज सुनाई देती थी। मणीन्द्रनाथ का जन्म 13 जनवरी 1909 को उत्तर प्रदेश के पांड्याघाट गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कदम बढ़ाया और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़कर अपनी क्रांतिकारी यात्रा की शुरुआत की।

एक क्रांतिकारी गुरु की शिक्षा

मणीन्द्रनाथ को अपने क्रांतिकारी गुरु राजेंद्र लाहिड़ी से बहुत प्रभावित थे। राजेंद्र लाहिड़ी, जो एक समर्पित क्रांतिकारी और काकोरी कांड के प्रमुख नेताओं में से एक थे, मणीन्द्रनाथ के जीवन में मार्गदर्शक की भूमिका में थे। काकोरी कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, और यह घटना मणीन्द्रनाथ के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। उनका मानना था कि राजेंद्र लाहिड़ी की फांसी के लिए जिम्मेदार उनके मामा जितेंद्रनाथ बैनर्जी थे, जिन्होंने काकोरी मामले में गवाही दी थी।

क्रांतिकारी की प्रतिशोध की भावना

मणीन्द्रनाथ का कागज़ों में क्रांतिकारी जीवन एक व्यक्तिगत प्रतिशोध से जुड़ा हुआ था, लेकिन यह उनकी जड़ें स्वतंत्रता संग्राम की भावना से भी गहरी थीं। 13 जनवरी 1928 को, मणीन्द्रनाथ ने अपने मामा जितेंद्रनाथ बैनर्जी को गुदौलिया, बनारस में तीन गोलियां मारकर उनकी हत्या कर दी। यह हत्या सिर्फ एक व्यक्तिगत प्रतिशोध नहीं थी, बल्कि यह एक क्रांतिकारी ने अपने गुरु के बलिदान का बदला लिया था।

अगले ही दिन मणीन्द्रनाथ ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया, एक ऐसा कदम जो उनके साहस और अपने कृत्य के प्रति ईमानदारी को दर्शाता है। इस कृत्य के बाद, मणीन्द्रनाथ पर मुकदमा चला और उन्हें 10 वर्ष की सजा सुनाई गई।

फतेहगढ़ केंद्रीय कारागार में क्रांतिकारी संघर्ष

मणीन्द्रनाथ के जीवन का एक और महत्वपूर्ण मोड़ 1934 में आया, जब उन्होंने केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ में क्रांतिकारी कैदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ 14 मई 1934 को भूख हड़ताल शुरू की। इस समय जेल में अन्य क्रांतिकारी नेता जैसे मन्मंथनाथ गुप्त और यशपाल भी बंद थे। मणीन्द्रनाथ का यह कदम न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष का प्रतीक था, बल्कि यह जेल में बंद क्रांतिकारियों के सम्मान और अधिकारों के लिए एक बड़ा बयान भी था।

भूख हड़ताल के कारण मणीन्द्रनाथ की स्थिति बिगड़ने लगी, और उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होता गया। उनकी आत्मनिर्भरता और क्रांतिकारी भावना के बावजूद, यह संघर्ष उनके लिए जीवन और मृत्यु का अंतर बन गया। अंततः 20 जून 1934 को, मणीन्द्रनाथ ने मन्मंथनाथ गुप्त की गोद में अपनी आखिरी सांस ली। यह उनके अद्वितीय साहस, संघर्ष और बलिदान का प्रतीक था।

मणीन्द्रनाथ बनर्जी: एक प्रेरणा

मणीन्द्रनाथ बनर्जी का जीवन यह साबित करता है कि क्रांतिकारी आंदोलन सिर्फ शस्त्रों से नहीं, बल्कि उच्च आदर्शों और बलिदान की भावना से भी प्रेरित था। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपनी जान की आहुति दी, बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी इस क्रांति में शामिल थे। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किसी भी कीमत पर किया जा सकता है, और उस संघर्ष में व्यक्तिगत आहत और प्रतिशोध को भी एक उच्च उद्देश्य में बदलने की शक्ति होती है।

शत शत नमन मणीन्द्रनाथ बनर्जी को, जिनकी आत्मीयता, साहस और बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम दिया।