पंजाब में सशस्त्र क्रांति (प्रथम चरण)

बब्बर अकाली आंदोलन | Babbar Akali movement

पंजाब में अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का दौर 1920 में शुरू हुआ।

 

पंजाब में सशस्त्र क्रांति की पृष्ठभूमि गुरु का बाग मोर्चा या आंदोलन के पश्चात शुरू हुई।


अमृतसर से करीब 20 किलोमीटर दूर गुखेवाली गांव में  ऐतिहासिक स्थान गुरु का बाग है ।

जिसमें  एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा स्थापित है व यहाँ गुरु घर के साथ काफ़ी खाली जगह थी। जिसमें जंगल था ।
अमृतसर मुख्य गुरुद्वारा साहब के लंगर पकाने के लिए इसी बाग के जंगल से लकड़ियां ले जाई जाती थी।

गुरुओं के जमाने से ही गुरु का बाग गुरुद्वारा साहब का प्रबंध उदासियों के हाथों में चला आ रहा था।

अकालियों द्वारा गुरु का बाग में मोर्चा का गठन कर दिया।। जिसे गुरु का बाग मोर्चा या आंदोलन से जाना जाता है।। यह मोर्चा 17 नवंबर 1922 तक चला था।

अकालियों  द्वारा लकड़ियां लेने हेतु रोज 5 अकाली सिखों की टीम भेजी जाती थी।

महंत सुंदर दास ने पुलिस से मिलकर अपने गुंडों से  निहत्थे सिखों को बुरी तरह से पिटवाया जाता था ।

अकाली गुरु गुरु साहब को अरदास करने  की स्थिति में खड़े रहकर बिना किसी विरोध के मार खाते रहते थे।

गुरु का बाग के संबंध में विवाद होने पर अकाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के 11 सदस्यीय टीम ने 13 जनवरी 1921 को उदासी संत सुंदरदास से एक अनुबंध किया था ।
  
महंत सुंदरदास ने अकालीयों  को गुरु घर लंगर पकाने के लिए गुरु का बाग जंगल  से लकड़ियां  काटने काटकर ले जाने से मना कर दिया।

जिसके कारण विवाद हो गया ।

महंत ने सुंदरदास ने पुलिस से मिलकर 9 अगस्त 1922 को अकालीओ  को पकड़वा दिया। जिन्हें  छह माह की सजा दे दी गई।

गुरु का बाग गुरुद्वार साहब के संत महंत सुंदर दास उदासी के कर्म और आचरण सिख धर्म की गरिमा के अनुकूल नहीं था।

जिसके कारण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने महंत सुंदर दास का विरोध करना शुरू कर दिया।

यह अहिंसात्मक आंदोलन वीर सीखों के बस का रोग नहीं रहा।

सरकार व पुलिस महंत सुंदर दास का साथ दे रही थी ।
  इसीलिए इस अत्याचार के विरुद्ध  किशन सिंह जी बडगज ने शस्त्र उठाए ।

वह अपने दल के  कर्म सिंह , धन्ना सिंह  व उदय सिंह को दोषीयो को मारने का दायित्व सोपा गया।

पंजाब में सशस्त्र आंदोलन में क्रांतिकारियों के साथ गद्दारी करने वाले मुखबिर या झोलीचुक को मारने को सुधार करना कहते थे।

उपरोक्त तीनों वीरों ने सबसे पहले गांव श्याम चौरासी होशियारपुर रेलवे स्टेशन के पास एक  सूबेदार का” सुधार” किया गया।

यह आंदोलन व सुधार कार्य कई दिनों तक चला।    इस आंदोलन में 67 बब्बर अकालियों को गिरफ्तार किया गया था।

जिन मेसे 6 को फाँसी की सजा दी गई व 11 वीरों को उम्रकैद की सजा दी गई ।

कुछ अकालियों ने सन 1920 में अंग्रेजी अत्याचार के खिलाफ  “शहादत” या “शहीदी दल ” बनाकर आंदोलन की शुरुआत की

कुछ वीर लड़ते हुए शहीद हुए।
अब जानते हैं उन बब्बर अकाली शहीदों के बारे में ।

:-किशन सिंह जी गर्गज्ज-:

आप जालंधर जिले के  वारिन्ड़ग   गांव के निवासी थे । आप पहले  35 नंबर सिख रिसाले में हवलदार थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड, सरदार अजीत सिंह की नजर बंदी, बजबज में निर्दोष यात्रियों पर फायरिंग  , रोलेट एक्ट आदि को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।

