:-  शहीद उद्यम सिंह-:
     -:- क्रांति भीष्म -:-

:-  शहीद उद्यम सिंह-:
     -:- क्रांति भीष्म -:-

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भीष्म जिहोंने अपनी 18 वर्ष की आयु में 13 अप्रेल1919 को जलियावालां बाग में दो हजार निहत्थे पुरूष, महिलाओं व अबोध बच्चों को दरिंदगी से मौत के घाट उतरते देखा व इस रक्तपात के दोषी अधिकारियों को दण्ड देने की प्रतिज्ञा की ।
उधमसिंह जी ने अपनी सारी जिंदगी अपनी भीष्म प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में लगा दी  व 21 वर्ष बाद रक्तपात के  दोषी ओ डायर का लंदन के कैक्सटन  हॉल में दिनाँक13 मार्च 1940 को वध करके अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को  सुनाम  जिला  संगरूर ,पंजाब में हुआ था। आपके पिता सरदार टहल सिंह @ चूहड़ सिंह  उपाली रेलवे में चौकीदार थे। अब की माताजी का 1901 व पिताजी का 1905  को आकस्मिक देहांत हो गया ।  आपके एक भाई मुक्ता सिंह थे जिनका भी 1917 में    देहान्त हो गया। आप का बचपन में नाम शेर सिंह था । आपके मातापिता के देहंतोपरांत आप दोनों भाइयों को भाई किशन सिंह रागी ने दिनाँक 24 अक्टूबर 1907 को पुतलीगढ़ अमृतसर अनाथालय (Central Khalsa Orphanage) में रखवा दिया।
भाई किसन सिंह ने अमृत छका कर  आपका नाम शेर सिंह से उधम सिंह रखा ।
वैशाखी 1919 को आप जलियांवाला बाग में जल सेवा कर रहे थे ।
आपने जलियावाला ख़ूनी काण्ड अपनी आंखों से देखा था जिसका आपके दिल व दिमाग पर गहरा असर पड़ा ।
आपने स्वर्ण मंदिर में  पवित्र सरोवर में स्नान यह प्रतिज्ञा की थी कि जलियावाला हत्या कांड के दोषी से बदला लेंगे।
आप  नैरोबी में अफ्रीका में गदर पार्टी से जुड़े। भारत मे आप भगतसिंह व हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े।
आप जुलाई 1927 में हथियार लेकर  आये। दिनाँक  30 अगस्त 1927 को 25 क्रांतिकारीयों के साथ  गिरफ्तार किया गया। आप चार वर्ष तक जेल में रहे ।


सन 1931 में आपने अमृतसर में साइन बोर्ड पेंटर का काम किया और अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रखा  

आप अपने मिशन को अंजाम देने के लिए शेरसिंह,उद्यानसिंह, उदेयसिंह, उदय सिंह ,आदि छदम नामों से कश्मीर अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की ।सन्1934 में उधम सिंह जी लंदनपहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे।
दिनाँक 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था और उसे सम्मानित किया जाना था।
ओ डायर जलियावाला कांड के समय पंजाब के गवर्नर थे।इसके आदेश पर ही ब्रिगेडियर हैरी डायर ने फायरिंग करवाई थी । हैरी डायर पहले ही मर गया । तो डायर जिंदा था। जो उधम सिंह का टारगेट था।  

उस दिन 13 मार्च 1940 को आपने एक मोटी क़िताब  बीच के कागज  रिवॉल्वर के आकर के काटे व इसमें रिवॉल्वर रख लिया व समय से ही सभा हाल में  पहुँच गए।
जैसे ही ओ डायर बोलने के लिए खड़ा हुआ वीरवर ने माइकल ओ डायर के दो गोलियां  मारी जिनसे दुष्ट डायर वहीं मर गया।
आप भागे नहीं  हॉल में उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा

” जलियांवाला बाग का हत्याकांड मैंने अपनी आंखों से देखा था और उसी दिन से अंग्रेजी राज  व यह व्यक्ति मेरी घृणा का पात्र बन गया।   

ओ डायर का क्रूर और नृशंसापूर्ण शासन, हृदय विदारक अत्याचार और भयानक दमन मेरी स्मृति से कभी न निकल सके उसी दिन मेंने  प्रतिज्ञा की थी कि मैं इस खून का बदला लूंगा । मुझे हर्ष है कि मैं अपने प्राणों की बाजी लगाकर 21 वर्ष बाद उस हत्याकांड का बदला ले रहा हूं और इस प्रकार अपनी मातृभूमि के चरणों में अपने प्राणों को यह तुच्छ भेंट प्रस्तुत कर सका हूं।'”

आपने हॉल में ही अपनेआप गिफ्तारी दी । आप कत्ल का  मुकदमा चला व 4 जून 1940 को आपको  को हत्या का दोषी ठहराया गया व फाँसी की सजा दी गयी।  आपको दिनाँक 31 जुलाई 1940 को लंदन की पेंटनविले जेल में फांसी दे दी  गई।

फाँसी से पूर्व अपनी अंतिम इच्छा में कहा  फांसी के समय मेरे हाथ नहीं बांधे जावे व  मेरी अस्थियों को भारत भेज दिया जावें।
आपके द्वारा ओ  डायर का वध करने पर गांधी जी ने अपनी आदत के अनुसार दुःख व्यक्त करते हुए कहा “The Outrage has caused me deep pain.I regard it as an act of insanity.”
अमृतबाजार पत्रिका ने आपकी बहादुरी को खुले दिल से सराहा।
अप्रेल 1940 रामगढ़ कांग्रेस सभा मे लोगों ने ऊधम सिंह जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए।

देश के आजाद हो जाने के 26 वर्ष बाद तक ऊधम सिंह जी की अस्थियां मातृभूमि के लिए तरस रही थी।
भला हो तत्कालीन पंजाब मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह का जिनके प्रयत्न से 1973 में यह शुभ काम सम्पन्न हुआ। पंजाब विकास कमिश्नर श्री  मनोहर सिंह गिल को इंग्लैंड भेजा  जो उधम सिंह जी  के लिखे पत्र लेकर आये।।
23 जुलाई 1974 को पंजाब मंत्रिमंडल के मंत्री श्री उमराव सिंह व विधायक श्री साधु सिंह इंग्लैंड से अस्थियों के लेकर भारत  पहुंचे। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी  अपने मंत्रिमंडल के साथ एयरपोर्ट पर  पर पहुंची व उधम सिंह जी की अस्थियों का सम्मान किया।
अस्थियों को कपूरथला में दर्शनार्थ रखा गया व  सम्मानार्थ जुलूस निकाला गया व राजकीय सम्मान के साथ   31 जुलाई 1974 को कीर्तिपुर में जल प्रवाहित किया गया।

शत शत नमन क्रांति के लिए भीष्म प्रतिज्ञा निर्वहन करने वाले महान क्रांतिवीर को ।