क्रांतिवीर गोपी मोहन साहा: एक साहसी क्रांतिकारी का अद्भुत संघर्ष
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जंग लड़ी। इनमें से एक क्रांतिकारी थे गोपी मोहन साहा, जिन्होंने अपनी वीरता और साहस के कारण इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। उनका संघर्ष बंगाल के आतंकित क्रांतिकारियों के बीच महत्वपूर्ण स्थान रखता है, खासकर टेगार्ट जैसे खतरनाक पुलिस अधिकारी के खिलाफ।
बंगाल में टेगार्ट का आतंक
1923 तक बंगाल में ब्रिटिश सरकार ने अपने नियंत्रण को सख्त किया था। बंगाल ऑर्डिनेंस के तहत क्रांतिकारियों के सभी ठिकानों पर छापे मारे जा चुके थे, और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी टेगार्ट का आतंक चरम पर था। टेगार्ट, एक बेहद खतरनाक अधिकारी था, जिसकी मेज पर हमेशा एक बम पड़ा रहता था। एक बार तो उसके कार्यालय में बम फट गया, लेकिन टेगार्ट के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई। टेगार्ट ने ही बाघा जतिन और उनके साथियों का एनकाउंटर किया था, और उनके आतंक से पूरा बंगाल त्रस्त था।
गोपी मोहन साहा का साहसिक कदम
जनवरी 1924 में एक सुबह, जब कलकत्ता में घना कोहरा छाया हुआ था, एक युवक ने चौरंगी रोड पर एक ब्रिटिश अफसर को गोलियों से उड़ा दिया। यह युवक गोपी मोहन साहा था। वह टेगार्ट को मारने के लिए निकला था, लेकिन कोहरे के कारण उसने टेगार्ट को पहचानने में गलती की और एक अन्य ब्रिटिश अधिकारी, ई डे को मार डाला। इस घटना में गोपी मोहन साहा ने और भी तीन लोगों को घायल किया, लेकिन अंततः वह पकड़े गए।
अदालत में गोपी मोहन साहा का साहस
गोपी मोहन साहा की गिरफ्तारी के बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया। जब अदालत में उनके खिलाफ आरोप लगाए जा रहे थे, तो गोपी मोहन साहा ने बिना किसी डर के अपना बयान दिया। उन्होंने कहा, “मैं तो मिस्टर टेगार्ट को मारना चाहता था, लेकिन पहचान में गलती हो गई। निर्दोष ई डे के मारे जाने का मुझे अफसोस है।” इसके साथ ही उन्होंने अदालत में टेगार्ट को चुनौती देते हुए कहा, “अगर बंगाल में एक भी क्रांतिकारी है, तो वह मेरा अधूरा काम पूरा करेगा।”
गोपी मोहन साहा ने अदालत में अपने आरोपियों को खुले तौर पर चुनौती दी और कहा, “आरोप लगाने में कंजूसी मत कीजिए, दो-चार धाराएं लगाई जा सकती हैं तो लगाइए।” उनकी यह साहसिकता और सच्चाई की ओर झुकी हुई निष्ठा उन्हें अन्य क्रांतिकारियों से अलग बनाती है।
फांसी की सजा और शहादत
अदालत ने 16 फरवरी 1924 को गोपी मोहन साहा को फांसी की सजा सुनाई और 1 मार्च 1924 को उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मील का पत्थर है। गोपी मोहन साहा का बलिदान यह बताता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए न केवल बलिदान की आवश्यकता होती है, बल्कि दृढ़ संकल्प और साहस भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
शत शत नमन शहीद गोपी मोहन साहा को
गोपी मोहन साहा जैसे क्रांतिकारी हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के अनमोल नायक हैं, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी, लेकिन कभी अपनी ज़िंदगी का मूल्य नहीं समझा। उनका यह साहस, समर्पण और देशभक्ति आज भी हमें प्रेरित करता है। हमें गर्व है कि हमें ऐसे महान क्रांतिकारियों के बारे में जानने और उन्हें याद करने का अवसर मिला है।
