कालीपद मुखर्जी

कालीपद मुखर्जी | Kalipada Mukherjee

कालीपद मुखर्जी: क्रांतिकारी साहस और न्याय की खोज

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी और अनेक अपमानजनक परिस्थितियों का सामना किया। उनमें से एक थे कालीपद मुखर्जी, जिन्होंने अपने साहस और निष्ठा से न केवल क्रांतिकारी आन्दोलन को आगे बढ़ाया, बल्कि अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते हुए एक ऐसी मिसाल प्रस्तुत की, जिसे हम हमेशा याद करेंगे। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि न्याय की खातिर किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है।

क्रांतिकारी संघर्ष की शुरुआत

कालीपद मुखर्जी इच्छपुरा के क्रांतिकारी दल के सदस्य थे। 1930 के दशक में, जब भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन तेज़ हो रहा था, तो अंग्रेजों के खिलाफ जनता का गुस्सा अपने चरम पर था। उसी दौरान कामाख्या प्रसाद सेन, जो उस समय स्पेशल मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत थे, ने अपनी निष्ठा और क्रूरता से भारतीयों पर अत्याचार किए थे। विशेष रूप से, कामाख्या प्रसाद ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की महिला कार्यकर्ताओं के साथ अपमानजनक और अभद्र व्यवहार किया था। महिलाओं को गालियाँ दीं और उन्हें बेंत से पीटा, जिससे स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश था।

कामाख्या प्रसाद सेन अब क्रांतिकारियों के टारगेट पर आ चुके थे। उनकी क्रूरता और अन्याय को रोकने के लिए क्रांतिकारियों ने इसे अपनी जिम्मेदारी समझी।

कामाख्या प्रसाद का वध

कामाख्या प्रसाद सेन छुट्टी लेकर ढाका आए थे और वहां डिवीजनल अधिकारी के घर ठहरे थे। कालीपद मुखर्जी, जो पहले ही इस क्रूर अधिकारी को दंड देने का संकल्प ले चुके थे, ने कामाख्या प्रसाद का पीछा किया। उन्होंने ढाका पहुंचकर, पटवाटोली के एक दर्जी के पास अपना ठिकाना बनाया। कालीपद ने सूक्ष्मता से कामाख्या प्रसाद की स्थिति को समझा और तय किया कि उन्हें अपने मिशन को अंजाम देना होगा।

27 जून 1932 की रात को, जब कामाख्या प्रसाद मच्छरदानी लगाकर सो रहे थे, कालीपद मुखर्जी उनके कमरे में घुसे। उन्होंने मच्छरदानी में हाथ डालकर, पिस्तौल से तीन गोलियाँ मारकर कामाख्या प्रसाद का वध कर दिया।

संदेश और गिरफ्तारी

अपना काम पूरा करने के बाद, कालीपद ने दर्जी के माध्यम से एक तार भेजा, जिसमें लिखा था:
कामाख्या का ऑपरेशन सफल रहा है – प्रेषक सुरेंद्र मोहन चक्रवर्ती

इस तार से कुछ संदिग्धता उत्पन्न हुई, और तारघर वालों ने दर्जी को पकड़े रखा। पुलिस को सूचना दी गई और जांच शुरू की गई। अंततः, इस जांच में सारा रहस्य खुल गया और पुलिस ने दर्जी की दुकान से कालीपद मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया।

अदालत में स्वीकारोक्ति

कालीपद मुखर्जी ने विशेष न्यायालय में कामाख्या प्रसाद सेन को मारने का अपराध स्वीकार करते हुए कहा:
“उसने महिलाओं के साथ अपमानजनक और अभद्र व्यवहार किया था। इसलिए मैंने उसे मार डाला।”

उनके इस बयान ने उनके साहस और निष्ठा को स्पष्ट किया। कालीपद के अनुसार, उन्होंने यह कदम न्याय की प्राप्ति के लिए उठाया, क्योंकि कामाख्या प्रसाद जैसे क्रूर अधिकारी के रहते भारतीयों को न्याय नहीं मिल सकता था।

फांसी की सजा और शहादत

कालीपद मुखर्जी को अदालत ने 8 नवंबर 1932 को फांसी की सजा सुनाई। न्यायालय का यह निर्णय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों के लिए एक कड़ा संदेश था, लेकिन कालीपद ने अपनी शहादत से यह साबित कर दिया कि सही दिशा में लिया गया कदम कभी गलत नहीं होता।

अंततः 16 फरवरी 1933 को कालीपद मुखर्जी को ढाका केंद्रीय जेल में फांसी दे दी गई। उनका बलिदान, उनकी वीरता और उनका साहस आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अनमोल धरोहर है।

शत शत नमन

कालीपद मुखर्जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि क्रांतिकारियों के दिल में सिर्फ देशभक्ति नहीं, बल्कि न्याय और समानता की गहरी भावना भी होती है। उनका साहस और बलिदान हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

शत शत नमन उस वीर योद्धा को, जिन्होंने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपनी जान की आहुति दी। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा अमर रहेगा।