मुकंदी लाल गुप्ता

मुकंदी लाल गुप्ता: एक महान क्रांतिकारी की संघर्षगाथा

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे मुकंदी लाल गुप्ता। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है, और उनकी वीरता तथा बलिदान हमेशा याद रखे जाएंगे।

प्रारंभिक जीवन और मातृ देवी संगठन में भागीदारी

मुकंदी लाल गुप्ता का जन्म औरैया, इटावा में हुआ था। उनका परिचय उस समय के प्रमुख क्रांतिकारी नेता गेंदालाल दीक्षित के साथ हुआ, जो “मातृ देवी” क्रांतिकारी संगठन के कमांडर इन चीफ थे। मातृ देवी का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र क्रांति करना था। इस संगठन के सदस्य हथियारों के लिए धन जुटाने के लिए धनी व्यक्तियों के यहां डाका डालने की योजना बनाते थे, ठीक वैसे ही जैसे आयरलैंड के क्रांतिकारी करते थे।

एक दिन, मातृ देवी के संगठन ने एक बड़े आसामी के यहां डाका डालने की योजना बनाई, लेकिन दुर्भाग्यवश एक पुलिस मुखबिर ने जानकारी दे दी, जिससे संगठन के सदस्यों को गिरफ्तार किया गया। इस योजना की विफलता ने मुकंदी लाल गुप्ता को जेल की हवा दी, और उन्हें मैनपुरी केस में 6 वर्ष का कठोर कारावास हुआ। जेल में रहते हुए उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं, लेकिन उनका साहस और संघर्ष कभी कम नहीं हुआ।

क्रांतिकारी गतिविधियों में फिर से सक्रियता

6 वर्ष की सजा काटने के बाद, मुकंदी लाल गुप्ता ने शांत बैठने के बजाय, क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में अपनी सक्रिय भागीदारी बढ़ाई। इस दौरान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने काकोरी एक्शन की योजना बनाई थी। मुकंदी लाल गुप्ता को काकोरी एक्शन के दौरान एक महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था। उन्हें ट्रेन में बैठे यात्रियों को डराने के लिए रिवाल्वर से फायरिंग करनी थी, ताकि कोई भी क्रांतिकारी पकड़ में न आए।

9 अगस्त 1925 को काकोरी एक्शन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। इस एक्शन के दौरान कोई भी क्रांतिकारी पकड़ा नहीं गया, लेकिन एक सरकारी गवाह बनवारी लाल ने पुलिस को दल की सारी जानकारी दे दी। इसके परिणामस्वरूप मुकंदी लाल गुप्ता समेत कुल 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया। काकोरी केस में बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई, जबकि शचिंद्र सान्याल, शचींद्र बख्शी और मुकंदी लाल गुप्ता को आजीवन काला पानी की सजा दी गई।

द्वितीय विश्व युद्ध और पुनः संघर्ष

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जब ब्रिटिश सरकार ने आम रिहाई की प्रक्रिया शुरू की, तो मुकंदी लाल गुप्ता को भी रिहा किया गया। लेकिन उन्होंने न तो देश की गुलामी को स्वीकार किया और न ही अपने संघर्ष को खत्म किया। 1942 में, उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और इसके लिए उन्हें फिर से 7 साल की कठोर कारावास की सजा हुई।

मैनपुरी एक्शन में भागीदारी और मातृ देवी की योजनाएं

मुकंदी लाल गुप्ता मैनपुरी एक्शन में भी सक्रिय थे, हालांकि इस समय बिस्मिल फरार थे। मैनपुरी एक्शन की कार्यवाही में उन्हें एक अखबार बांटने वाला हॉकर बताया गया था। इस दौरान, मातृ देवी संगठन ने संयुक्त प्रांत के पुलिस और प्रशासन के 12 बड़े अधिकारियों की हत्या करने की योजना बनाई थी, लेकिन पुलिस को यह योजना पहले ही भांपने में सफलता मिल गई, जिससे यह प्रयास असफल हो गया।

समाप्ति और शहादत

मुकंदी लाल गुप्ता का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय वीरता और बलिदान की मिसाल है। उनके संघर्षों ने हमें यह सिखाया कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए न केवल शारीरिक बल की आवश्यकता होती है, बल्कि मानसिक दृढ़ता और देशभक्ति भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनका जीवन समर्पण, संघर्ष और बलिदान का प्रतीक बना, और वे हमारे लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेंगे।

शत शत नमन शहीद मुकंदी लाल गुप्ता को

उनके योगदान को याद करना और उनके कार्यों को सम्मानित करना हमारे कर्तव्य की तरह है। हम सभी को उनकी वीरता से प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि हम भी अपने देश की सेवा में अपना योगदान दे सकें।