समय का धर्म गति गति है। हमारे शरीर की तरह हमारा समाज है। कई बार हम तरह तरह की वस्तुएं खा लेते हैं तो हमारे पेट में बदहजमी हो जाती व अफारा आजाता है जिसे निकालने के लिए जुलाब लेना पड़ता है।
ठीक इसी तरह से समाज का पेट बुराइयों से भर जाता है और हमारी पाचन शक्ति की तरह हमारी सामाजिक और न्यायव्यवस्था निष्फल हो जाती है तो समाज में जुलाब के रूप में क्रांति होती है ।
हमारे समाज की सहनशीलता या दूसरे शब्दों में कायरता अधिक है। मुट्ठीभर फ़िरंगियों ने 40 करोड़ लोगों को 200 वर्षो तक दबाए रखा ।
आज के परिपेक्ष्य में देखिए । करोड़ों लोगों को भरपेट खाना नहीं मिलता पशुओं से भी बुरी स्तिथि में दिन काट रहे हैं।यह सहनशीलता है यही दब्बू प्रवर्ति है।