अंग्रेजों के प्रति आपके हृदय में घृणा पैदा हो गई और आपने फ़ौज नौकरी छोड़ दी कर राष्ट्रीय आंदोलन में  शामिल हो गए।
  नानकाना साहब घटना  20 फरवरी 1921  के बाद आपने बब्बर अकाली आंदोलन में सक्रिय रूप से काम करने लगे।

आपने भी गुप्त संगठन  तैयार किया। एक बार पुलिस को सूचना हो गई ।
आपके दल के 6 आदमी गिरफ्तार कर लिए गए ।

आप अपने चार साथियों के साथ फरार हो गए।
कुछ दिन आप  जींद राज्य के मस्तुअना नामक स्थान पर रहे फिर 1921 कि सर्दियों में दोआब वापस आ गए।

यहाँ आते ही आपने “चक्रवर्ती दल” का गठन किया जो बाद में ‘बब्बर अकाली दल “ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आप ने कपूरथला व जालंधर जिले के गांव गांव जाकर अंग्रेजी व्यवस्था के खिलाफ लगभग 327 बार भाषण दिए।
उसी समय  होशियारपुर जिले में दौलतपुर के कर्म सिंह तथा उदय सिंह  भी अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी  प्रचार कर रहे थे।

आपके दोनों दल मिल गए  हथियार संग्रह व क्रांतिकारी गतिविधियां का बढ़ने लगी।

आपने भी कई भेदियों “सुधार” किया
आपको गिरफ्तार कर लिया गया ।

27 फरवरी 1926 को केंद्रीय जेल लाहौर में फाँसी दी गई।

         :-  संता सिंह -:

आप लुधियाना जिले के हरयों खुर्द गांव के रहने वाले थे । आपने 54 नम्बर सिख रिसाले में दो वर्ष तक नोकरी की।
आपने 26 जनवरी 1922 को फ़ौज की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और आपने भी अकाली बाबर आंदोलन में शामिल हो गए।

आपने अकेले ही बिशन सिंह जैलदार का  सुधार किया था।


इसके अतिरिक्त आप बूटा सिंह, लाभ सिंह , हजारा सिंह ,राला सिंह, दितू सिंह,  सूबेदार गैंडा सिंह और नोगल शमां के नंबरदार आदि के सुधार में शामिल रहे ।

आपको आपके ही एक रिश्तेदार ने लालच में आकर गिरफ्तार करवा दिया
आपको अदालत से न्याय की आशा नहीं थी।

इसलिए आपने अपने समस्त क्रांतिकारी गतिविधियों  को स्वीकार किया।

अंततः आपको अपने पांच साथियों सहित दिनांक 27 फरवरी 1926 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई।

          :- दिलीप सिंह :-

आपकी आयु मात्र 17 वर्ष थी। जब आपने क्रांति पथ पर अपना पैर रखा । आप धामियाँ  कलां जिला होशियारपुर के रहने वाले थे।
ननकाना साहब घटना के पश्चात आपने भी अकाली मत की दीक्षा ग्रहण की।

मार्च 1923 से क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल हो गए।
12 अक्टूबर 1923 को आप क्रांतिकारी संता सिंह के साथ कंदी नामक स्थान पर क्रांतिकारी पर्चे बांटने जा रहे थे।
  एकाएक पुलिस ने घेर कर
आको गिरफ्तार कर लिया ।
आप पर मुकदमा चलाया गया ।
जज सेशन जज मिस्टर टैप (Tapp) आपकी कम उम्र देखकर प्रभावित हुआ और वह आपको लाभ देना चाहता था ।
लेकिन आपने अदालत में समस्त घटनाओं को स्वीकार करते हुए कहा कि अभी तक मैंने कोई अपवित्र कार्य नहीं किया है ।
मेरी देह पवित्र है ।

हो सकता है भविष्य में मेरे से कोई गलत काम हो जाए ।। इसलिए मैं इसी रूप में अपने प्राणों की आहुति देना चाहता हूं।
यह सुनकर जज प्रभावित हुआ।

आपकी वीरता के कारनामों को
जज ने अपने फैसले में ऐसे लिखा :-


This accused, young as he is, appears to have established a record for himself second only of that of Santa Singh accused , as to offences in which he has been concerned in connection with this conspiracy.
He is implicated in the murders of Buta lambardar, labh Singh, Mistri Hajara Singh of Bibalpur ,  Ralla and  Ditu of Kaulgarh , Atta Mohammed Patwari , in the second and third attempt on labh Singh of  Chadda Fateh singh , in murderous attack on  Bishan Singh of Sandhara.

