मास्टर सूर्य सेन ” दा ” ने चटगांव में इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के नाम से क्रांतिकारी दल का गठन किया था ।
इस दल ने दिनाँक 18 अप्रेल 1930 चटगांव के पुलिस एंव फौज के शस्त्रागार को लूट कर यूनीयन जैक को उतारकर भारतीय ध्वज लहरा दिया व चटगाँव में चार दिन तक क्रांतिकारी दल का प्रशासन स्थापित कर दिया था।
इसके पश्चात फ़ौज को बुलाया गया । क्रांतिकारीयों व फ़ौज में दिनाँक 23 अप्रेल 1930 को जलालाबाद पहाड़ी पर जंग हुआ।
इस जंग में काफी क्रांतिकारी शहीद हुए शेष इधर उधर गांवों में छिपे गए थे।
उनमें से एक था बाल क्रांतिकारी हरिपद भट्टाचार्य आयु मात्र 15 वर्ष।
चटगांव ऑपरेशन के बाद पुलिस इंस्पेक्टर खान बहादुर अशमुल्ला ने चटगांव के क्रांतिकारियों के परिवारों पर अमानवीय अत्याचार कर रहा था।
हरिपद भट्टाचार्य यह सब सहन नहीं कर पा रहा था।
उसने मास्टर ‘दा’ से इंस्पेक्टर खान का वध करने की इजाजत मांगी।
मास्टर दा ने हरिपद को रिवॉल्वर चलाने का प्रशिक्षण दिया तथा एक अच्छा रिवॉल्वर देकर आशीर्वाद दिया।
बालक को पता चला कि खान बहादुर अशमुल्ला फुटबाल का शौकीन है ।
उसकी टीम का दिनांक 30 अगस्त 1931 को रेलवे कप के लिए कोहिनूर टीम के साथ मुकाबला होना है ।
बालक ने इसे ही अच्छा मौका समझा और दिनांक 30अगस्त1931 को फुटबॉल मैदान में खान बहादुर की टीम ने कोहिनूर टीम को पराजित किया।
खान बहादुर खुश था ।
खेल मैदान में ही लोग बधाइयां दे रहे थे
बाल क्रांतिकारी भी फुटबॉल मैदान में खान बहादुर के पास गया व अपने रिवाल्वर से खान बहादुर अशमुल्ला के चार गोलियां मारी।
खान मारा गया ।
बालक खान बहादुर की मौत को सुनिश्चित करने के लिए खड़ा रहा।
इतने में ही पुलिस ने पकड़ लिया बाल क्रांतिकारी को लातों से बुरी तरह मारा गया ।
उसके बाद उसे चटगांव थाना में बंद रखा गया।
पुलिस वालों ने हरिपद के वृद्ध पिता व घर वालों को भी अमानवीय यातनाएं दी।
पुलिस ने बदमाशों के साथ मिलकर 3 दिन तक चटगांव गांव को लूटा।
अंततः 16 सितंबर 1931 को बाल क्रांतिकारी पर मुकदमा चलाया गया।
मुकदमा का निर्णय दिनाँक 22 दिशम्बर 1932 को हुआ।
बालक की आयु कम होने के कारण उसे मृत्युदंड नहीं दिया गया।
आजीवन कारावास कालापानी की सजा दी गई
शत शत नमन