बीना दास

बीना दास – क्रांतिकारी वीरांगना

6 फरवरी 1932 को कलकत्ता विश्वविद्यालय के कन्वोकेशन हॉल में एक ऐतिहासिक घटना घटी। उस दिन बंगाल के गवर्नर स्टैनली जैक्शन स्नातकों को डिग्रियाँ दे रहे थे, और यह अवसर बीना दास के लिए एक और कड़ी चुनौती का था।

बीना दास, जो अपनी बी.ए. ऑनर्स की डिग्री लेने आई थीं, ने एक साहसी कदम उठाया। जैसे ही वह स्टैनली जैक्शन के पास पहुँचीं, बीना ने अपनी पिस्तौल से गवर्नर पर गोली दागी। हालांकि निशाना चूक गया, और गोली कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक अधिकारी दिनेश चंद्रसेन को लग गई, जिससे वह घायल हो गए।

इस घटना से हड़कंप मच गया, और कर्नल सुहराबर्दी ने तुरंत बीना को पकड़ लिया। उसे बंद कमरे में मुकदमे की सुनवाई के लिए ले जाया गया, जहाँ बीना ने अदालत में अपना बयान लिखित रूप में दिया।

हालाँकि, बीना का बयान उस समय के लिए इतना प्रभावशाली था कि उसका प्रकाशन प्रतिबंधित कर दिया गया। यह डर था कि उसके बयान को पढ़ने से लोगों में बगावत की लहर दौड़ सकती थी।

बीना दास के बयान का अंश श्रीकृष्ण सरल की पुस्तक ‘क्रांतिकारी कोष’ से लिया गया है, जिसमें उन्होंने अपनी आत्मा की गहराई से क्रांतिकारी संघर्ष की बात की थी।

सजा और जेल

इस क्रांतिकारी कृत्य के लिए बीना दास को उम्र कैद की सजा दी गई। वह 10 साल तक जेल में रहीं। लेकिन उनका हौसला कभी कम नहीं हुआ। 1939 में उन्हें सरकार द्वारा आम रिहाई दे दी गई, और वह जेल से बाहर आईं।

रिहाई के बाद, बीना ने भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया, जिसके लिए उन्हें तीन साल की सजा हुई। जेल से रिहा होने के बाद उनका जीवन सार्वजनिक सेवा में समर्पित रहा।

क्रांतिकारी दल “युगांतर” और ऑपरेशन फ़्रीडम

बीना दास की क्रांतिकारी यात्रा युगांतर दल के साथ जुड़ी हुई थी। यह क्रांतिकारी संगठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण अंगों में से एक था। युगांतर दल का एक महत्वपूर्ण मिशन था – “ऑपरेशन फ़्रीडम”, जिसके तहत फर्जी और क्रूर ब्रिटिश अधिकारियों का वध करना था, ताकि ब्रिटिश शासन में खौफ पैदा हो सके। बीना ने इस मिशन में भाग लिया और कई शौर्यपूर्ण कार्यों में अपनी भागीदारी दिखाई।

राजनीति में प्रवेश और निजी जीवन

जेल से रिहा होने के बाद, बीना दास ने राजनीति में प्रवेश किया और 1946-47 में बंगाल प्रांत विधानसभा की सदस्य बनीं। 1947 से 1951 तक वह पश्चिम बंगाल प्रांत विधानसभा की सदस्य के रूप में कार्यरत रहीं।

इसके बाद, उन्होंने जतीश भौमिक, जो कि युगांतर दल के सदस्य थे, से शादी की। दोनों ने ऋषिकेश में एकांतवास का जीवन बिताया, जहाँ उन्होंने शांति और ध्यान में समय बिताया।

शत-शत नमन

बीना दास की वीरता, साहस और निष्ठा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पथ पर हमेशा याद रखी जाएगी। वह न केवल एक क्रांतिकारी थीं, बल्कि एक प्रेरणा भी थीं। उनके संघर्ष और बलिदान को हम हमेशा याद करेंगे।

शत-शत नमन वीरांगना को।