भीखाजी कामा: भारत की स्वतंत्रता की गूँज
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा में कई ऐसे महान सेनानी और सेनानियाँ हैं, जिनका योगदान आज भी हम श्रद्धा से याद करते हैं। इन्हीं में से एक नाम है भीखाजी कामा का, जिन्होंने अपने जीवन को भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। भीखाजी कामा का जीवन न केवल संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए केवल शारीरिक संघर्ष ही नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, साहस और दृढ़ता भी आवश्यक है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
भीखाजी कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को बम्बई (अब मुंबई) के एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था। उनका नाम पहले अम्बा प्रसाद भटनागर था, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को देखते हुए उन्हें हमेशा भीखाजी कामा के नाम से ही जाना गया। उनके परिवार में हमेशा शिक्षा और संस्कृति को महत्व दिया गया, और इस कारण भीखाजी ने अलेक्जेंड्रा गर्ल्स स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त की।
1885 में, उनका विवाह रुस्तम जी कामा के साथ हुआ, जो एक वकील थे। यह विवाह एक सशक्त और समर्पित जोड़ी बनकर उभरा, जो देश की सेवा में पूरी तरह से समर्पित था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भीखाजी कामा का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान शुरुआत से ही उल्लेखनीय रहा। दिसंबर 1885 में, कांग्रेस के पहले अधिवेशन में भाग लेकर आपने भारतीय राजनीति में कदम रखा। इसके बाद 1896 में बम्बई में प्लेग के प्रकोप के समय आपने मरीजों की सेवा की थी, हालांकि इस समय आप भी प्लेग की चपेट में आ गई थीं। उपचार हेतु डॉक्टरों ने आपको यूरोप जाने की सलाह दी, और 1902 में आपने यूरोप की यात्रा की।
क्रांतिकारी कार्य
लंदन में रहते हुए, भीखाजी कामा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका शुरू की। यहाँ उनका संपर्क दादाभाई नौरोजी और क्रांतिकारियों जैसे श्यामजी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर से हुआ। इस समय ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई, लेकिन उन्होंने चुपचाप लंदन छोड़कर पेरिस का रुख किया।
पेरिस में भी आपने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। यहाँ, वंदे मातरम नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया, जिसके माध्यम से आपने भारतीयों पर हो रहे अंग्रेजों के अत्याचारों की सूचना दी। इसके अलावा, आपने तलवार और इंडियन फ्रीडम समाचार पत्रों का संचालन भी किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाने का एक बड़ा माध्यम बने।
भारतीय ध्वज का उद्घाटन
भीखाजी कामा की पहचान का एक और महत्वपूर्ण अध्याय उस समय से जुड़ा है जब 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के यस्टुटगार्ट नगर में आयोजित सातवें अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में आपने भारतीय ध्वज लहराया था। यह ध्वज तीन रंगों—हरे, पीले और लाल—में था, और इसमें वंदे मातरम लिखा हुआ था। इस ध्वज में 8 कमल के फूल, सूर्य और चंद्रमा थे, जो भारतीय राष्ट्रीय एकता के प्रतीक थे।
इस सम्मेलन में उन्होंने कहा, “भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।” उनका यह बयान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को और मजबूती देने वाला था।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन और वीरता
भीखाजी कामा ने अपने जीवन में न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व में साम्राज्यवाद के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाई। उन्होंने मदनलाल धींगरा द्वारा कर्जन वायली की हत्या की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया और इसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज के रूप में प्रस्तुत किया।
उनकी न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, बल्कि अन्य देशों में भी संघर्षरत लोगों के लिए मदद की एक मजबूत धारा बन गई। आपने फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, और रूस के क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित किया, और उन सभी देशों में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष को बढ़ावा दिया।
गिरफ्तारियां और संघर्ष
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, जब फ्रांस ने भीखाजी कामा को गिरफ्तार किया, तो उनकी सक्रियता थोड़ी देर के लिए कम हुई। युद्ध समाप्त होने पर, 1918 में उन्हें रिहा किया गया, लेकिन उनका संघर्ष लगातार जारी रहा।
भारत लौटना और निधन
दिसंबर 1935 में, भीखाजी कामा भारत लौटीं, लेकिन उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता गया। 16 अगस्त 1936 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनके योगदान को भारत कभी नहीं भुला पाएगा। उनकी ज़िंदगी ने यह सिद्ध कर दिया कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए केवल शरीर का नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक बल का भी होना आवश्यक है।
शत शत नमन
भीखाजी कामा ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अद्वितीय भूमिका निभाई, बल्कि पूरे विश्व में भारतीयों के शोषण और संघर्ष की आवाज़ उठाई। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्ष केवल देश की सीमाओं में नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण होता है।
शत शत नमन उस वीरांगना को, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को न केवल विचारों से, बल्कि अपने कार्यों से भी जीवित रखा और हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी।