आपको भी 27  फरवरी 1926  केंद्रीय जेल लाहौर में फाँसी दी गई।


         :-   नंद सिंह -:

आपका जन्म 1895 में जालंधर जिले के घुड़ियाल गांव में हुआ।
आपने भी ननकाना साहब की घटना के बाद वह अकाली आंदोलन में शामिल हो गए।

आपको गुरु के बाग सत्याग्रह में 6 माह के लिए जेल में रखा गया था।

आपने जेल से आते ही किशन सिंह जी के साथ बब्बर अकाली दल शामिल हो गए।
आपने अकेले ही गद्दार सूबेदार गेंदा सिंह उसके गांव में जाकर वध किया था ।

इसके बाद पुलिस गांव वालों को तंग करने लगी तो आपने स्वयं ही अपनी गिरफ्तारी दी और अपने कार्य को स्वीकार किया।

आपको भी 27 फरवरी 1926 को केंद्रीय जेल लाहौर में फांसी दी गई थी

          :- कर्म सिंह  :-

आप श्री भगवानदस सुनार के सुपुत्र थे आपका जालंधर जिले के गांव  मनको के निवासी थे।
आप किशनसिंह के बब्बर अकाली दल के सक्रिय सदस्य थे।
आप  गेंदा सिंह सूबेदार के वध  में  शामिल हुए थे ।

आपने भी गिरफ्तार होने के बाद अदालत को नाटक बताया।
वह कोई सफाई नहीं दी ।
आपको भी अन्य साथियों के साथ 27 फरवरी 1926 को लाहौर केंद्रीय जेल में फांसी दी गई।

        :-  बोमेली युद्ध -;


बब्बर अकाली क्रांतिकारी कर्म सिंह निवासी दौलतपुर , उदय सिंह निवासी रामगढ़ झुगियां , बीशन सिंह निवासी मङ्गन्त और महेंद्र सिंह निवासी पिंडोरी गंगसिंह चारों ही पहले असहयोग आंदोलन में सक्रिय थे।

कालांतर में सशस्त्र आंदोलन में शामिल हुए।
कर्म सिंह जी गांव-गांव घूमकर लोगों को अंग्रेजी अत्याचारों के विरुद्ध क्रांति का संदेश  देते थे ।

कर्मसिंह जी “बब्बरअकाली ” समाचार पत्र का भी संपादन करते थे।

इन्होंने भी अन्य क्रांतिकारी दलों की तरह हथियार प्राप्त करने , दल के विरुद्ध  बने पुलिस मुखवीरों को दण्ड देते थे।

आपने  को पुलिस मुखवीर   जैतपुर के दीवान उदय सिंह का का दिनाँक 14 फरवरी 1923 को व बइलपुर के हजारा सिंह का वध किया ।

एक बार दिनाँक 1 सितम्बर / अप्रेल (माह विवाद है) 1923 को आप चारों ही जालंधर के पास  गांव बोमेली में  ” चौंतासाहब “  गुरुद्वारा में ठहरे हुए थे।

पुलिस को ख़बर लग गई पुलिस अधीक्षक स्मिथ ने फ़ौज के सैनिकों को लेकर पहुंच गए व  पुलिस सबइंस्पेक्टर  फ़तेह खां भी 50 सिपाहियों को लेकर पहुँच गया।

चारों क्रांतिवीरों ने फ़ौज व पुलिस का डटकर मुकाबला किया ।

चारों वीरों ने प्राणों की आहुति दी।

            :-धन्नासिंह -:

आप पंजाब के बइबलपुर के निवासी थे।
पुलिस मुखवीर पटवारी अर्जुन सिंह ,  रानीथाने के जेलदार बिशन सिंह का दिनाँक 20 फरवरी  1923 को , लम्बरदार बूटासिंह ,19 मार्च 1923 को लाभसिंह, 27 मार्च 1923 को हजारा सिंह  का वध करने में आप साथ थे।



ज्वाला सिंह नाम के एक ग़द्दार ने पुलिस से मिलकर आपको रुकवाया व पुलिस को सूचना दे दी  पुलिस अधिकारी हॉरटन ने 40 सिपाहियों के साथ आपको घेर कर गिरफ्तार कर लिया ।

गिरफ्तार किए जाने के बाद आपने अपने कमर के पास छिपाये हुए बम की कोहनी मार कर पिन दबादी बम्ब विस्फोट हुआ।

आपने अपने प्राणों की आहुति दी।
इस विस्फोट से  5 सिपाही  मौके पर ही मारे गए। हारटन एक सिपाही जो घायल हुए थे बाद में मारे गए

     :- बंता सिंह धामियाँ -:

बंता सिंह धामियाँ  सिख पलटन नंबर 55 में थे ।
उन्होंने की नौकरी छोड़दी व डकैत बन गए।

