वंदे मातरम् ! इन्कलाब जिन्दाबाद !! जय हिन्द !!!
मारे गए है सर्वश्रेष्ठ वीर !!
दफना दिये गये है वे चुपचाप, एक निर्जन भूमि में,
कोई आँसू नहीं बहे उन पर, अजनबी हाथों ने,
उन्हें पहुंचा दिया कब्र में,
कोई सलीब नहीं, कोई घेरा नहीं,
कोई समाधि-लेख नहीं जो बता सके उनके गौरवशाली नाम
घास उग रही है उन पर, एक दुर्बल पत्ती ढुकी हुई,
जानती है इस रहस्य को, बस एकमात्र साक्षी थी उफनती लहरे,
जो प्रचंड आघात करती है तट पर,
लेकिन वे प्रचंड लहरे भी नहीं ले जा सकती
अलविदा के सन्देश उनके सूदूर घर तक !!
फांसीर मंचे गेये, गेलो जारा, जी बने जयगान;
असि अलदो दाण्डायेछे तारा।
दिबे कौन प्रतिदान?
-(काजी नज़रुल इस्लाम)
प्रतिदान !?
कोई प्रतिदान संभव है क्या इस नि:स्वार्थ सर्वस्व त्याग का ?
बेड़ीबद्ध मॉं भारती की मुक्ति हेतु जिन्होंने अपनी अस्थि—मज्जा गला—जलाकर स्वातंन्त्रय—यज्ञ में होम कर दी ताकि चिरकाल से सुलगती चिन्गारी धधकता ज्वालपुञ्ज बनकर भारतमाता की बेड़ियों को गला डालें।
जिस स्वप्निल स्वर्णिम प्रत्युष की चिराशा में जिन्होनें अहर्निश कठोर कारावास के दारुण दु:ख सहे और हा हंत! उसके उदयाचल आगमन से पूर्व ही फॉंसी के फंदों से झूल गये उन्हें हम क्या प्रतिदान दे सकते हैं ?
अस्तु उनकी पुनीत और प्रेरक पुण्य स्मृतियों को संजोयें रखने हेतु हम उन्हें चंद शब्द, चंद पंक्तियॉं श्रद्धावनत समर्पित कर रहे हैं, यथा :
कलम! आज उनकी जय बोल!
जला अस्थियॉं अपनी सारी,
छिटकाई जिनने चिन्गारी;
चढ़ गये जो पुण्यवेदी पर,
लिये बिना गर्दन का मोल;
कलम! आज उनकी जय बोल!
जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफानों में एक किनारे;
जल—जल कर बुझ गये एक दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुह खोल;
कलम! आज उनकी जय बोल!
अंधा चकाचौध का मारा,
क्या जाने इतिहास बैचारा;
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य—चन्द्र, भूगोल; खगोल;
कलम! आज उनकी जय बोल!
इस वेबसाइट का सृजन इसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु एक छोटा—सा प्रयास है। पर, अपने सीमित ज्ञान और सामर्थ्य से हम इस महोद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकते। अत: आप सबसे साग्रह अनुरोध है कि इससे संबंधित उपलब्ध सामग्री को इस वेबसाइट पर अवश्य पोस्ट करें ताकि यह संकलन क्रांतिकाल की अखण्ड और अप्रतिम आस्था अप्रतिहत और लौमहर्षक संघर्ष, दुर्दुम्य और दुर्धर्ष शोर्य और सर्वस्वत्याग की गौरवगाथा के रूप में हमारी भावी पीढ़ियों के लिए अक्षुण्ण रहे।
— डॉ. औमप्रकाश सुथार