क्रांति के सूत्रधार: क्रांतिवीर सुखदेव
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जिन युवाओं ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, उनमें शहीद सुखदेव थापर का नाम सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। वह न केवल भगत सिंह और राजगुरु के अभिन्न साथी थे, बल्कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के एक प्रखर विचारक, योजनाकार और संगठनकर्ता भी थे।
प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा
सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को गांव नौधरा, जिला लुधियाना, पंजाब में हुआ था। जब वे मात्र तीन वर्ष के थे, तब उनके पिता लाला रामलाल का निधन हो गया। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके ताया श्री अचिन्तराम ने किया, जो 1920 में लायलपुर कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
ताया जी ने बचपन से ही सुखदेव के मन में वीरता और क्रांति के बीज बो दिए। एक प्रसंग में जब दीवाली की पूजा के लिए माँ ने उन्हें लक्ष्मी जी की तस्वीर लाने को कहा, तो सुखदेव रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर ले आए और माँ को रानी की बहादुरी की कहानियाँ सुनाईं।
जलियांवाला कांड और असहयोग आंदोलन का प्रभाव
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय सुखदेव की आयु 12 वर्ष थी। यह घटना उनके हृदय और मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ गई। जब 1920 में उनके ताया जी को असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार किया गया, तो उनके अंदर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और उग्र हो गया।
शिक्षा और क्रांतिकारी संगठन से जुड़ाव
सुखदेव ने सनातन धर्म स्कूल, लायलपुर में शिक्षा प्राप्त की। वहां उन्होंने एक अंग्रेज अफसर को परेड के दौरान सलामी देने से इनकार कर दिया। इसके बाद वे लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ने लगे, जिसे लाला लाजपत राय ने स्थापित किया था। कॉलेज का ‘द्वारका प्रसाद पुस्तकालय’ क्रांतिकारी विचारों का केंद्र था, जहां राजाराम शास्त्री और प्रोफेसर जय चंद्र जैसे प्राध्यापक छात्रों में राष्ट्रीय चेतना भरते थे। यहीं सुखदेव की मित्रता भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा, जयदेव और जसवंत सिंह जैसे युवाओं से हुई।
साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय का बलिदान
1928 में साइमन कमीशन के लाहौर आगमन पर सुखदेव, भगत सिंह और अन्य साथियों ने लाला लाजपत राय के नेतृत्व में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस अधीक्षक स्कॉट के आदेश पर लाठीचार्ज हुआ और उप पुलिस अधीक्षक सांडर्स ने लाला जी के सिर पर प्रहार किया, जिससे उनकी 17 नवंबर 1928 को मृत्यु हो गई।
लाला जी के दाह संस्कार के समय ही सुखदेव और भगत सिंह ने बदला लेने का प्रण लिया और 17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की हत्या कर दी गई।
क्रांतिकारी संगठन और भूमिगत गतिविधियाँ
1925 में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन हुआ, जिसमें सुखदेव अध्यक्ष, भगत सिंह महासचिव और भगवती चरण वोहरा प्रचार मंत्री बनाए गए। 1926 में यह सभा एक गुप्त क्रांतिकारी दल में परिवर्तित हो गई।
8–9 सितंबर 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) का गठन हुआ। इस संगठन में चंद्रशेखर आजाद को कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया गया, और सुखदेव को छद्म नाम ‘विलेजर’ दिया गया।
लाहौर के कश्मीरी बिल्डिंग में गुप्त रूप से बम निर्माण फैक्ट्री स्थापित की गई थी। पुलिस को मुखबिरी के जरिए इसका पता चला और 16 मार्च 1929 को सुखदेव को गिरफ्तार कर लिया गया।
विचारधारा और गांधी जी को पत्र
सुखदेव एक सच्चे विचारशील क्रांतिकारी थे। उन्होंने गांधी जी को एक ऐतिहासिक पत्र लिखा जो ‘नवजीवन’ में 30 अप्रैल 1931 को प्रकाशित हुआ। इस पत्र में उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन की आवश्यकता और गांधी जी के आंदोलन-विराम के निर्णय पर गंभीर प्रश्न उठाए।
“…कृपया आप क्रांतिकारियों से बात कीजिए, उनके दृष्टिकोण को समझिए या फिर ऐसी अपीलें बंद कर दीजिए। ये अपीलें सरकार की मदद करती हैं, क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए।…”
अंतिम बलिदान
अंत में, 23 मार्च 1931 को सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को निर्धारित तिथि से एक दिन पहले लाहौर सेंट्रल जेल में रात्रि 7:33 बजे फांसी दे दी गई। ब्रिटिश हुकूमत ने सभी नियमों को तोड़कर इन वीरों के शवों को सतलुज किनारे गुप्त रूप से जला दिया।
शत-शत नमन
क्रांतिवीर सुखदेव ने न केवल आजादी की लौ को जलाए रखा, बल्कि संगठन, विचार और बलिदान से उस क्रांति को दिशा भी दी। उनके जीवन से आज भी प्रेरणा ली जा सकती है — साहस, विचार और संकल्प का संगम।
शत-शत नमन, अमर शहीद सुखदेव को।
