पंजाब विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह
दिनाँक 23 दिशम्बर 1930
पंजाब गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी कार्यक्रम सम्मापन के बाद जैसे ही चले
कड़ी पुलिस व्यवस्था के बावजूद एक युवा प्रकट हुआ व
अपने पिस्तौल से गवर्नर महोदय के दो गोली मारी ।
एक कंधे पर व एक पीठ पर।
कई घायल हुए जिनमे से एक पुलिसकर्मी शाम को मर गया।
युवक को मौके पर गिरफ्तार कर लिया गया।
आप थे
क्रांतिवीर हरि किशन सरहदी।
आपका जन्म 1909 में उत्तर-पश्चिम के सीमांत प्रान्त के मर्दन शहर के पास गल्ला ढेर नामक गांव में हुआ।
आपके पिता श्री गुरुदास मल बड़े जमीदार थे ।
देशभगत भगतराम जो पेशावर जेल में थे आपके भाई थे।
रामप्रसाद बिस्मिल व अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ आपके आदर्श थे।
केंद्रीय असेम्बली प्रकरण में भगत सिंह द्वारा अदालत में दिए गए बयानों से आप अतिप्रभवित थे।
आप पर मुकदमे की सुनवाई बोस्टन जेल लाहौर में
3 जनवरी 1936 को शुरू हुई थी।
आपने सफाई देने से इंकार कर दिया और वकील भी नहीं किया बल्कि अदालत कहा –
मैं यदि बता सकता, कि मैं लाहौर में कब आया ।
परन्तु मैं यहां गवर्नर को मारने के लिए आया था।
यह भी नहीं बताना चाहता,कि मैं लाहौर में कहाँ ठहरा था।
मैं 23 दिसंबर को टिकट के साथ यूनिवर्सिटी हॉल में गया था।
मैंने कुल 6 फायर किये।
दो गवर्नर पर किये बाकी अपने को बचाने के लिए, न कि इस ख्याल, से कि इससे कोई मारा जाए ।
अदालत में जो भी चीजें- पिस्तौल और गोलियां आदि- पेश की गई है,वो मेरी है।
मैं और कुछ कहना नहीं चाहता और न यह बताना चाहता हूं कि मैंने यह कार्य क्यों किया ।
मैंने जो कुछ किया है इच्छा से किया है, अपनी इच्छा से किया है।
इस मामले में आपको फांसी की सजा हुई जो अपील आदि के बाद फांसी की सजा यथावत रही।
आपको 9 जून 1931 को मियांवाली जेल में फांसी दी गई थी।
आपने अपनी अंतिम इच्छा जाहिर की-
“फाँसी के बाद अपना पार्थिव शरीर अपने रिश्तेदारों को देने व
अंतिम संस्कार वहीं हो सरदार भगत सिंह का हुआ।”
परंतु सरकार ने आपकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं की आपके पार्थिव शरीर को जेल के नजदीक ही मुसलमानों के कब्रिस्तान में जला दियाI
शत शत नमन शहिदों को