चंद्रशेखर आज़ाद: स्वतंत्रता संग्राम के अजेय योद्धा
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाँवरा गांव में हुआ था, जो उस समय अलीपुर रियासत का हिस्सा था। उनके पिता, पंडित सीताराम तिवारी, आर्थिक रूप से कमजोर थे, और चंद्रशेखर का जन्म एक झोपड़ी में हुआ था। बचपन से ही उनके दिल में स्वतंत्रता संग्राम की एक गहरी ललक थी, जो बाद में उनकी शहादत तक एक प्रेरणा बन गई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और बालक आज़ाद की कड़ी परीक्षा
चंद्रशेखर आज़ाद ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बालक अवस्था में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। एक घटना, जो हमेशा उनके साहस का प्रतीक बनी, वह थी जब वे मात्र 12 वर्ष के थे। उस समय वाराणसी में सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत बच्चों का एक जुलूस पुलिस द्वारा तितर-बितर किया गया। इस जुलूस के एक नायक को पकड़कर मजिस्ट्रेट के पास पेश किया गया। जब मजिस्ट्रेट ने बालक से उसका नाम पूछा, तो उसने निडर होकर “आजाद” उत्तर दिया। जब मजिस्ट्रेट ने पिता का नाम पूछा, तो बालक ने जवाब दिया “स्वाधीनता”, और निवास स्थान पूछा तो कहा “जेलखाना”। इस उत्तर से तिलमिलाकर मजिस्ट्रेट ने उसे 15 बेंते लगाने की सजा दी।
जब बेंतें पड़ रही थीं, तो चंद्रशेखर आज़ाद “महात्मा गांधी की जय” के नारे लगाते हुए बुरी तरह बेहोश हो गए। इस घटना ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बना दिया। उनके इस साहसिक कदम ने उन्हें ‘आजाद’ नाम से जाना जाने लगा और अंग्रेजों की नज़र में उनका डर पैदा हो गया।
क्रांतिकारी मार्ग और ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन
गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने के बाद, चंद्रशेखर आज़ाद ने गांधी के मार्ग से हटकर सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। इस समय ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (एचआरए) का गठन हुआ, जिसका उद्देश्य भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करना था। इस संगठन में कई क्रांतिकारी शामिल थे, जैसे कि भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल।
9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड के रूप में एचआरए ने ब्रिटिश खजाने को लूटकर इतिहास रच दिया। काकोरी कांड में चंद्रशेखर आज़ाद सबसे कम आयु के क्रांतिकारी थे, जिन्होंने किसी भी कीमत पर गिरफ्तारी से बचने का प्रयास किया और कभी पकड़े नहीं गए।
चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह: एकजुट संघर्ष
चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह ने मिलकर कई महत्वपूर्ण योजनाओं को अंजाम दिया। 8 सितंबर 1929 को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा में भगत सिंह ने ‘सोशलिस्ट’ शब्द को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एजेंडे में शामिल किया। इस समय, चंद्रशेखर आज़ाद ने संगठन की सैन्य शाखा का नेतृत्व किया, और भगत सिंह ने प्रचार शाखा का कार्य संभाला।
इसके बाद, 17 दिसंबर 1928 को लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने के लिए, चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में भगत सिंह और राजगुरु ने सांडर्स का वध किया। यह घटना भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
सिंहासन की ओर बढ़ते कदम और शहादत
1929 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक और बड़ा कदम उठाते हुए भगत सिंह और उनके साथियों ने दिल्ली असेंबली में बम फेंका। इस बम कांड का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को दुनिया के सामने नीचा दिखाना था। इसके बाद, भगत सिंह और उनके साथी गिरफ्तार हुए और उनकी गिरफ्तारी के बाद आज़ाद जी ने गदर पार्टी के क्रांतिकारियों से मदद ली, ताकि भगत सिंह और उनके साथियों को जेल से बाहर निकाला जा सके।
लेकिन समय की गति इतनी तेज थी कि 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आज़ाद को पुलिस के साथ एक ऐतिहासिक मुठभेड़ में अपनी शहादत देनी पड़ी। अल्फ्रेड पार्क में एक गुप्त बैठक के दौरान पुलिस ने उन्हें घेर लिया था।
चंद्रशेखर आज़ाद ने आखिरी गोली खुद को मार कर अपने जीवन का समापन किया। उनकी यह शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक प्रेरणा बन गई। उन्होंने कहा था, “दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजादी ही रहेगी, आज़ाद ही रहेंगे।”
चंद्रशेखर आज़ाद की प्रेरक जीवन गाथा
चंद्रशेखर आज़ाद का जीवन साहस, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक बन गया। उनके साहसिक कदम, संघर्ष और बलिदान ने भारतीय युवाओं को हमेशा प्रेरित किया। उनके जीवन की कुछ घटनाएँ उनकी महानता को दर्शाती हैं:
- एक बार गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने चंद्रशेखर आज़ाद को अपनी माता के लिए 200 रुपये दिए थे, लेकिन आज़ाद जी ने वह पैसा दल के लिए खर्च कर दिया। जब पूछा गया कि उन्होंने मां को क्यों नहीं भेजे, तो उनका जवाब था, “मेरी माता को दो गोलीयां ही काफी हैं, लेकिन मेरे साथियों को भूखा नहीं मरने दूंगा।” यह उनके बलिदान और संगठन की महत्ता को दर्शाता है।
- एक अन्य घटना में, जब एक महिला ने चंद्रशेखर आज़ाद का हाथ पकड़ लिया, तो उन्होंने उसे अपनी ताकत से छुड़ाने की बजाय सम्मान दिखाया और उसे जाने दिया। यह उनकी महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना को प्रदर्शित करता है।
आजाद जी की फोटो, जिसमें वह अपनी मूंछों पर ताव देते हुए नजर आते हैं, वह आज भी भारतीय राष्ट्र की थाती है, जिसे मास्टर रूद्र नारायण सिंह ने खींचा था।
नमन
चंद्रशेखर आज़ाद ने न केवल अपनी जान दी, बल्कि अपने संघर्ष से स्वतंत्रता की महान धारा को बहाया। उनका जीवन और बलिदान हमेशा भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।