सन 1923 में 2 या 3 मार्च को जमशेर स्टेशन मास्टर के घर डकैती के समय एक साथी ने महिला की तरफ हाथ बढ़ाया कि बंता सिंह जी ने उस पर गँड़ासे से वार कर दिया ।
बंता सिंह जी महिलाओं की सम्मान करते थे।
अकाली बब्बर आंदोलन में बंता सिंह जी ने एक नंबरदार बूटा सिंह का वध किया था।

बंता सिंह बहुत ही दिलेर आदमी थे एक सिपाहीयों से जंगल में सामना हो गया । बंता सिंह जी ने  अकेले ही उन्हें डरा कर भगा दिया।

एक बार बूटा सिंह जी अकेले ही एक छावनी में घुसकर पहरेदार की घोड़ी व राइफल छीन कर ले आये
कालांतर में बन्तासिंह सिंह जी क्रांति पथ पर अग्रसर हुए।

बब्बर अकाली आंदोलन की वीरता का एक उदाहरण  दिनाँक 12 दिशम्बर 1923 का ” मुंडेर युद्ध ”  भी  है ।

इस युद्ध मे तीन बब्बर अकाली क्रांतिवीर वरयाम सिंह जी, बंता सिंह जी धामियाँ व ज्वाला सिंह जी कोटला ने असंख्य सशस्त्र सेना से वीरता पूर्वक लड़ाई लड़ी ।

इस लड़ाई में  बंता सिंह धामियाँ व ज्वाला सिंह कोटला शहीद हुए पर वरयाम  सिंह जी सेना के घेरे से निकलने में सफल रहे।

यह घटना इस प्रकार हुई ।

जगत सिंह नामक एक व्यक्ति ने  वरयाम सिंह जी , बंता सिंह जी ज्वाला सिंह जी को दिनांक। 12 दिसंबर 1923 को जालंधर के पास अपने गांव शाम चौरासी  में बुला कर अपने घर मे रुकवाया व  पुलिस को सूचना दे दी।

थोड़ी देर बाद पुलिस व सेना ने  घर को घेर लिया। काफी देर तक तीनों वीरों ने सेना का मुकाबला किया।
फायरिंग में ज्वाला सिंह जी को गोली लगी थी वह बुरी तरह से घायल होकर गिर गए  ।

उसी समय बंता सिंह जी को भी गोली लगी।
सेना द्वारा घर के आग लगा दी गई। घायल बंता सिंह जी ने वरयाम सिंह जी से आग्रह किया कि वह उठ नहीं सकता।
  पुलिस के हाथों बंदी बनने से अच्छा है मुझे गोली मार दो ।
ऐसी विकट स्थिति में वरयाम सिंह जी  से अपने साथी के  गोली  नहीं मारी गई।
उन्होंने अपने रिवाल्वर में गोलियां डालकर बंता सिंह जी को दे दिया व ख़ुद सेना का मुकाबला करते हुए घेरा तोड़ कर निकल गए।


      :- वरियाम सिंह धुग्गा   -:

वरयाम सिंह जी और होशियारपुर जिले के धुग्गा गांव के निवासी थे।। आप भी पहले फ़ौज में थे ।
बाद में नौकरी छोड़ कर डकैत बन गए आप दुआबा  क्षेत्र के प्रसिद्ध थे।
कालांतर में  आपका भी ह्रदय परिवर्तन हुआ व आप भी बब्बर अकाली आंदोलन में शामिल हो गए।

मुंडेर युद्ध में आप भी साथ थे।
आप सेना का घेरा तोड़कर फायरिंग में से निकलने में सफल रहे थे।

दिनांक 8 जून 1924 को आप अपने रिश्तेदार के पास  में रुके हुए थे ।
उस रिश्तेदार ने आपको हथियार गांव से बाहर रख देने का आग्रह किया ताकि किसी को संदेह नहीं हो।
आपने उस पर विश्वास करके हथियार बाहर  खेत में रख दिये व भोजन करने हेतु गांव में आ गए।

आप खाने के बाद अपने हथियारों को लेने जा रहे थे कि रास्ते में ही पुलिस अधीक्षक  डी गेल  आपको घेर लिया।

आप चारों तरफ से पुलिस द्वारा घेर लिए गए।   डी गेल आपको जिन्दा गिरफ्तार करना चाहता था।
जैसे ही  उसने पकड़ने की कोशिश की आपने अपनी कृपाण से डी गेल व अन्य सिपाहियों को वॉर किये ।
डी जेल  ने पुलिस को गोली चलाने के आदेश दे दिये ।

आपके सीने में चारों तरफ से गोलियां लगी ।

आपने शहादत दे दी।

शत शत नमन शहीदों को

लेख के कुछ तथ्य व चित्र अंग्रेजों के जमाने मे प्रतिबंधित पुस्तक

चाँद फांसी अंक जिसका प्रकाशन 1928 में हुआ था से संकलित