सूफ़ी अंबा प्रसाद

सूफ़ी अंबा प्रसाद | Sufi Amba Prasad


     

आपका नाम अम्बाप्रसाद भटनागर था आप का जन्म 21 जनवरी सन 1858 ईस्वी में  मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में  हुआ।
आप के जन्म से ही दायां हाथ नहीं था
आपने एफ. ए. करने के बाद जालंधर से वकालत की पढ़ाई की।

आपने मुरादाबाद में उर्दू साप्ताहिक “जाम्युल इलूम” का संपादन किया।

आप हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। आप अंग्रेजी कुंठित व्यवस्था के  विरुद्ध खुलकर लिखते थे।
देशभक्ति पूर्ण लेख प्रकाशित करते थे।
इसके कारण राजद्रोह के आरोप में सर्वप्रथम आप को 1897 में डेढ़ वर्ष हेतु जेल भेजा गया ।

आप 1890 में अमृत बाजार पत्रिका के लिए  समाचार प्राप्त करने के उदेश्य से केवल खाने के बदले अंग्रेज रेसिडेंट के घर नौकर बन कर  रहने लगे ।
आप रेसिडेंट के काले कारनामों की सूचना समाचार पत्र तक पहुंचाने लगे।

यह भी मजेदार कहानी है।
अंग्रेज रेसिडेंट ने समाचार देने वाले गुप्तचर को पकड़वाने वाले को ईनाम देने की घोषणा की।
अंततः रेसिडेंट के खिलाफ कार्यवाही हुई।
रेजिडेंट को नगर छोड़ना था ।

रेसिडेंट ने अपने सभी नौकरों को बख्शीस देकर छुट्टी दे दी ।

इसमें एक पागल नौकर भी था । जो कुछ समय पूर्व ही

नौकरी पर आया था । पूरी ईमानदारी और लगन के साथ महज दो वक़्त की रोटी पर नौकरी कर रहा था ।

साहब सामान बांधकर स्टेशन पहुंचे, तो देखा कि वही पागल नौकर फैल्ट-कैप,टाई,कोट-पेंट पहने  चहलकदमी करते हुए रेजिडेंट के पास आया व  अंग्रेजी में बात की।
  उस पागल नौकर ने कहा कि

यदि में आपको उस भेदिये का नाम बता दूं तो क्या ईनाम देंगे ?’

तब रेजिडेंट ने कहा कि ‘

में तुम्हे बख्शीश दूंगा !’

“तो लाइए दीजिये ! मैंने ही वे सब समाचार छपने के लिए भेजे थे समाचार पत्र में !”

अंग्रेज रेजिडेंट कुढ़कर रह गया ! उफनकर बोला –

You go

पहले मालूम होता तो में तुम्हारी बोटियाँ कटवा देता ।

फिर भी ईनाम देने का वचन किया था अतः जेब से सोने के पट्टे वाली घडी निकाली और देते हुए कहा –

“लो यह ईनाम और तुम चाहो तो में तुम्हे सी.आई.डी. में अफसर बनवा सकता हूँ ।

1800 रुपये महीने में मिला करेंगे, बोलो तैयार हो ?

इस पर उन्होंने कहा –

यदि मुझे वेतन का ही लालच होता तो क्या आपके रसोईघर में झूठे बर्तन धोता ?

रेजिडेंट इस दो-टूक उत्तर पर हतप्रभ रह गया ! यह पागल बना हुआ व्यक्ति कोई और नहीं महान क्रन्तिकारी सूफी अम्बाप्रसाद थे !

सन 1899 में  जेल से निकले तो अंग्रेज रेजिड़ेंटो के कारनामों का समाचार पत्रों में प्रकाशन करने कारण फिर  छः वर्ष का कारावास हुआ।
जेल में  अमानवीय यातनाएं दी गई परन्तु आप तनिक भी विचलित नहीं हुए। 
एक बार अंग्रेज जेलर ने आप को तंज स्वर में कहा –
तुम मरे नहीं ?”
आपने वीरता से मुस्कराते हुए कहा  “जनाब ! तुम्हारे राज का जनाजा उठाये बिना, मैं कैसे मर सकता हूँ ?’
आप 1906 में सजा भुगत कर बाहर आये ।
1897 से 1907 के बीच की अवधि में आप 8 वर्ष से अधिक समय तक कारावास में बंद रहे।
आपकी सारी सम्पत्ति भी जप्त कर ली गई थी।

आप कारागार से लौटने पर हैदराबाद चले गए। कुछ दिनों बाद लाहौर आ गए।

लाहौर में सरदार अजीत-सिंह जी की संस्था, ‘भारत माता सोसायटी” में काम करने लगे।
इन्हीं दिनों आपने एक पुस्तक  बागी मसीहा  (विद्रोही ईसा ) लिखी
यह पुस्तक बड़ी आपत्तिजनक समझी गई। फलस्वरूप अंग्रेज सरकार उन्हें गिरफ्तार करनेका प्रयत्न करने लगी।

आप गिरफ्तारी से बचने के लिए नेपाल चले गए, वहां पकड़े जाने पर आपको भारत लाया गया। 

आप पर लाहौर में  राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, पर कोई प्रमाण न मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।
आप अपने साथी कल्याण चन्द्र दीक्षित एवं अन्य  के साथ पहाड़ों पर चले गये। कई वर्षों तक वे इधर-उधर घूमते रहे।

जब धर-पकड़ बन्द हुई, तो फिर आपने 1909 में  पंजाब में आकर ‘पेशवा’ अखबार निकाला।

सूफी जी ने जेल से बाहर आकर पंजाब लौटकर पुनः पत्रकारिता प्रारंभ की ।
आप “हिन्दुस्तान” समाचार पत्र से जुड़े ।  
आपने  ‘देश भक्त मंडल‘ का भी गठन किया था।

अजीतसिंह को  1906 में गिरफ्तार कर देश  से निकालने की सजा दी गई ।आप उनके साथ ईरान गए।

ईरान के क्रांतिकारियों से संपर्क किया  आप फारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे
आपने ईरान में ईरान के लोगों को अंग्रेजों की शोषण की नीति के विरुद्ध जागृत किया।

आपके विचारों के कारण ईरान के लोग आपको” सूफी’ कहने लग गए और आप सूफी अंबा प्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

ईरान में आप गदर पार्टी का नेतृत्व भी कर रहे थे ।
ईरान में आपने  “आबे हयात” समाचार पत्र निकाला ।

ईरान में आपने  ब्रिटिश-विरोधी सेना संगठित करने में लग गए । इसमें भारतीय क्रांतिकारी शामिल हो गए । 

आपने  शीराज ( ईरान ) में ब्रिटिश काउन्सलर के घर धावा बोल दिया गया

सन 1915 में शीराज पर भी अंग्रेजी सेना का नियंत्रण हो गया।

आपने अपनी क्रांतिकारी साथियों की सेना के साथ  अंग्रेजी सेना का   जमकर  मुकाबला किया।

अंततः आपको अंग्रेज सेना ने पकड़ लिया ।
आपका कोर्ट मार्शल किया गया। कहां जाता है कि आपने 21 फरवरी 1915 को समाधि लेकर अपने प्राणों का त्याग किया था ।

अंग्रेजों ने आपके  पार्थिव शरीर को ही रस्सी से बांधकर गोली मारी  थी।
आप ईरान में  आका सूफी  के नाम से प्रसिद्ध है।     
आज भी आपके नाम का  शीराज (  ईरान ) में मकबरा है।    
आपके नाम से उर्स लगता है। जिसमें लोग चादर अर्पित कर मन्नतें मांगते है।

शत शत नमन