सत्येंद्र बसु

क्रांतिवीर सत्येंद्र कुमार बसु : स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय योद्धा

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा अनगिनत वीरों के त्याग और बलिदान से सजी हुई है। ऐसे ही एक अप्रतिम क्रांतिकारी थे सत्येंद्र कुमार बसु, जिनका जन्म 30 जुलाई 1882 को मिदनापुर, बंगाल में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही ओजस्वी प्रवृत्ति के थे और जब वे अरविंद घोष जैसे महान विचारक और क्रांतिकारी के संपर्क में आए, तब उन्होंने देश को आज़ाद कराने का संकल्प लिया।

क्रांतिकारी पथ की शुरुआत

सत्येंद्र बसु ने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। वे युवाओं को जागरूक करने के लिए “छात्र-भंडार” नाम की संस्था चलाते थे, जो देशभक्ति की भावना का प्रचार-प्रसार करती थी। वे युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने में सक्रिय भूमिका निभाते थे।

खुदीराम बोस को युगांतर दल से जोड़ने की भूमिका

प्रसिद्ध क्रांतिकारी खुदीराम बोस, जिन्होंने प्रफ्फुल चाकी के साथ मिलकर मुजफ्फरपुर में ब्रिटिश अधिकारी किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका था, को युगांतर दल से जोड़ने का श्रेय भी सत्येंद्र बसु को जाता है। उन्होंने ऐसे अनेक युवाओं को क्रांतिकारी गतिविधियों से जोड़ा।

गिरफ्तारी और अलीपुर षड्यंत्र

सत्येंद्र बसु को बिना लाइसेंस के अपने भाई की बंदूक रखने के आरोप में दो वर्ष की कारावास की सजा हुई और उन्हें अलीपुर जेल भेजा गया। संयोगवश, उस समय अलीपुर जेल में पहले से ही कई क्रांतिकारी “अलीपुर एक्शन” (बम बनाने के मामले) में बंद थे। सत्येंद्र बसु के इन क्रांतिकारियों से संबंध पाए जाने पर उनके खिलाफ एक और नया मुकदमा दर्ज किया गया।

जेल में ही न्याय की मिसाल

अलीपुर षड्यंत्र मामले में एक आरोपी नरेंद्र गोस्वामी सरकारी गवाह बन गया था और सितंबर 1908 में उसकी गवाही होनी थी। सत्येंद्र बसु ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर तय किया कि इस विश्वासघाती का अंत किया जाना चाहिए। इस मिशन में उनके साथ थे कन्हाई लाल दत्त। दोनों ने 31 अगस्त या 1 सितंबर 1908 को (तिथि विवादित है) जेल के अस्पताल में ही नरेंद्र गोस्वामी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया

बलिदान

ब्रिटिश सरकार ने सत्येंद्र बसु को इस “अपराध” के लिए मृत्युदंड दिया। 21 नवंबर 1908 को उन्हें फांसी दे दी गई। यह भारतमाता का वह सपूत था जिसने मुस्कराते हुए फांसी का फंदा चूमा। उनका अंतिम संस्कार जेल में ही कर दिया गया।


नमन है ऐसे अमर शहीद को

सत्येंद्र बसु जैसे वीरों के बलिदान से ही भारत स्वतंत्र हुआ। उनका साहस, संकल्प और बलिदान आज भी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है।
शत-शत नमन है इस अमर बलिदानी को।