भवानीभट्टाचार्य

भवानी प्रसाद भट्टाचार्य: साहस और बलिदान का प्रतीक

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों में से एक नाम भवानी प्रसाद भट्टाचार्य का भी लिया जाता है, जिन्होंने अपनी शहादत से ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी और हमें अपनी स्वतंत्रता की राह पर चलने का संकल्प दिया। उनका जीवन और बलिदान हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, चाहे वह कितनी भी बड़ी कीमत पर हो।

सर जॉन एंडरसन और उसका आतंक

सर जॉन एंडरसन को ब्रिटिश शासन के कुख्यात गवर्नर जनरल के रूप में जाना जाता था। वह क्रांतिकारियों के प्रति अपनी निर्दयता और दमन के लिए कुख्यात था, और अपनी दमनकारी नीतियों के चलते उसने न केवल भारत में, बल्कि आयरलैंड में भी क्रांतिकारियों पर जुल्म किए थे।

एंडरसन के अत्याचारों ने बंगाल में खासा आक्रोश पैदा किया था, और यही कारण था कि उसे विशेष रूप से बंगाल में बुलाया गया था। एंडरसन का बंगाल में आना, क्रांतिकारियों के लिए एक चुनौती बन गया था, और उन्होंने उसे अपना टारगेट बनाने का निर्णय लिया।

एंडरसन की हत्या की योजना

क्रांतिकारियों ने सर जॉन एंडरसन की हत्या के लिए एक सशक्त योजना तैयार की थी। मई 1934 में एंडरसन दार्जिलिंग के लेबंग रेस कोर्स में घुड़दौड़ देखने के लिए पहुंचे थे, और क्रांतिकारी इस मौके का पूरा फायदा उठाने के लिए वहां पहुंच गए।

8 मई 1934 को, भवानी प्रसाद भट्टाचार्य और रवींद्रनाथ नाथ ने एंडरसन को निशाना बनाकर पिस्तौल से गोलियां चलाईं, लेकिन दुर्भाग्यवश एंडरसन बच गया। इस असफल प्रयास के बाद, क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेजी शासन ने कठोर कदम उठाए और उन पर मुकदमा चलाया।

मुकदमा और सजा

इस घटना के बाद, भवानी प्रसाद भट्टाचार्य, रवींद्रनाथ नाथ, मनोरंजन बनर्जी, उज्जला, मधुसूदन, सुकुमार, और सुशील कुल सात क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। विशेष अदालत ने भवानी प्रसाद भट्टाचार्य, रवींद्रनाथ नाथ, और मनोरंजन बनर्जी को फांसी की सजा सुनाई, जबकि अन्य को उम्र भर की सजा दी गई।

कलकत्ता उच्च न्यायालय में अपील की गई, और अदालत ने भवानी प्रसाद भट्टाचार्य और रवींद्रनाथ नाथ की फांसी की सजा को बरकरार रखा, जबकि मनोरंजन बनर्जी की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया। अन्य दोषियों की उम्र कैद की सजा को घटाकर 14 साल के कारावास में बदल दिया गया।

भवानी प्रसाद भट्टाचार्य की शहादत

3 फरवरी 1935 को, भवानी प्रसाद भट्टाचार्य को फांसी दी गई। इस शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लिया। उनका बलिदान, उनकी साहसिकता, और उनके कृत्यों ने यह साबित कर दिया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटना चाहिए।

शत शत नमन

भवानी प्रसाद भट्टाचार्य का जीवन और उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में जो साहस, समर्पण और बलिदान होता है, वही असली महानता है। उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

शत शत नमन उस महान क्रांतिकारी को, जिन्होंने अपनी जान की आहुति देकर हमें हमारी स्वतंत्रता की राह दिखायी। उनका संघर्ष और बलिदान भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।