बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को छोटा नागपुर बिहार में  चालकाड के निकट एक गांव में हुआ था।

बिरसा बचपन में मिशन स्कूल में पढे थे । इसलिए उसे  बिरसा डेविड कहते थे।

उस समय अंग्रेज बड़े जमीदारों की मार्फ़त किसानों  से जमीन का  लगान वसूल करते थे।

बनवासी लोग अशिक्षित थे। जिसके कारण बनवासी लोगों का सेठ साहूकार व जमीदार  शोषण करते थे।

बिहार में 1899 से 1900 तक बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा विद्रोह हुआ।

मुंडा विद्रोह परंपरागत शस्त्र लाठी तलवार , भालों से लड़ा गया था।

इसके मूल में आज़ादी का सपना था । बिरसा ने पुराण ,महाभारत, रामायण व वैदिक गर्न्थो का अध्ययन किया था।

बिरसा स्वराज का पक्षधर था।
इस आंदोलन का नारा था –
“तुन्दु जाना ओरो  अबुजा राज एते जाना “

बिरसा ने तत्समय के साहूकारी,जमीदारी जंगल कानूनों के खिलाफ 1 अक्टूबर 1894 को  मुंडा लोगों एकत्रित कर  लगान माफी के लिये अंग्रेजो कर खिलाफ आंदोलन शुरू किया।

इस आंदोलन ने कालांतर में सशस्त्र क्रांति का रूप ले लिया।

बिरसा को आदिवासी/ बनवासियों लोगो को भड़काने के आरोप में 1895 में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें दो साल की सजा देकर हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में डाल दिया गया।

   बिरसा ने अकाल के समय मुंडा लोगों की जीजान से सेवा की इसलिए बिरसा को“धरती बाबा” के नाम से पुकारा जाता था। 

1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे । मुंडो अंग्रेजों की नाक में दम करे रखा

अगस्त 1897 में बिरसा ने अपने दल सहित तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 

सन 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई। 

जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर  संघर्ष हुआ ।

   बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

इसे क्रूरता से दबा दिया गया । मुंडा के पुत्र सनौर को फांसी दी गई।

मुंडा के दूसरे पुत्र जोयमासी को आजीवन कारावास दिया गया।

मुंडा की पुत्र वधु माकी को 6 वर्ष  का कारावास दिया गया ।
बरस का पूरा परिवार जेल भेज दिया गया।

अन्त में  बिरसा को 3 फरवरी 1900  को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर रांची जेल में डाल दिया गया।

कहा जाता है कि बिरसा को जेल में धीमा जहर दिया गया जिसके कारण बिरसा  9 जून 1900 में  शहीद हो गए।

बिरसा मुंडा के आंदोलन का अंग्रेजों पर प्रभाव पड़ा ।
अंग्रेजों ने  छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 में लागू कर  मुंडा आंदोलन की कुछ मूलभूत मांगों का निराकरण किया गया।

अंग्रेजों ने कानून बनाकर  प्रावधान बनाया कि बनवासी की भूमि को अन्य कोई नहीं खरीद सकेगा ।

आज आजादी के 70 वर्ष बाद आज भी बनवासी लोगों को अपने मूलाधिकार प्राप्त नहीं  है।

बनवासियों की भूमि बलपूर्वक छीनली गई है।
बनवासियों के भरणपोषण का कोई साधन नहीं है।

सरकारें की मदद से बड़े पूंजीपतियों को बनवासियों को उनकी भूमि से बेदखल किया जा रहा है।

अब तो बनवासियों के क्षेत्र में भी राजनीति होने लगी है।

बनवासियों का आंदोलन  राजनीतिक  शिकार हो गया है।इसे उग्रवादियों का आवरण पहना दिया गया है।

  मध्य प्रदेश ,गुजरात ,तेलंगाना, महाराष्ट्र, हिमाचल , ओडिशा, राजस्थान ,आंध्र प्रदेश, झारखंड छत्तीसगढ़ के अलावा भी अन्य राज्यों में वनवासी लोग रह रहे हैं।

सन 2011 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 10 करोड़ 42 लाख 81हजार 34 बनवासी है।

हमारे संविधान के अनुसार भी अनुसूचित जाति जनजाति आयोग बनाने के प्रावधान है।
परंतु आज तक देश में दो बार आयोगों का गठन हुआ।

बनवासियों के लिए कोई नीति नहीं बनी है

बनवासी मुख्यमंत्री भी रहे परंतु आम बनवासी की हालत आज भी चिंताजनक है।

आज बनवासियों को अपना आबा चाहिए