क्रान्तिवीर उल्लासकर दत्त

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“Look, Look! the man is going to be hanged and he laughs,”(देखो! देखो! इस आदमी को फाँसी दी जाने वाली है और वह हँस रहा है) “Yes, I know they all laugh at death,” (हाँ, हाँ, मैं जानता हूँ, मौत उनके लिए दिल्लगी है।)

यह बातचीत उन दो यूरोपियन पहरेदारों के मध्य तब हुई जब फाँसी की सजा सुनकर उल्लासकर दत्त हँसता हुआ अपनी कोठरी को लौट रहा था। उसने जज के मुँह से फाँसी की सजा सुनकर हँसते हुए एक अंगड़ाई लेकर कहा था ”चलो एक बड़े झंझट से छूटकारा मिला।“

उनका नाम उल्लासकर दत्त था और उन्होनें अपने जेल जीवन में अपने नाम को सार्थक ही किया। अलीपुर बम केस में श्री वारीन्द्र घोष, उपेन्द्रनाथ बनर्जी, हेमचन्द्र आदि के साथ आपको भी पकड़ लिया गया। सेशन जज ने तो आपको फाँसी की सजा दी थी किन्तु हाईकोर्ट से काले पानी की रह गई थी। उल्लासकर साहसी नौजवानों में से थे। एक बार उनकी पुलिस वालों के साथ भिड़न्त हो गई। आपने भी उन्हें पीटा और आपकी भी उन्होनें खूब पिटाई कर दी। पुलिस ने आप पर मुकद्दमा भी चलाया किन्तु प्रमाणों के अभाव में आप छूट गये।

जिन दिनों उल्लासकर बम्बई के इंजिनियरिंग क्लास में शिक्षा पा रहे थे उन्हीं दिनों बंगाल में बंग-भंग के सरकारी ऐलान से आन्दोलन उठ खड़ा हुआ। आप वहाँ पर ’युगान्तर’ के गर्म-गर्म लेख पढ़ते थे। उन पर भी असर पड़ा और वे बम्बई से कलकत्ता आ गये। यहाँ स्वदेशी आन्दोलन में भाग लेना आरम्भ कर दिया। स्वदेशी आन्दोलन के कर्णधार थे बंगाल में उन दिनों बाबू विपिनचन्द्र पाल और श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी। उनके भाषणों और श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं का आप पर बड़ा असर पड़ा। इन भाषणों के सुनने से उनमें देशभक्ति का उत्तरोत्तर प्रवाह बढ़ता ही गया।

स्वदेशी आन्दोलन में काम करते हुए उन्हें ज्ञान हुआ कि बिना डर या भय के अंग्रेज भारत छोड़ने वाले नहीं है। अतः उनकी प्रवृति आंतकवाद की ओर हुई। उन्होनें बम बनाना सीखना आरम्भ कर दिया और उस काम में वे थोड़े ही दिनों में निपुण हो गये।

कलकत्ते में उन दिनों वारीन्द्र घोष की गुप्त समिति की भी चर्चा थी। वे भी उसमें शामिल हो गये और इसमें सन्देह नहीं था कि उनके उस समिति में शामिल होने से कार्य को काफी प्रगति मिली।

वैद्यनाथ धाम में जब वारीन्द्र ने बम फैक्टरी खोली तो उसके संचालक उल्लासकर ही थे। इसके अलावा उल्लासकर ने दो अन्य स्थानों पर भी बम की फैक्ट्रीयां कायम की थी जिनमें से एक उनके घर में तथा दूसरी मुरारीपुरकर रोड़ के पास के एक मकान में थी।

बम बनाने के काम में श्री उल्लासकर ने श्री हेमचन्द्र से आर्थिक सहायता लेकर उसे अच्छा रूप दे दिया था। श्री हेमचन्द्र ने अपनी जायदाद का एक हिस्सा बेच कर उसमें से कुछ रूपया बम के कारखाने में लगाया और कुछ से विदेशों में जा कर वे बम बनाना सीख कर आये।

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