भ्रष्टाचार, नैतिक अनाचारों से कंलकित शासन व्यवस्था के दुर्ग जो शान्ति और श्रंखला की नींव पर खडे् होते है, को कमायमान कर जड् से उखाड्ने के लिए परिवर्तन या इंकलाब का आना एतिहासिक घटना होती है।
फ्रांस की क्रान्ति ने वहां के विलासी शासकों की सत्ता का अन्त किया। जब इटली में शासकों की स्वेच्छाचारिता परकाष्ठा को पहुंच गई तो मेजिनी, गेरीबॉल्डी ने देश का उद्धार किया। जब रूस के नृशंस शासक ने अपनी सैनिक शक्ति से उन्मत होकर नि.सहाय प्रजा के रक्त से होली खेलनी शुरू की तो लेनिन और ट्रोजकी के वीर बोल्शेविको के बलिदान ने सम्राट को मुकुट सहित धूल में मिला दिया।
जब तुर्की का स्वेच्छाचारी सुल्तान सैंकडों वेश्याओं के साथ विहार करने लगा तो मुस्तफा कमाल के देशभक्त सहयोगियों ने उसका नाश किया। चीन के मंचू शासक के हाथों चीन की तबाही को डॉ. सन-याट-सेन के बलिदानी वीरों ने रोका।
आक्रमणकारियों ने हमारे देश का वैभव लूटा, ऐश्वर्य लूटा। सन् 1757 तक सम्पूर्ण भारत वर्ष पर फिरंगीयों का राज था और ब्रिटिश सम्राज्यवाद के संबंध में यह कहा जाता था कि ब्रिटिश सम्राज्यवाद में कभी सूर्यास्त नहीं होता। सन् 1857 तक यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि हम फिरंगीयों की गुलामी से आजाद हो पायेंगे।
सन् 1857 में हमारे राष्ट्र ने सैंकडों वर्षो बाद नींद से जाग कर अंगडाई ली और उठ कर खड़़ा हो गया। हमारा प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कई कारणों से सफल तो नहीं हो सकता परन्तु सन् 1857 से सन् 1947 तक बलिदानों का एक सिलसिला चला। अनगिनत ज्ञात व अज्ञात क्रान्तिवीरों ने भारत के अपमान का बदला लिया। वॉयसराय लॉर्ड हॉर्डिंग्स की बग्घी पर चान्दनी चौक में रास बिहारी बॉस व उनके साथियों ने बम फैंका, भारतीय नारियों की चोली उतरवाकर जांच कर माताओं और बहनों का अपमान करने वाले दुष्ट रैण्ड एवं कोचवान ऐयर्स्ट को चापेकर बन्धुओं और रानाडे ने विक्टोरिया की हीरक जयन्ती की पार्टी के अवसर पर गोली से उड़ाया, मैक मेन्सन का सिर काटकर किले के द्वार पर लटका दिया गया, लाला लाजपत राय के बलिदान का बदला भगत सिंह व उनके साथियों ने साण्डर्स का वध करके लिया, कसाई काजी किंग्सफोर्ड को दण्ड देने हेतु उसकी गाड़ी पर बम फैंका, जलियांवाला बाग काण्ड के हत्यारे ऑ डायर को इंग्लैण्ड के कैक्शन हॉल में जाकर शहीद-ए-आजम उधम सिंह ने सरेआम मारा, इंग्लैण्ड के ही जहांगीर हॉल में मदनलाल धींगड़ा ने कर्नल वॉयली का गोली मारकर वध किया, काेमा-गाता-मारू जहाज में कनाडा से गदर पार्टी के सैनानी करतार सिंह सराभा व उनके साथी सशस्त्र क्रान्ति करने भारत आये, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज देश को आजाद करवाने सिंगापुर तक पहुंच गई। इन सब वीरतापूर्ण घटनाओं ने फिरंगीयों के हौसलें पस्त कर दिये और फिरंगीयों के समझ में आने लग गया कि भारतीय क्रान्तिकारी खून अब ठण्डा नहीं होगा। तब जाकर हमें आजादी मिली। हम भूल गये कि हमें आजादी भीख में नहीं शहीदों के खून से मिली। आजादी के बाद हमने हमारे शहीदों और क्रान्तिवीरों को भूला दिया तथा स्वतन्त्र भारत के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर लिखा गया। इतिहास के पन्नों में भारतीय क्रान्तिवीरों को सही स्थान नहीं दिया गया। हमारे ही शहीदों को आज भी इतिहास की पुस्तकों में उग्रवादी बताकर वीरों की शहादत का अपमान किया जा रहा है। भगत सिंह व उनके साथियों के विरूद्ध गवाही देने वाले गद्दार के नाम से मार्ग व चौक बनाये जा रहे हैं। आज भी सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर रही है कि द्वितीय विश्व युद्ध के अपराधिेंयों की सूची में आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति नेताजी का नाम नहीं है। शर्मिन्दा है हम, कि हमने शहादत का सम्मान नहीं किया शहीदों के खून से मिली आजादी को गुण्डों, तस्करों और भू-माफियाओं के हाथों सौंप दिया। आजाद हिन्द फौज के खिलाफ लडने वाले आजादी के विरोधियों को आज भी स्वतन्त्रता दिवस पर हमारे राष्ट्रपति सलाम करने जाते है।
हमारे ज्ञात व अज्ञात क्रान्तिवीरों को श्रद्धांजली हेतु इस वेबसाईट को बनाया जा रहा है। इस साईट पर आजादी से पूर्व की पुस्तकों ‘हिन्दु पंच के बलिदान अंक’, ‘चॉंद फॉंसी अंक’ इत्यादि पुस्तकों और नेट पर अन्यत्र उपल्ब्ध सामग्री से संकलन किया है। आप सब से आग्रह है कि भारतीय क्रान्तिवीरों के संबंध में उपलब्ध सामग्री को इस वेबसाईट पर जरूर पोस्ट करें। इस साईट का उद्देश्य भारतीय क्रान्तिवीरों की स्मृति के रूप में भावी पीढि़यों के लिए अक्षुण्ण रखना है।
जय हिन्द। वन्दे मातरम। इंकलाब जिन्दाबाद।