भारतीय वहाबी आंदोलन के शहीद


भारत मे सन 1820 से 1870 की अवधि में  वहाबी आंदोलन का केंद्र पटना था।
सन 1863 में सीमा प्रांत में बहावियोँ के मल्का  किले पर वायसराय एलगिन ने  सेना भेजकर कब्जा कर लिया था।

वहाबी नेताओं को सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाए गए , अंग भंग कर सजा दी गई ,अनेकों को फांसी दी गई व अनेकों को काला पानी भेजा गया ।

बहावी नेता आमिर खान व अन्य को Regulatning Act 1818 के अंतर्गत कैद किया गया था।

जिसकी सुनवाई   खुले न्यायालय में किये जाने हेतु  कलकत्ता हाई कोर्ट में अपील की गई थी ।
उस समय कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यवाहक  मुख्य न्यायाधीश जॉन पैक्सटन  नॉरमन ने अपील को अस्वीकार कर दिया।
जिससे से रुष्ट होकर वहाबी नेता अब्दुल्लाह ने दिनांक 20 सितंबर 1971 को नॉर्मन पर छुरे से हमला किया जिससे 21 सितम्बर को नॉर्मन की मृत्यु हो गई।
अब्दुल्ला को इस हत्या के लिये फांसी दी गई व उसके पार्थिव शरीर को सड़कों पर  घसीटा गया व आग लगा कर जला दिया गया।

उस समय लार्ड मेयो ने कहा था मैं सब वहाबियों की खत्म कर दूंगा। इन बातों से वहाबी नेता नाराज़ थे व अंग्रेजों से प्रतिशोध लेना चाहते थे।

इसी क्रम में अंडमान जेल के एक कैदी वहाबी नेता  शेरअली ने दिनाँक 8 फ़रवरी 1872 को अंडमान जेल में गवर्नर जनरल लार्ड मेयो की चाकू से आक्रमण कर हत्या की।
शेरअली वहाबी नेता थे जिन्हें अपने रिश्तेदार की हत्या के मामले में उम्रकैद कालापानी की सजा हुई थी।
शेरअली का कहना था उसे झूठे मुकदमा में सजा की गई थी।

वहाबी नेता शेरअली आफरीदी

मुख्यन्यायाधीश नॉर्मन व  लार्ड मेयो की हत्या का कारण वहाबी आंदोलन था।
वहाबी बेशक इस्लाम समर्थक थे पर भारत से अंग्रेजों को भगाना उनका भी लक्ष्य था।
इसलिए अब्दुल्ला व शेरअली को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही कहने में कोई शंका नहीं होनी चाहिए।

Recent Posts

This website uses cookies and is providing details for the purpose of sharing information only. The content shared is NOT recommended to be the source of research or academic resource creation.