:- सिंध बाल क्रांतिवीर -:
– हेमू कालानी –
हेमू का जन्म 23 मार्च 1923 को सख्कर में माता जेठीबाई व पिता श्री पेशूमाल के घर हुआ । हेमू बालापन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे।
हेमू विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार व भारत छोड़ो आंदोलन में आगे रहे। हेमू छात्रसंगठन ” स्वराज सेना” में सक्रिय रूप से देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते थे।
हेमू को पता चला कि बलूचिस्तान में आंदोलन को दबाने के लिए एक
अंग्रेजी रेलगाड़ी 23 अक्टूबर 1943 को हथियार व सैनिक लेकर रोहिड़ी से सख्खर होते हुए क्वेटा जाएगी ।
क्रांतिकारी हेमू ने अपने बाल मित्रों नंद व किशन के साथ ट्रेन को पलटने के लिए रेल लाइन की फ़िशप्लेट उखाड़नी चाही।
जैसे ही काम शुरू किया पुलिस आ गयी हेमू ने अपने दोनों साथियों को भगा दिया पर खुद गिरफ्तार हो गए ।
पुलिस ने बर्फ़ सील्लियों पर लेटा कर हंटरों से हेमू का शरीर छलनी कर दिया गया पर हेमू ने मुंह नहीं खोला ।
हेमू के साथियों की माताएं जेल में हेमू से मिली।माताओं की हालत देख हेमू ने निश्चय कर लिया था की साथियों के नाम नहीं बताएंगे । यह बात आम चर्चा की थी कि हेमू के साथ दो बालक और थे ।
जब नाम बताने के लिए मजिस्ट्रेट के पास ले गए तो हेमू ने साथियों के नाम बताए “छन्नी व हथौड़ा” ।
हेमू ने फांसी की सजा सुनानेवाले जज कर्नल रिचर्डसन के मुंह पर थूक दिया ।
हेमू की तरफ से वॉयसराय के समक्ष क्षमा याचना पेश होने पर वायसरॉय ने साथियों के नाम बताने की शर्त रखी पर वीर हेमू ने अपने साथियों के नाम बताने से स्पष्ट इंकार कर दिया ।
हेमू की माँ जेल में मिलने गयी व अपने वीर बेटे को शाबासी दी व अपनी कोख पर गर्व जताया ।
हेमू को दिनाँक 21 जनवरी 1943 को सख्खर केंद्रीय जेल में फाँसी दी गयी ।
इन्कलाब जिंदाबाद व भारतमाता की जय के नारे लगाते हुए हेमू फाँसी पर झूल गए । फाँसी से पूर्व अंतिम इच्छा पूछने पर हेमू ने भारत मे फिर जन्म लेने की इच्छा बताई।
भारत सरकार द्वारा हेमू का 1982 में डाक टिकट जारी किया ।
इन्दिरा गांधी द्वारा हेमू की वीर जननी जेठीबाई को “सिन्धुमाता”” की पदवी दी ।
शत शत नमन बाल शहीद को