क्रांतिवीर बाबा पृथ्वी सिंह “आज़ाद” — एक अमर बलिदानी का जीवन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनगिनत सपूतों ने अपना सर्वस्व अर्पित कर देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का स्वप्न देखा और उसे साकार करने के लिए असंख्य कठिनाइयाँ झेली। ऐसे ही एक महान क्रांतिवीर थे बाबा पृथ्वी सिंह “आज़ाद”, जिनका जीवन देशभक्ति, संघर्ष और बलिदान की अद्वितीय गाथा है।
प्रारंभिक जीवन और गदर आंदोलन से जुड़ाव
बाबा पृथ्वी सिंह का जन्म 15 सितम्बर 1892 को पंजाब के पटियाला रियासत के गांव लबरु रायपुररानी में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी। वे उन चंद क्रांतिकारियों में से थे जो गदर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे। गदर पार्टी का उद्देश्य था भारत को अंग्रेजों के क्रूर शासन से मुक्त कराना और देश में स्वतंत्र गणराज्य की स्थापना करना।
लाहौर षड्यंत्र और काला पानी की सज़ा
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की योजना बनाने के आरोप में बाबा पृथ्वी सिंह को लाहौर षड्यंत्र (प्रथम) मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पहले फाँसी की सज़ा सुनाई गई, परंतु अपील के बाद सज़ा को आजीवन कारावास में बदलकर उन्हें काला पानी यानी अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया गया।
कारागार से भागने का ऐतिहासिक साहस
अंडमान जेल से बाद में उन्हें नागपुर केंद्रीय जेल स्थानांतरित किया जा रहा था। इसी यात्रा के दौरान, दिनांक 29 नवम्बर 1922 को बाबा पृथ्वी सिंह ने चलती ट्रेन से कूदकर भागने का दुस्साहसिक निर्णय लिया और ब्रिटिश हुकूमत की गिरफ्त से आज़ाद हो गए। इसके बाद वे पूरे 16 वर्षों तक फरार रहे और भूमिगत रहकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे।
इस दौरान उनका संपर्क महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद और उनके संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन (HRSA) से बना रहा।
गवर्नर हैली की हत्या की योजना और साहसी अभियान
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दिए जाने के पश्चात् बाबा पृथ्वी सिंह ने इस क्रूर अंग्रेजी शासन से बदला लेने का निश्चय किया। उन्होंने दुर्गा भाभी और सुखदेव राज के साथ मिलकर बंगाल के गवर्नर मैल्कल्म हैली की हत्या की योजना बनाई। दिनांक 8 अक्टूबर 1930 को तीनों क्रांतिकारी कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुँचे और लेमिंगटन रोड स्थित गवर्नर के आवास तक जा पहुँचे। हालांकि, वहाँ भीड़ अत्यधिक होने के कारण वे कार्रवाई नहीं कर सके।
इसके पश्चात तीनों ने एक पुलिस थाना पर हमला करने का निश्चय किया। हमले के दौरान थाने के बाहर खड़े एक यूरोपीयन दंपति पर दुर्गा भाभी और पृथ्वी सिंह ने गोलियाँ चलाईं, जिससे वे मारे गए। साथ ही एक ब्रिटिश अधिकारी सार्जेंट टेलर भी घायल हुआ। इस साहसी कार्रवाई के बाद तीनों क्रांतिकारी सुरक्षित रूप से घटनास्थल से निकल गए।
घटना के समय उनके कार चालक बापट थे, जिन्होंने बाद में इस घटना की जानकारी दी। हालांकि न्यायालय ने उनके बयान को अमान्य करार दिया।
गांधीजी के समक्ष आत्मसमर्पण और रिहाई
बाबा पृथ्वी सिंह ने वर्ष 1938 में महात्मा गांधी के समक्ष आत्मसमर्पण किया। इसके पश्चात् उन्हें फिर से जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद, वर्ष 1939 में सरकार ने सभी राजनीतिक बंदियों को आम माफी दी, जिसके तहत उन्हें भी रिहा कर दिया गया।
