क्रांतिवीर शिववर्मा: एक अमर क्रांतिकारी
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जिन महान वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर अंग्रेजों से स्वतंत्रता की मांग की, उनमें से एक क्रांतिवीर नाम था शिववर्मा का। उनका जन्म 9 फरवरी 1904 को उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले के कलौरी गांव में हुआ था। शिववर्मा हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के महत्वपूर्ण और सक्रिय सदस्य थे। इस संगठन के प्रमुख क्रांतिकारियों जैसे चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, और महावीर सिंह के साथ उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत
शिववर्मा का छात्र जीवन डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर में बीता, जहां पर उनकी पहली मुलाकात भगतसिंह से जनवरी 1927 में हुई थी। इसी कॉलेज में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन हुआ था और शिववर्मा इस दल में अग्रिम भूमिका में रहे।
शिववर्मा का छद्म नाम ‘प्रभात’ था और उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद और भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ काम किया। 8-9 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में इस दल के पुनर्गठन में भी वह केंद्रीय समिति के सदस्य थे। इसके अलावा, उन्होंने ‘चांद’ पत्रिका में कई महत्वपूर्ण लेख भी लिखे, जिसमें उन्होंने भारतीय क्रांतिकारी गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
बम निर्माण और साहसिक कार्य
शिववर्मा का योगदान केवल विचारों तक सीमित नहीं था। उन्होंने नूरी गेट, दिल्ली में एक मकान किराए पर लेकर बम बनाने का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद, उन्होंने सहारनपुर में एक बम फैक्ट्री भी स्थापित की थी। 1929 में वायसराय इरविन को बम से उड़ाने के एक्शन में वह बैकअप भूमिका में थे। हालांकि, एक ग़लत सिग्नल के कारण यह एक्शन पूरा नहीं हो सका, लेकिन शिववर्मा की साहसिकता और रणनीति का उदाहरण मिलता है।
गिरफ्तारी और जेल यात्रा
शिववर्मा की क्रांतिकारी यात्रा एक कठिन दौर से गुज़री। उन्हें और उनके साथी जयदेव कपूर को जेल से फरार होने के बाद फिर से पकड़ लिया गया। द्वितीय लाहौर एक्शन में उन्हें उम्र भर की सजा दी गई। इसके बाद उन्होंने लाहौर, राजमुंद्री, दमदम, नैनी, लखनऊ, हरदोई, और अंडमान की जेलों में कुल 16 साल, 9 महीने और 7 दिन तक कठिन यातनाएँ सहन कीं।
अंडमान में उनकी आँखें खराब हो गईं, लेकिन उनके संघर्ष की भावना कभी कमजोर नहीं पड़ी। उन्होंने कई बार सशर्त रिहाई के प्रस्तावों को ठुकराया और एक पत्र लिखा, जो आज एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में प्रसिद्ध है। शिववर्मा और जयदेव ने इस पत्र में साफ़ कहा कि वे किसी भी सशर्त रिहाई को स्वीकार नहीं करेंगे और न ही कैदियों को दी जाने वाली पेंशन लेंगे।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद की यात्रा
आजादी के बाद भी शिववर्मा ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखा। वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1948, 1962 और 1965 में भी उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम की अद्वितीय गाथा का प्रतीक बन गया।
अंतिम समय
शिववर्मा का निधन 10 जनवरी 1997 को हुआ, जब वे अपने साथियों और शहीदों से मिलने के लिए दुनिया को अलविदा कह गए। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और देशभक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
शत-शत नमन शहीद शिववर्मा को!
उनके साहस और देशभक्ति के कार्य हमेशा प्रेरणा के रूप में जीवित रहेंगे।
