रेसकोर्स एक्शन: भारतीय क्रांतिकारियों का साहसी कदम
ऑपरेशन फ्रीडम – भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह केवल एक मिशन नहीं था, बल्कि यह उनके दिलों में देश के प्रति गहरी नफरत और अत्याचारों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिकार की भावना का प्रतीक था। जब ब्रिटिश शासन के दमनकारी पुलिस और सिविल अधिकारियों के हाथों भारतीयों पर अत्याचार बढ़ गए, तो क्रांतिकारियों ने इन अधिकारियों से बदला लेने के लिए एक साहसिक योजना बनाई।
सर जॉन एंडरसन: दमन का प्रतीक
सर जॉन एंडरसन, बंगाल के गवर्नर, अपने अत्याचारी और निर्दयी तरीकों के लिए कुख्यात थे। बंगाल ऑर्डिनेंस के बाद, उन्होंने क्रांतिकारियों और आम जनता पर अत्याचार बढ़ा दिए थे। यह उनके दमनकारी कार्यों के कारण था कि वे क्रांतिकारियों के टारगेट पर आ गए थे।
रेसकोर्स एक्शन का प्रारंभ
8 मई 1934 को, सर जॉन एंडरसन दार्जलिंग के लेवांग रेसकोर्स में घुड़दौड़ में भाग लेने गए। यह वह अवसर था, जिस पर क्रांतिकारियों ने अपनी योजना को लागू करने का तय किया। भवानी भट्टाचार्य और रविंद्रनाथ बनर्जी ने पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से एंडरसन को गोली मारने का प्रयास किया।
असफल प्रयास और गिरफ्तारी
हालांकि, यह गोली मूक नहीं हुई और एंडरसन का निशाना चूक गया। गोली उनकी अंगरक्षक को लग गई, लेकिन इस प्रयास में भवानी भट्टाचार्य और रविंद्रनाथ बनर्जी दोनों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। यह घटना एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसमें क्रांतिकारियों ने अपनी साहसिकता से ब्रिटिश अधिकारियों को चुनौती दी।
सजा और शहादत
भवानी भट्टाचार्य और रविंद्रनाथ बनर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चला। भवानी भट्टाचार्य को 3 फरवरी 1935 को राजशाही जेल में फांसी की सजा दी गई। उनके साथियों को भी कड़ी सजा मिली, जिसमें एक क्रांतिकारी को 14 साल का कारावास हुआ।
शत-शत नमन
रेसकोर्स एक्शन की यह साहसिक घटना हमें यह सिखाती है कि भारत के क्रांतिकारी अपने देश की स्वतंत्रता के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते थे। भवानी भट्टाचार्य और रविंद्रनाथ बनर्जी जैसे महान नायकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की आज़ादी के लिए एक मजबूत संदेश दिया।
शत-शत नमन इन महान शहीदों को, जिनकी शहादत से भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली।
