वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम नायक
वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, जिनकी पहचान चट्टो के नाम से भी होती है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन वीर क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के रास्ते में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका जन्म 1880 में ढाका के एक संपन्न परिवार में हुआ था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
वीरेंद्रनाथ के पिता श्री अधोरनाथ एक प्रमुख शख्सियत थे, जो उस्मानिया कॉलेज, हैदराबाद में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे। अपने पिता के प्रेरणा से वीरेंद्रनाथ को उच्च शिक्षा के लिए लंदन भेजा गया। वहां, उन्होंने आईसीएस परीक्षा में बैठने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद, उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई शुरू की।
क्रांतिकारी रास्ते की ओर
लंदन में ही वीरेंद्रनाथ का संपर्क भारतीय क्रांतिकारियों वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुआ, जिन्होंने उस समय इंडिया हाउस को संचालित किया था। यह स्थान भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक गुप्त ठिकाना था। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण वीरेंद्रनाथ को विश्वविद्यालय से बाहर कर दिया गया, और वह पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उतर गए।
विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ
1906 में, जब कमाल पाशा लंदन आए, तो वीरेंद्रनाथ ने उनसे भी संपर्क किया। 1907 में जर्मनी में आयोजित समाजवादी सम्मेलन में उन्होंने भीकाजी कामा और पोलैंड के क्रांतिकारियों से मुलाकात की। वहां से, वह पोलैंड, वारसा, और आयरलैंड भी गए, जहां उनका संपर्क अन्य क्रांतिकारियों से हुआ।
उन्होंने पेरिस से निकलने वाले समाचार पत्र “वंदे मातरम” और बर्लिन से निकलने वाले “तलवार” में कई लेख लिखे, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पक्ष में थे। प्रथम विश्वयुद्ध के समय, वीरेंद्रनाथ बर्लिन गए, जहां लाला हरदयाल और पिल्ले पहले से ही सक्रिय थे।
भारतीय स्वतंत्रता समिति का गठन
1914 में, वीरेंद्रनाथ और अन्य क्रांतिकारियों ने “भारतीय स्वतंत्रता समिति” का गठन किया, जिसमें भूपेंद्रनाथ दत्त भी शामिल थे। इस समिति ने जर्मन फ्रेंड्स ऑफ इंडिया के सम्मेलन में भी भाग लिया, और इसके द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों के संपर्क में सहायता के लिए उन्हें भारत भेजा गया।
लेनिन से मुलाकात और मतभेद
कहा जाता है कि वीरेंद्रनाथ ने लेनिन से भी मुलाकात की, लेकिन उनके विचारों में काफी अंतर था। वीरेंद्रनाथ का मानना था कि भारतीय परिस्थितियाँ उस समय सर्वहारा क्रांति के लिए अनुकूल नहीं थीं, और वह राष्ट्रीय आंदोलन के पक्षधर थे। इसके विपरीत, लेनिन का झुकाव वैश्विक कम्युनिज़्म की ओर था, जो वीरेंद्रनाथ के विचारों से मेल नहीं खाता था।
जर्मनी में भारतीय क्रांतिकारियों से संबंध
वीरेंद्रनाथ का जर्मनी में भारतीय क्रांतिकारियों से गहरा संबंध था। उन्होंने राजा महेंद्र प्रताप की जर्मन केसर से मुलाकात करवाई, और युगांतर दल के जतिंद्रनाथ मुखर्जी (जतिन बाघा) से भी उनके सीधे संपर्क थे। इसके साथ ही, उन्होंने जर्मनी से भारत को हथियारों की आपूर्ति करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गद्दारी का रहस्य
एक महत्वपूर्ण और रहस्यमय घटना यह भी थी कि जर्मनी से भेजे गए हथियारों का एक जहाज रास्ते में पकड़ा गया। यह जानकारी किसी गद्दार ने अंग्रेजों तक पहुंचाई थी, और यह अब भी एक गहरे रहस्य के रूप में बना हुआ है कि वह गद्दार कौन था?
1920 में भारतीय नेताओं से संपर्क
1920 में, वीरेंद्रनाथ का रूसी नेताओं के साथ भी संपर्क था। उस समय, एमएन राय (नरेन्द्र भट्टाचार्य) ताशकंद में थे और वह काबुल जाना चाहते थे। वीरेंद्रनाथ ने उन्हें सूचित किया कि काबुल में उनकी हत्या की योजना बनाई जा रही है।
इस समय इंडो-जर्मन प्लॉट की जानकारी अंग्रेजों तक पहुंचने से, स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया।
अंतिम समय
2 सितंबर 1937 को, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय का स्वर्गवास हुआ, और उन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दी।
शत-शत नमन
वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय का जीवन एक प्रेरणा है, जिन्होंने अपनी शिक्षा, ज्ञान और क्रांतिकारी गतिविधियों से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया दिशा दी। उनका योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।
शत-शत नमन इस महान वीर क्रांतिकारी को।