स्वतंत्र भारत में योगदान
स्वतंत्रता के पश्चात् बाबा पृथ्वी सिंह को “जिन्दा शहीद” की संज्ञा दी गई। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘लेनिन के देश में’ लिखी, जो उस काल में व्यापक रूप से चर्चित रही। इसके अतिरिक्त, वे पंजाब सरकार (भीम सेन सचर सरकार) में मंत्री भी रहे। साथ ही वे भारत की पहली संविधान सभा के सदस्य भी चुने गए।
बाबा पृथ्वी सिंह आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय अजय भवन, नई दिल्ली में जीवन पर्यंत निवास करते रहे। वर्ष 1977 में भारत सरकार ने उनके अपूर्व योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया।
दिवंगति और अमर स्मृति
5 मार्च 1989 को 96 वर्ष की दीर्घायु में इस महान क्रांतिकारी का निधन हो गया। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मातृभूमि की स्वतंत्रता और सेवा में समर्पित कर दिया। शत-शत नमन है इस अद्वितीय क्रांतिवीर को, जिनकी गाथा भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में सदैव अंकित रहेगी।

आपका जन्म 15 सितम्बर 1892 में गांव लबरु रायपुररानी, पटियाला, पंजाब में हुआ था।
आप गदर पार्टी के संस्थापक सदस्य थे।
लाहौर षड्यंत्र(प्रथम) के नाम से चलाये गए मुकदमा में आपको फांसी की सजा दी गई थी लेकिन अपील में इसे उम्र कैद काला पानी की सजा में बदल कर आपको अंडमान सेल्युलर जेल में भेज दिया गया।
अंडमान जेल से आपको नागपुर केंद्रीय जेल में भेजा जा रहा था।इस यात्रा में आप दिनाँक 29 नवंबर 1922 को चलती ट्रेन से फरार हो गए व 16 वर्ष तक फरार रहे।
आप का संपर्क चंद्र शेखर आज़ाद व हिदुस्तान रिपब्लिकन सोसलिस्ट एसोसिएशन था।
सुखदेव ,भगत सिंह ,राजगुरु को फांसी दिए जाने के पश्चात आप दुर्गा भाभी व सुखदेव राज के साथ बंगाल के गवर्नर मैल्काल्म हैली का वध करने की योजना बना कर कलकत्ता गए ।
दिनांक 8 अक्टूबर 1930 को
आप ,दुर्गाभाभी व सुखदेवराज एक कार में लेमिंगटन रोडकलकत्ता में बंगाल गवर्नर के घर तक पहुंच गए पर वहां पर भीड़ ज्यादा होने के कारण एक्शन नहीं लिया जा सका।
इसलिए आप लोगों ने पुलिस थाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई।
थाने के आगे यूरोपीयन जोड़ा खड़ा था जो दुर्गा भाभी व आपके द्वारा की गई फायरिंग से मारा गया और एक अधिकारी का सार्जेंट टेलर घायल हुआ।
आप सब इस एक्शन के बाद फरार हो गए।
एक्शन के समय आपकी कार के चालक रहे , बापट ने अपने बयानों यह इस घटना के बारे में बताया।
पर इसे न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया ।
सन 1938 में आपने महात्मा गांधी के समक्ष आत्मसमर्पण किया तो आपको गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1939 में सरकार द्वारा राजनीतिक कैदियों सार्वजनिक माफी देकर छोड़ा गया तब आपको भी रिहाई मिली।
आपको ‘जिन्दा शहीद’ के नाम से भी जाना जाता है।
आपके द्वारा लिखित पुस्तक ‘लेनिन के देश में’ बहु चर्चित रही।
स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब के भीम सेन सचर सरकार में मन्त्री रहे।
भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे।
सन 1977 में भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण से अलंकृत किया।
दिनाँक 5 मार्च 1989 को 96 वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हुआ।आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय अजय भवन में जीवन पर्यन्त रहे।
नमन