अजीत सिंह: पंजाब के क्रांतिकारी नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को लॉयलपुर, पंजाब में हुआ था। वे न केवल एक किसान आंदोलन के अग्रणी नेता थे, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। वे शहीद भगत सिंह के भतीजे थे और उनके जीवन और कार्यों ने स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया। अजीत सिंह का जीवन संघर्षों और साहस की कहानी है, जिसने उन्हें न केवल पंजाब में, बल्कि पूरे भारत में एक सम्मानित स्थान दिलवाया।
पंजाब में किसानों की आवाज
अजीत सिंह का जीवन पंजाब के किसानों के लिए एक प्रेरणा बना। ब्रिटिश शासन ने कॉलोनाइजेशन और दो आब बारी जैसे कानूनों के जरिए किसानों की भूमि पर अधिकार जमा लिया था। इन कानूनों के अंतर्गत नहरों का निर्माण किया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में किसानों की ज़मीनें छीन ली गईं। इसके अलावा, अंग्रेजों ने अत्यधिक कर लगा दिए थे, जिससे किसानों की स्थिति बेहद कठिन हो गई थी।
अजीत सिंह ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। उनका उद्देश्य सिर्फ अपने और अन्य किसानों के अधिकारों की रक्षा करना नहीं था, बल्कि अंग्रेजों द्वारा लागू की गई अत्याचारी नीतियों के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन खड़ा करना था। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने भारत माता सभा की स्थापना की।
“पगड़ी संभाल जट्टा” आंदोलन
3 मार्च 1907 को अजीत सिंह ने लॉयलपुर, पंजाब में किसानों की एक विशाल सभा का आयोजन किया। इस सभा में उन्होंने अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। इस अवसर पर, प्रसिद्ध समाचार पत्र “झांग स्याल” के संपादक बांके दयाल ने एक प्रसिद्ध गीत “पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए” गाया। यह गीत पंजाबी किसानों के बीच एक आंदोलन का रूप धारण कर गया और इस आंदोलन का नाम “पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन” पड़ा।
यह गीत न केवल किसानों के हौसले को बढ़ाता था, बल्कि उनकी एकता और संघर्ष को भी दर्शाता था। इस आंदोलन में अजीत सिंह के साथ लाला लाजपत राय, सूफ़ी अंबा प्रसाद जैसे महान नेता भी शामिल थे। इसके परिणामस्वरूप अजीत सिंह को ‘देशविद्रोही’ घोषित किया गया, और 20 मई 1907 को उन्हें गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया। जेल में उनका अधिकांश जीवन बीता, लेकिन उनका संघर्ष निरंतर जारी रहा।
विदेश में संघर्ष और विश्वयुद्ध
1908 में अजीत सिंह को जेल से रिहा किया गया, लेकिन उन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान जारी रखा। वे सूफ़ी अंबा प्रसाद के साथ ईरान चले गए, और इसके बाद तुर्किस्तान और जर्मनी में भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, अजीत सिंह ने बर्लिन में रहकर लाला हरदयाल के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न किए।
अजीत सिंह को 1906 में लाला लाजपत राय के साथ देश निकाले की सजा दी गई थी, और इसके बाद उन्होंने विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जारी रखने का निश्चय किया। उन्होंने इटली, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान और अन्य देशों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए कार्य किया। उनका आदर्श और संघर्ष अन्य देशों में भारतीयों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना।
द्वितीय विश्व युद्ध और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अजीत सिंह इटली में रहे और वहां के रेडियो से भारत की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाई। इटली की हार के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उनका साहस और संघर्ष कम नहीं हुआ। कहा जाता है कि अजीत सिंह ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हिटलर और मुसोलिनी से मिलवाया, और उनका यह योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ।
भाषाओं का ज्ञान और शिक्षा
अजीत सिंह एक बहुभाषी व्यक्ति थे। उन्होंने जीवन भर 40 भाषाओं को सीखा और उनके ज्ञान का उपयोग उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किया। उनका यह ज्ञान न केवल उनकी कूटनीतिक समझ को दर्शाता था, बल्कि उनके वैश्विक दृष्टिकोण और आंदोलन के प्रति समर्पण को भी स्पष्ट करता था। वे एक वैश्विक नागरिक थे और उनका लक्ष्य सिर्फ भारत की स्वतंत्रता नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया में उत्पीड़ितों की आवाज बनना था।
भारतीय विभाजन पर शोक और अंतिम समय
अजीत सिंह भारत के विभाजन से अत्यधिक व्यथित हुए। उन्होंने इसे न केवल एक राजनीतिक त्रासदी के रूप में देखा, बल्कि इसे भारतीय समाज के लिए एक गहरी घातक चोट माना। उनका जीवन संघर्षों और बलिदानों से भरा हुआ था, और उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य है।
अजीत सिंह का स्वर्गवास 15 अगस्त 1947, भारत की स्वतंत्रता के दिन हुआ, और उनका यह निधन एक प्रतीक बन गया कि उनके संघर्षों और बलिदानों के कारण ही भारत को आज़ादी मिली। उनका जीवन एक क्रांतिकारी प्रेरणा का स्रोत बना और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमिट छाप छोड़ी।
अजीत सिंह का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों की तरह है, जिन्होंने संघर्ष, बलिदान, साहस और समर्पण से अपनी एक अमिट पहचान बनाई। वे एक किसान नेता, क्रांतिकारी, और वैश्विक नेता थे, जिन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, बल्कि अन्य देशों में भी भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उनके अदम्य साहस और संघर्ष को हमेशा याद किया जाएगा, और उनका योगदान भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
शत शत नमन अजीत सिंह को!