अल्लूरी सीताराम राजू: आदिवासियों के नायक और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष
अल्लूरी सीताराम राजू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने जंगलों में रहकर और आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया। उनका जन्म तिथि स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म 4 जुलाई, 4 जनवरी या 15 जनवरी 1897 को पाण्डुरंगी (पन्ड्रिक), विशाखापटनम, आंध्र प्रदेश में हुआ था।
सीताराम राजू ने अपनी जिंदगी के पहले कुछ साल संन्यासी के रूप में बिताए, लेकिन 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया और स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कदम बढ़ाया। असहयोग आंदोलन के असफल होने के बाद, उन्होंने सशस्त्र संघर्ष को अपनाने का निर्णय लिया और एक 300 सैनिकों की मजबूत सेना तैयार की।
बीरेयादौरा और सीताराम राजू की मुलाकात
सीताराम राजू का नाम आदिवासियों के बीच बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था। उनके संघर्ष के सबसे अहम मोड़ पर बीरेयादौरा नामक एक वीर ने आदिवासी समुदाय के बीच छापामार दस्ते का गठन किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिगुल बजाया था। बीरेयादौरा को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन वह जेल से फरार होकर जंगल में लौट आया। ब्रिटिश सरकार ने उसकी फांसी की सजा तय कर दी थी, लेकिन सीताराम राजू ने उसे बचाने की ठान ली।
एक दिन पुलिस बीरेयादौरा को अदालत ले जा रही थी, तब सीताराम राजू और उनके सैनिकों ने रास्ते में घेराबंदी की और एक भयंकर गोलीबारी के बीच बीरेयादौरा को छुड़ा लिया। इस मुठभेड़ में राजू के किसी भी सैनिक को कोई हानि नहीं हुई, और राजू ने ब्रिटिश पुलिस को खुली चुनौती दी कि वह चाहे तो उन्हें पकड़कर दिखाए।
गदर पार्टी के क्रांतिकारी और राजू की योजना
राजू का विरोध ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत बढ़ चुका था। उन्होंने कई पुलिस थानों को लूटकर हथियार इकट्ठा किए और गदर पार्टी के क्रांतिकारी बाबा पृथ्वी सिंह को छुड़ाने का ऐलान किया। राजू की योजना से पुलिस ने सतर्क होकर आस-पास के थानों से पुलिस को तैनात कर दिया। फिर भी, राजू ने अपनी चतुराई का इस्तेमाल किया और अलग-अलग टोलियों के माध्यम से कई थानों पर हमला किया, हथियार लूटे और अपने अभियान को और मजबूत किया।
रम्पा क्षेत्र और ब्रिटिश पुलिस के खिलाफ संघर्ष
राजू का ठिकाना आंध्र प्रदेश का रम्पा क्षेत्र था, जहाँ के आदिवासी समुदाय ने उन्हें दिल से अपना नेता मान लिया था। यहां राजू और उनकी सेना को मुखबिरी का डर नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने बाहर से भारी पुलिस दल भेजा, लेकिन राजू और उनके सैनिकों ने उनकी चुनौती का सामना किया। ओजेरी गांव में एक बड़ी मुठभेड़ हुई, जिसमें राजू और उनके सैनिकों ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों नेस्कोर्ट और आर्थर को मार गिराया।
अंतिम संघर्ष और शहादत
ब्रिटिश सरकार ने राजू के खिलाफ अपनी कार्रवाई को और तेज किया। 6 मई 1924 को ब्रिटिश सेना की असम राइफल्स ब्रिगेड को भेजा गया, और राजू को पकड़कर पेड़ से बांध दिया गया। उनके शरीर में गोलियां दागी गईं, और वह शहीद हो गए। इस संघर्ष में राजू के 12 सैनिक भी शहीद हुए, जबकि उनके सेनापति गौतम डोरे ने कमान संभाली, लेकिन वह भी शहीद हो गए। मल्लूडोरे को गिरफ्तार कर फांसी दी गई।
शत शत नमन शहीदों को
अल्लूरी सीताराम राजू और उनके साथी क्रांतिकारियों का संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमिट धरोहर के रूप में दर्ज है। उनका बलिदान यह दर्शाता है कि हर परिस्थिति में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करने के लिए साहस, समर्पण और अपार देशभक्ति की आवश्यकता होती है। राजू ने अपने संघर्ष से न केवल आदिवासी समुदायों को जागरूक किया, बल्कि ब्रिटिश शासन को भी चुनौती दी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
